प्रियंका साहू. रायपुर. भारत में यूं तो कई प्रकार की जनजातियां हैं. इनमें से कुछ ने अब मॉडर्न लाइफस्टाइल को अपना लिया है, तो कई जनजाति आज भी अपनी पुराने रीति रिवाजों और परंपराओं को जीवंत रखे हुए हैं. वे अब भी मॉर्डन सभ्यता से दूर… जंगलों के बीच प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित जीवन जीते हैं… आज हम आपको छत्तीसगढ़ की ऐसी ही एक जनजाति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी अनोखी परंपरा के बारे में जान कर आप भी हैरान रह जाएंगे…

छत्तीसगढ़ की एक विशेष पिछड़ी जनजाति हैं भुंजिया (Bhunjia Tribe). ये अपनी अनोखी जीवनशैली और रसोई के प्रति अनोखे सम्मान के लिए जानी जाती है. इस जनजाति की महिलाएं अपनी रसोई को इतना पवित्र मानती हैं कि अगर कोई बाहरी व्यक्ति उनके किचन को छू भी ले, तो वे उसे तोड़ देती हैं और उसकी मिट्टी तक फेंक देती हैं. इनकी रसोई को ‘किचन’ नहीं बल्कि ‘लाल बंगला’ (Lal Bangla) कहा जाता है… यहां किसी भी पुरुष का जाना वर्जित होता है. खास बात यह है कि इनकी रसोई से जुड़ी ये परंपरा त्रेता युग से शुरू हुई हैं.

माता सीता के हरण से जुड़ी है मान्यता
भुंजिया जनजाति (Bhunjia Tribe) की मान्यता के अनुसार, जिस क्षेत्र में वे रहते हैं, उसी क्षेत्र में भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास पर रह रहे थे. इसी दौरान रावण ने भोजन मांगने के बहाने माता सीता का हरण कर लिया था. यह बात जब वहां बसे भुंजिया जनजाति के लोगों पता चली, तो जनजाति के पुरुषों में डर बैठ गया, क्योंकि वे भी अपनी पत्नी को घर पर अकेले छोड़कर लकड़ी काटने जंगल चले जाते हैं. उन्हें डर था कि इस दौरान कहीं उनका भी अपहरण ना हो जाए….

इस घटना के बाद से ही भुंजिया जनजाति की महिलाएं अपनी रसोई की पवित्रता की रक्षा को सर्वोपरि मानती हैं और किसी बाहरी को अपने किचन में प्रवेश की अनुमति नहीं देतीं. हालांकि रामायण के अनुसार रावण ने माता सीता का हरण उन्हें छल द्वारा सुरक्षा घेरे से बाहर बुलाकर किया था.
लाल बंगले के निर्माण के दौरान पुरुष करते हैं व्रत
इस जनजाति के रसोई घर निर्माण करने के भी विशेष नियम हैं. खास बात यह है कि रसोई को घर के बाहर लाल मिट्टी से बनाया जाता है, जिसे ‘लाल बंगला’ कहा जाता है. इसके निर्माण के लिए पुरुष व्रत रखते हुए जंगलों से लकड़ी और बांस काटकर लाते हैं और इसका निर्माण करते हैं. वे जगंल से लकड़ियां काटने से पहले ‘प्रकृति देवी’ से क्षमा मांगते हैं और फिर कार्य शुरू करते हैं.
वहीं रसोई बनकर तैयार होने के बाद महिलाएं ही इस पवित्र स्थान की देखरेख करती हैं, और इसमें बाहरी व्यक्ति का प्रवेश पूरी तरह वर्जित होता है. यहां तक कि अगर कोई बाहरी व्यक्ति लाल बंगला (Lal Bangla) को छू ले, तो उस रसोई को तोड़कर, दूसरी मिट्टी से लाल बंगले को दोबारा बनाया जाता है.
पीरियड्स शुरु होने पर ही लड़कियों को मिलता है प्रवेश
भुंजिया समाज में लड़कियां भी ‘लाल बंगला’ में तभी प्रवेश कर सकती हैं, जब उनके पीरियड्स की शुरुआत हो जाती है. इसके अलावा, इस जनजाति की महिलाएं ब्लाउज और पेटीकोट नहीं पहनतीं, केवल साड़ी ओढ़ती हैं. नाक छिदवाने की अनुमति नहीं होती, जबकि कान छिदवाना पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए परंपरा में शामिल हैं.
लाल बंगला परंपरा से है पहचान
भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ के गरियाबंद और महासमुंद के सुदूर क्षेत्रों में रहते हैं. 25 से ज्यादा गांव में इनकी आबादी 10 हजार की है. इनकी परंपराएं न केवल उनकी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करती हैं, बल्कि उनके प्रकृति और धार्मिक आस्थाओं से गहरे जुड़ाव को भी दर्शाती हैं. आज के दौर में जब कई जनजातियां आधुनिकता की ओर बढ़ रही हैं, भुंजिया समुदाय अपनी मूल परंपराओं को बचाकर एक विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है.
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें