हर समाज के लिए चातुर्मास अलग-अलग दिन से शुरू होगा। सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी यानी 17 जुलाई से और जैन समाज में 20 जुलाई से चातुर्मास शुरू होगा। सनातन धर्म में देवउठनी एकादशी तक चलने वाले चातुर्मास के दौरान मंदिरों में सुबह पूजा-अर्चना होगी। वहीं जैन धर्म में साधना के साथ-साथ नियमित रूप से प्रवचन होंगे। जैन समाज के आचार्य, मुनिजन और साध्वियां प्रवचनों में खास तौर पर सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, व्यसन मुक्ति, जीवन विज्ञान, ब्रह्मचर्य आदि को जीवन में अपनाने के उपाय बताएंगी।

चातुर्मास पर्व यानि चार महीने का पर्व जैन धर्म का एक अहम पर्व होता है। इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा पाठ किया जाता है। वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास पर्व मनाया जाता है। चातुर्मास में जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी, साधु-संत सभी ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप की अराधना करते हैं. वे एक ही स्थान पर रहकर मंदिर, आश्रम या संत निवास पर जप-तप करते हैं और चातुर्मास के नियमों का पालन करते हैं.

कब से शुरू हो रहा है चातुर्मास

सनातन शास्त्रों में निहित है कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को क्षीर सागर में विश्राम करने जाते हैं और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी तिथि को जागृत होते हैं। अतः कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। चातुर्मास के दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस वर्ष 17 जुलाई से लेकर 12 नवंबर तक चातुर्मास है।

मुहूर्त

ज्योतिषियों की मानें तो आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 जुलाई को संध्याकाल 8 बजकर 33 मिनट से शुरू होगी और 17 जुलाई को शाम 9 बजकर 2 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। वहीं, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर को संध्याकाल 6 बजकर 46 मिनट से लेकर 12 नवंबर को संध्याकाल 4 बजकर 4 मिनट पर समाप्त होगी। अतः 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। 13 नवंबर से शादी-सगाई समेत सभी शुभ कार्य किए जाएंगे।

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