रायपुर। भगवान श्रीराम को लेकर छत्तीसगढ़ में ऐसी मान्यता है कि उन्होंने 14 वर्ष के वनवास काल में से 10 वर्ष दण्डकारण्य में व्यतीत किए. रामायण कथा के कई लेखों में भगवान श्रीराम के छत्तीसगढ़ (दक्षिण कोसल) में प्रवास के वृतांत हैं. रामायण से संबंधित कई शोधकर्ताओं ने आज के छत्तीसगढ़ राज्य में श्रीराम के इस पथ को चिन्हित करने का प्रयास किया है.
छत्तीसगढ़ का इतिहास जितना प्राचीन है, उतना ही प्रशस्त है. त्रेतायुगीन छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कौसल एवं दण्डकारण्य के रूप में विख्यात था. दण्डकारण्य में भगवान श्रीराम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है. शोधकर्ताओं के शोध किताबों से प्राप्त जानकारी अनुसार, प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ में व्यतीत किया था.
प्रभु श्रीराम ने उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने के बाद छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर चौमासा व्यतीत करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया गया था. इसलिए छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के भरतपुर तहसील में मवाई नदी से होकर जनकपुर नामक स्थान से लगभग 28 किमी की दूरी पर स्थित सीतामढ़ी-हरचौका नामक स्थान से प्रभु श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया.
इस राम वनगमन पथ के विषय पर शोध का कार्य राज्य में स्थित संस्थान ‘छत्तीसगढ़ अस्मिता प्रतिष्ठान, रायपुर’ के द्वारा किया गया है. इसमें मन्नू लाल यदु ने ‘दण्डकारण्य रामायण’ किताब का प्रकाशन किया है, और इसी विषय पर उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ पर्यटन में राम वनगमन पथ’ के नाम से पुस्तक का प्रकाशन किया है. इन किताबों के अनुसार, प्रभु श्रीराम के द्वारा छत्तीसगढ़ में वनवास के 10 वर्षों के दौरान छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान विभिन्न स्थलों का प्रवास किया गया.
शोध प्रकाशनों के अनुसार, प्रभु श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया, जिसमें से 51 स्थल ऐसे हैं, जहां प्रभु राम ने भ्रमण के दौरान रूककर कुछ समय व्यतीत किया था. शोधकर्ताओं ने अपने शोध के आधार पर प्रभु श्रीराम के इन स्थलों में भ्रमण किए जाने की पुष्टि की है. छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इन राम वनगमन पथ का पर्यटन की दृष्टि से विकास की योजना पर कार्य किया जा रहा है. इनके विकास का उद्देश्य राज्य में आने वाले पर्यटकों, आगंतुकों के साथ साथ राज्य के लोगों को भी इन राम वनगमन मार्ग एवं स्थलों से परिचित कराना है.
प्रदेश के 51 स्थल जहां श्रीराम ने समय व्यतीत किया
2. सीतामढ़ी-घाघरा, कोरिया
3. कोटाडोल – कोरिया
4. सीतामढ़ी-छतोड़ा (सिद्धा बाबा आश्रम) – कोरिया
5. देवसील – कोरिया
6. रामगढ़ (सोनहट) – कोरिया
7. अमृतधारा – कोरिया
8. देवगढ़ – सरगुजा
9. किलकिला (बिलद्वार गुफा) – जशपुर
10. सारासोर – जशपुर
11. सीताबेगरा (रामगढ़ पहाड़ी) – सरगुजा
12. महेशपुर – सरगुजा
13. बदरकोट (अबिकापुर से दरिमा मार्ग) – सरगुजा
14. मैनपाट – सरगुजा
15. मंगरेलगढ़
16. पम्पापुर
17. रक्सगण्ड़ा – जशपुर
18. चंद्रपुर – जांजगीर-चांपा
19. शिवरीनारायण – जांजगीर-चांपा
20. खरौद – जांजगीर-चांपा
21 जांजगीर – – जांजगीर-चांपा
22. मल्हार – बिलासपुर
23. धमनी – बलौदाबाजार-भाटापारा
24. पलारी – बलौदाबाजार-भाटापारा
25. नारायणपुर (कसडोल) – बलौदाबाजार-भाटापारा
26. तरतुरिया – बलौदाबाजार-भाटापारा
27 सिरपुर – महासमुद
28. आरंग – रायपुर
29. चंदखुरी – रायपुर
30. फिंगेश्वर – गरियाबंद
31. चंपारण्य – रायपुर
32. राजिम (लोभष ऋषि गरियाबंद कुलेश्वर पटेश्वर, चम्पकेश्वर, कोपेश्वर, बानेश्वर एवं फणिकेश्वर) – गरियाबंद
33 मधुबन धाम (राकाडीह) – धमतरी
34. अतरमरा (ग्राम अतरपुर) – धमतरी
35. सिहावा (सप्त ऋषि आश्रम) – धमतरी
36. सीतानदी – धमतरी
37. कांकेर (कंक ऋषि आश्रम) – कांकेर
38. गढ़धनोरा (केशकाल) – कोंडागांव
39. जटायुशिला (फरसगाव) कोडागांव
40. नारायणपुर (रक्सा डोगरी) – नारायणपुर
41. छोटे डोंगर – नारायणपुर
42. बारसूर – दंतेवाड़ा
43. चित्रकोट – बस्तर
44. नारायणपाल – बस्तर
45. जगदलपुर – बस्तर
46, गीदम – दंतेवाड़ा
47. दंतेवाड़ा – दंतेवाड़ा
48. तीरथगढ़ – बस्तर
49. रामाराम – सुकमा
50. इंजरम – सुकमा
51. कोटा – सुकमा