रायपुर। केंद्रीय कृषि कानून के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के बीच भाजपा अब एक नई रणनीति पर काम करेगी. भाजपा किसानों के बीच जाकर कृषि कानून पर संवाद करेगी. आज प्रेसवार्ता में इसकी जानकारी देते हुए विष्णुदेव साय ने कहा छत्तीसगढ़ में कृषि कानून को लेकर एक जन-जागरण अभियान चलाया जाएगा.

तीन जगहों पर महापंचायत

साय ने कहा कि भाजपा प्रदेश के तीन स्थानों पर महापंचायत लगाने जा रही है. इसके साथ प्रदेश के प्रत्येक धान खरीदी केंद्रों में किसान पंचायत का आयोजन किया जाएगा. इससे पहले 14 दिसंबर से लेकर 16 दिसंबर तक जनजागरण अभियान चलाएगा. जिसमें किसानों केंद्रीय कृषि कानून के बारे में जागरुक किया जाएगा.

साय ने कहा कि दुर्ग, रायगढ़ सहित तीन जगहों पर महापंचायत बैठेगी. वहीं प्रत्येक ग्राम पंचायतों में किसान पंचायत का आयोजन होगा. केंद्रीय कृषि कानून के मसले पर कांग्रेस और राज्य सरकार जिस तरह से किसानों को गुमराह कर रही उस संबंध में विस्तार से जानकारी दी जाएगी. किसानों के साथ चर्चा की जाएगी.

कांग्रेस के पेट में दर्द 

उन्होंने कहा कि कृषि कानून किसानों के हित में है. पहले किसानों ने कहा कि यह ग़ैर राजनीतिक आंदोलन है, लेकिन बाद में कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल इसमें कूद गए.  देश में भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है. कांग्रेस अपने कार्यकाल में इस क़ानून को पारित नहीं करा सकी, लेकिन मोदी सरकार ने इस क़ानून को लागू किया तो इनके पेट में दर्द हो रहा है.

कांग्रेस ने तो पहले यही वादा किया था

वहीं नेता-प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि दिल्ली की हालत पर केंद्र के मंत्री लगातार बातचीत कर रहे हैं. एमएसपी को लेकर केंद्र सरकार ने स्थिति स्पष्ट की है कि इसे कभी ख़त्म नहीं होगा. मंडी कभी ख़त्म नहीं होगी. इस क़ानून में यह उल्लेख है कि कोंट्रेक्ट फ़ार्मिंग में किसानों को यह अधिकार दिया गया है कि उनकी ओर से कभी भी एग्रिमेंट समाप्त किया जा सकता है. विवाद की स्थिति में सब डिविज़नल जज इसकी सुनवाई करेगा,जो राजनीतिक दल आज विरोध कर रहे हैं उन्हें विरोध करने का अधिकार ही नहीं है. सोनिया गांधी, राहुल गांधी जो हाय तौबा मचा रहे हैं. उन्हें किसानों से मतलब नहीं है उन्हें सिर्फ़ राजनीतिक रोटियाँ सेकनी है. कांग्रेस के घोषणा पत्र में यही वादा किया गया था.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस की कथनी और करनी में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है. खाने के दांत अलग और दिखने के अलग है. 2019 में जारी अपने घोषणा पत्र को फाड़कर फेंक देना चाहिए. 2010 में शरद पवार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एपीएमसी एक्ट में संशोधन के लिए पत्र लिखा था . तब वह केंद्र सरकार में गठबंधन में शामिल थे. डीएमके जो आज इस क़ानून का विरोध कर रही है, उसने 2016 में इस क़ानून का समर्थन दिया था. आम आदमी पार्टी ने इसे लागू भी कर दिया है. अकाली दल के सांसदों ने स्टेण्डिंग कमेटी की बैठक में कुछ और ही राग अलापा था आज ये दल भी विरोध कर रही है. लेफ़्ट पार्टियों ने भी कृषि क़ानून में तब बदलाव का समर्थन किया था.