रायपुर- सत्ता वापसी की कवायद में जुटी बीजेपी अब कमर कसती नजर आ रही है. संगठन को मजबूत करने और सरकार के खिलाफ रणनीतिक लड़ाई लड़े जाने के लिए गठित की गई विभागों की मैराथन बैठकें शुरू हो गई है. बीजेपी चौतरफा सरकार पर हमला बोलने के इरादे से काम करती दिख रही है. बीजेपी उन मुद्दों की फेहरिस्त तैयार कर रही है, जिसके बूते भूपेश सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा सके. बीजेपी किसी प्रोफेशनल ऑर्गेनाइजेशन की तरह अपने विभागों को मोर्चे पर खड़ा कर रही है.

राज्य गठन के बाद साल 2003 के चुनाव को छोड़ दिया जाए, तो बीजेपी ने सत्ता में रहते हुए चुनाव का सामना किया. सत्ता की ताकत के बीच संगठन की रणनीति बुनी, लेकिन इस दफे पार्टी विपक्ष की हैसियत से चुनावी मोर्चे पर होगी, जाहिर है दोगुनी तैयारी बीजेपी के हिस्से आनी है. आगामी विधानसभा चुनाव 2023 में है. ऐसे में ब्लूप्रिंट बनाने का काम बीजेपी ने तेज कर दिया है. पिछले दिनों बीजेपी के तीन सबसे मजबूत विभागों राजनीतिक प्रतिपुष्टि और प्रतिक्रिया, चुनाव प्रबंधन और नीति विषयक शोध की बैठक हुई. बीजेपी अपनी इन बैठकों के मीडिया कवरेज से भी बच रही है. बैठकों की सूचना मीडिया में नहीं दी जाती. अलग-अलग विभागों में अपने दायित्वों को देख रहे नेता गुपचुप ढंग से जुटते हैं. टास्क तैयार करते हैं और उसे पूरा करने का वक्त निर्धारित किया जाता है.
पिछले दिनों बीजेपी प्रदेश कार्यालय में तीन महत्वपूर्ण विभागों की बैठकें हुई. बताते हैं कि राज्य की मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखते हुए उस पर काउंटर किए जाने के लिए गठित की गई राजनीतिक प्रतिपुष्टि और प्रतिक्रिया विभाग की बैठक में कवर्धा दंगा, झीरम घाटी पर प्रस्तुत की गई न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट जैसे तमाम पहलुओं पर रायशुमारी की गई. सरकार के खिलाफ मीडिया में मुद्दों को कैसे उछाला जाए? विपक्षी पार्टी के रूप में तात्कालिक मुद्दों पर पार्टी की प्रतिक्रिया कैसी हो? सरकार के खिलाफ नकारात्मक मुद्दों पर आक्रामक रूख कैसे अख्तियार जाए? ऐसे तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई. इस विभाग की जिम्मेदारी विधायक शिवरतन शर्मा, पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, सांसद संतोष पांडेय और पूर्व मंत्री केदार कश्यप को सौंपी गई है. चुनाव प्रबंधन विभाग की कमान पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के हाथों हैं. उनकी टीम में पूर्व प्रदेश संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह, पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल और केदार कश्यप शामिल हैं. यह बेहद महत्वपूर्ण विभाग है. चुनावी नजरिए से केंद्रीय स्तर पर पार्टी की व्यूह रचना कैसी होनी चाहिए? यह काम इस विभाग के अधीन है. साथ ही चुनाव प्रचार सामग्री, निर्माण और वितरण भी इसी विभाग के दायरे में आता है. चुनाव संचालन के दौरान या इसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज होने वाली मुकदमे से जुड़े मामले भी यही विभाग देखता है. विभाग ने अपनी प्रारंभिक बैठक कर आगामी चुनाव का एक खाका तैयार कर लिया है.
सरकार के खिलाफ दस्तावेज भी तैयारी करेगी बीजेपी
बीजेपी की रणनीति बनाती है कि सत्ता हासिल करने के लिए सिर्फ आंदोलन ही नहीं काफी नहीं होगा, बल्कि सरकार के खिलाफ दस्तावेज तैयार कर कानूनी लड़ाई भी एक बड़ा हथियार बनेगा. बीजेपी ने इसके लिए नीति अनुसंधान विभाग का गठन किया है. पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय, अमर अग्रवाल और सांसद रामविचार नेताम इस विभाग को संभाल रहे हैं. विभाग ने अपनी बैठक में कई अहम मुद्दे चिन्हांकित किए हैं, जिनका इस्तेमाल आने वाले दिनों में सरकार के खिलाफ किया जाएगा. विभाग फिलहाल इन मुद्दों से जुड़े दस्तावेज इकठ्ठे कर रहा है. आरीडोंगरी में माइनिंग लीज का आबंटन, हाथी, शराब, गोबर खरीदी जैसे सैकड़ों मुद्दों पर बीजेपी अनुसंधान में जुट गई है.
क्या सफल होंगी रणनीति?
संगठन स्तर पर बीजेपी अपनी ताकत को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. बैठकें बढ़ गई है. प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन लगभग हर महीने दौरे पर आ रहे हैं. राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश की नजर संगठन के कामकाज पर है. दिल्ली के स्तर पर भी अब राज्य संगठन की गतिविधियों पर नजरें तेज कर दी गई है. उत्तरप्रदेश चुनाव के बाद कामकाज में और धार देखने को मिलेगी. इन तमाम हालातों के बावजूद राजनीतिक प्रेक्षक बीजेपी को बतौर विपक्षी दल की भूमिका में मजबूत नहीं आंकते. उनका मानना है कि विपक्ष से कहीं ज्यादा आक्रामकता भूपेश सरकार में दिखती है. मुख्यमंत्री की छवि वैसी है, जैसी विपक्ष के नेताओं की होनी चाहिए. बीजेपी आंदोलन के जरिए उस वर्ग में नहीं घुस सकी है, जो कोर वोट बैंक है और जिनके बगैर सत्ता हासिल करना नामुमकिन है, लिहाजा ऐसी रणनीतिक बैठकों का फायदा वोट के रूप में बीजेपी को मिलेगा, यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है? नेतृत्व की चुनौती से भी बीजेपी जूझ रही है. विपक्षी पार्टी के रूप में जो आक्रामक नेतृत्व संगठन को चाहिए, इसका एक बड़ा अभाव बीजेपी में है. हालांकि इस दलील को बीजेपी नेता यह कहकर खारिज करते हैं कि संगठन में सामूहिक नेतृत्व चुनाव लड़ता है.