रायपुर. भगवान श्रीराम को लेकर छत्तीसगढ़ में ऐसी मान्यता है कि उन्होंने 14 वर्ष के वनवास काल में से 10 वर्ष दण्डकारण्य में व्यतीत किए. रामायण कथा के कई लेखों में भगवान श्रीराम के छत्तीसगढ़ (दक्षिण कोसल) में प्रवास के वृतांत हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने 14 साल वनवास में गुजारे, श्रीराम ने यहां चातुर्मास बिताया और भगवान शिव की आराधना की. यहां जंगलों में रहने वाले साधु-संतों से मिले और ज्ञानार्जन किया.

सरगुजा के रामगढ़ की पहाड़ी

भगवान श्रीराम ने साधुओं और साधकों को परेशान करने वाले राक्षसों का वध किया. भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में सीतामढ़ी-हरचौका से प्रवेश किया. इसके पहले यह भी जान लीजिए कि भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने रायसेन जिले में चातुर्मास बिताया था और एक बड़ी छतरीनुमा चट्टान में रहे थे. इस स्थान को रामछज्जा के नाम से जाना जाता है.

छत्तीसगढ़ में रामगढ़ की तलहटी से होते तीनों सोनहट पहुंचे. यहां हसदो नदी है. इसके किनारे चलते हुए तीनों अमृतधारा पहुंचे. यहां कुछ दिन रहने के बाद जटाशंकरी गुफा फिर बैकुंठपुर होते पठना-देवगढ़ आए. नदी के तट पर होते हुए बड़े दमाली और शरभंजा गांव आए. चंद्रपुर के बाद राम शिवरीनारायण पहुंचे. यहां चौथा चौमासा बिताया. इसके बाद खरौद फिर यहां से मल्हार गए. यहां से महानदी के तट पर चलते हुए आगे बढ़े और धमनी, नारायणपुर होते हुए तुरतुरिया स्थित वाल्मीकि आश्रम पहुंचे.

भगवान राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान सबसे पहले छत्तीसगढ़ के इस जगह पर रुके थे

गीदम से वे शंखनी और डंकनी नदी के तट पर बसे दंतेवाड़ा पहुंचे. यहां से कांकरे नदी के तट पर होते हुए आगे बढ़े और तीरथगढ़ पहुंचे. यहां से कुटुंबसर गए. दंडकारण्य में दिन गुजारने के बाद भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के साथ नासिक गए थे.