पटना। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर आज से छठ पर्व का आरंभ हो गया है। छठ पूजा चार दिनों तक मनाया जाता है, आज ‘नहाय-खाय’ के साथ महा पर्व की शुरूआत हो गई है। यह पर्व न केवल सूर्य देवता की पूजा का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार और जीवन में शारीरिक एवं मानसिक शुद्धता का संदेश भी देता है।
नहाय-खाय का महत्व
छठ पूजा का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ कहलाता है। इस दिन व्रती अपने शरीर, आत्मा और घर को शुद्ध करते हैं। पारंपरिक मान्यता के अनुसार, पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति शुद्ध होता है और उसके घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। नहाय-खाय के दिन व्रती सूर्य देव को जल अर्पित करते हैं और घर की सफाई करके प्रत्येक कोने को पवित्र करते हैं।
सात्विक जीवन की शुरुआत का प्रतीक
पंडितों के अनुसार यह दिन व्रती के सात्विक जीवन की शुरुआत का प्रतीक होता है। व्रती इस दिन संकल्प लेते हैं कि वे चार दिनों तक केवल सात्विक भोजन और शुद्ध आचरण अपनाएंगे। यही कारण है कि नहाय-खाय व्रतधारी के जीवन में आंतरिक और बाह्य शुद्धता का महत्वपूर्ण संदेश देता है।
नहाय-खाय की परंपरागत विधि
नहाय-खाय की शुरुआत सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करने से होती है। गंगा नदी, घाघरा, गोमती या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। स्नान के बाद व्रती अपने घर और विशेषकर रसोईघर की सफाई करते हैं। इस दिन भोजन का विशेष ध्यान रखा जाता है। पारंपरिक रूप से व्रती शाकाहारी भोजन करते हैं, जिसमें कद्दू की सब्जी, चावल और चना दाल प्रमुख होते हैं।
शुद्धिकरण से छठी मां की कृपा प्राप्त होती
व्रती का मानना है कि नहाय-खाय के दिन किए गए शुद्धिकरण से छठी मां की कृपा प्राप्त होती है और उनके संकल्प सफल होते हैं। इस दिन का पालन न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
छठ पूजा की चार दिवसीय परंपरा
छठ पूजा कुल चार दिनों तक मनाई जाती है। पहला दिन ‘नहाय-खाय’, दूसरा दिन ‘खरना’, तीसरा दिन ‘संध्या अर्घ्य’ और अंतिम दिन ‘उषा अर्घ्य’ कहलाता है। इस पूरे पर्व में व्रती सात्विक जीवन का पालन करते हैं और सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करके प्रकृति और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
पारिवारिक सामंजस्य को करता है मजबूत
आज के दिन से शुरू हुए नहाय-खाय के अनुष्ठान ने व्रतधारियों के जीवन में आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व को उजागर किया है। यह पर्व न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि मानसिक शांति और पारिवारिक सामंजस्य को भी मजबूत करता है।
समृद्धि लाने का माध्यम बन सकता है
छठ पूजा की इस पावन परंपरा के माध्यम से समाज में प्राकृतिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने का संदेश मिलता है। व्रती अपने संकल्प और आचरण से यह दिखाते हैं कि आध्यात्मिक अनुशासन और प्रकृति के प्रति आभार जीवन में सुख और समृद्धि लाने का माध्यम बन सकता है।
जानिए कैसे होती है पूजा
छठ पूजा चार दिन तक चलने वाला महापर्व है। पहले दिन ‘नहाय-खाय’ से पूजा की शुरुआत होती है, फिर ‘खरना’, ‘संध्या अर्घ्य’ और ‘उषा अर्घ्य’ के क्रम में पूजा संपन्न होती है। हर दिन की पूजा का अपना विशेष महत्व है और इसमें सूर्य देवता और छठी माता की आराधना की जाती है।
कैसे करें छठ पूजा
सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करें।
- घर और विशेषकर रसोईघर की सफाई करें।
- शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करें, जैसे कद्दू की सब्जी, चावल और चना दाल।
- सूर्य देवता को जल अर्पित करें और छठी माता की पूजा करें।
- पूरे चार दिन तक सात्विक जीवन और संकल्प का पालन करें।
- कौन कर सकता है
- पूजाछठ पूजा में मुख्य रूप से परिवार की महिलाएं व्रत रखती हैं, लेकिन पुरुष भी इसमें शामिल हो सकते हैं। व्रतधारी को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए और उसे सात्विक जीवन का पालन करना चाहिए।
- कौन व्रत रख सकता है।
- 18 वर्ष से ऊपर के पुरुष और महिलाएं व्रत रख सकते हैं।
- गर्भवती महिलाएं और शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति डॉक्टर की सलाह लेकर ही व्रत रख सकते हैं।
- बच्चे भी अपने माता-पिता के मार्गदर्शन में भाग ले सकते हैं, लेकिन पूर्ण व्रत की अपेक्षा नहीं रखी जाती।
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