नई दिल्ली. भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण की 16 माह जेल में रहने के बाद गुरुवार की देर रात रिहा कर दिया गया है. इस रिहाई को सियासी गलियारों में खासा अहम माना जा रहा है. यह रिहाई पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण को भी बदल सकता है. चंद्रशेखर रिहाई के साथ गुजरात के दलित नेता जिगनेश मेवाणी की सक्रियता भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ेगी और चंद्रशेखर के रूप में दलितों का नया नेतृत्व मिलेगा. रावण को साथ लेने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई बड़े नेता भी लगातार प्रयासरत रहे हैं, लेकिन जेल में उनकी मुलाकात नहीं हो सकी थी. अब जेल से रिहा होने के बाद रावण किसको अपने साथ लेता है और किसको नहीं, इसी पर सभी सियासी दलों के रणनीतिकारों की निगाहें लगी हैं.
चंद्रशेखर आजाद को गुरुवार रात 2:30 बजे जेल से रिहा किया गया. इससे पहले बुधवार को योगी सरकार ने रावण को जेल से रिहा करने का आदेश दिया था. रावण की रिहाई के दौरान भीम आर्मी के समर्थक काफी संख्या में जेल के बाहर जमा रहे. जेल के चारों तरफ कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई. पुलिस की जीप में रावण को जेल से बाहर निकाला गया.
बीजेपी पर हमला बोलते हुए उसने कहा कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराना है. बीजेपी सत्ता में तो क्या विपक्ष में भी नहीं आ पाएगी. बीजेपी के गुंडों से लड़ना है. उन्होंने कहा कि सामाजिक हित में गठबंधन होना चाहिए.
इससे पहले राज्य सरकार की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि रावण की मां के आवेदन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए उनकी समय से पहले रिहाई का फैसला लिया गया है. बता दें कि रावण को एक नवंबर 2018 तक जेल में रहना था, लेकिन उनको गुरुवार रात को ही रिहा कर दिया गया. रावण के अलावा दो अन्य आरोपियों सोनू पुत्र नाथीराम और शिवकुमार पुत्र रामदास को भी सरकार ने रिहा करने का फैसला किया है.
बता दें कि बीते साल सहारनपुर में दलितों और ठाकुरों के बीच हुई जातीय हिंसा के चलते करीब एक महीने तक जिले में तनाव रहा था. भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को प्रशासन ने हिंसा का मुख्य आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए थे. इसके बाद सहारनपुर के डीएम की रिपोर्ट पर रावण के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासूका) के तहत मई 2017 में जेल भेज दिया गया था.