दुर्ग से चंद्रकांत देवांगन की रिपोर्ट-

फीचर स्टोरी।  ये कहानी है छत्तीसगढ़ की उन महिलाओं, माता-बहनों की, जो किसी नौकरी में नहीं हैं, लेकिन फिर भी आज वे हजारों रुपये कमा रही हैं. वे महिलाएं जो अधिक पढ़ी-लिखी नहीं…लेकिन उनके पास आज काम की नहीं है….वे महिलाएं जो घरेलु काम-काज तक सीमित रहती थी…आज वे खुद स्वालंबी बन रही हैं….वे महिलाएं जो अभी तक अपने आस-पास तक ही जानी-पहचानी जाती थी….आज अपने हुनर और काम से विदेशों तक नाम कमा रही हैं….और ये सबकुछ संभव हो सका है भूपेश सरकार की नरवा-गरवा-घुरवा-बारी और गोधन न्याय योजना से. ये दोनों ही योजना घरेलु महिलाओं के लिए बेहद ही उपयोगी साबित हो रही. इन योजनाओं से जुड़कर गाँव के साथ-साथ शहर की भी सैकड़ों महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. फिर चाहे काम वर्मी कंपोज खाद बनाने का हो या फिर गोबर से बनने वाले दीए सहित अन्य उत्पादों का….इस विशेष रिपोर्ट में पढ़िए दुर्ग-भिलाई की ऐसी ही सशक्त महिलाओं की कहानी…..

छत्तीसगढ़ से लेकर विदेशों तक सजता बाजार

आकर्षक-खूबसूरत, रंग-बिरंगे दीए और वंदनवार को इन तस्वीरों में देखिए….ये आम दीयों से अलग और खास है. खास इस मायने में क्योंकि ये गोबर से निर्मित हैं…वहीं हर दीए में एक बीज है. मतलब दीए जलाने के साथ-साथ पौधा उगाने का भी काम करेगा.क्योकि दीए में किसी न किसी पौधे का बीज है. इन दीयों का निर्माण भिलाई की उड़ान नई दिशा की महिला समूह की ओर से किया जा रहा है. समूह की संचालक निधि चंद्राकर कहती हैं कि कुछ नया और रचनात्मक करते-करते उन्हें लगा की साधारण दीयों की जहग में कुछ अलग और खास दीए बनाएं जाए. इसके लिए उन्होंने कई तरह के प्रयोग किए. इन प्रयोग में सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरण अनुकूल उत्पादों को तैयार करना था. इसके लिए हमने गोबर के दीयों को आकर्षक बनाने के साथ तय किया कि सभी दीयों में बीज भी डाल दी जाए. यह प्रयोग सफल रहा है. हमने फिर इन दीयों की तस्वीरों को सोशल मीडिया में वायरल किया. लोगों की मांग आने लगी है. आज देश के कई राज्यों से उनके पास ऑर्डर है. इसके साथ ही विदेशों भी मांग आ रही है. लंदन, जर्मनी, स्वीटजरलैंड से उन्हें ऑर्डर मिले हैं.

वे कहती हैं कि गोबर से वंदनवार ,डेकोरेटिव दीए, वाल हैंगिंग, शुभ-लाभ आदि बनाए हैं. समूह की ओर से निर्मित दीयों का मूल्य रुपये प्रति दीया है. वहीं डेकोरेटिव दियों का मूल्य 50 से 150 रुपए , वंदनवार 150 से 250 रुपए और शुभ-लाभ व लटकन 100 रुपए में उपलब्ध है. करीब 250 महिलाएं मिलकर ये काम कर रही हैं.

समूह की सदस्य कल्पना वर्मा कहती हैं कि आज उनके पास अतिरिक्त लाभ अर्जित करने का एक सफल माध्यम है. इस काम से जुड़कर वह बेहद खुश हैं. वहीं भारती पाखले का कहना है सरकार की ओर से उन्हें सतत् सहयोग मिल रहा है. दीए बनाने के अत्याधुनिक मशीन के साथ कई तरह के डिजाइन भी सीखाए जा रहे हैं.  सविता बारले बताती हैं कि समूह में सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार मिल रहा है.

नंदौरी गाँव की महिलाओं ने चुनी स्वावलंबन की राह

इसी तरह से धमधा तहसील में नंदौरी गाँव के संगवारी स्व-सहायता समूह की महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं. समिति की अध्यक्ष रानी लक्ष्मी बंछोर कहती हैं कि जब उन्होंने सरकार की नरवा-गरवा, घुरवा-बारी, गोधन न्याय योजना के बारे में जानकारी मिली तो उनको भी रुचि उत्पन्न हुई कि घर पर बैठकर भी आमदनी अर्जित की सकती हैं. समूह बनाने के बाद यू ट्यूब पर गोबर से दीए बनाने की विधि देखी, जनपद पंचायत से भी मदद मिली. सरकारी प्रशिक्षण भी मिला. धीरे-धीरे संगवारी समूह के काम की चर्चा पूरे इलाके में होने लगी हैं. हमारे समूह को कई जिलों में प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया.

बड़े काम का है गोबर

दो वर्ष पूर्व तक छत्तीसगढ़ में गोबर को हम किसी काम का नहीं समझते थे, लेकिन आज गोबर ही प्रदेश में हजारों लोगों की आय का ज़रिया बन गया है. राज्य शासन की गोधन न्याय योजना से एक तरफ किसान व पशुपालकों की आय में इज़ाफ़ा हुआ है, वहीं दूसरी ओर स्व-सहायता समूह की महिलाएं ने गोबर से दीए एवं अन्य सजावटी सामान बनाकर न केवल अपने हुनर का प्रदर्शन कर रही हैं, बल्कि आय भी अर्जित कर रही हैं. रक्षाबंधन में जहां गोबर से बनी राखियाँ, गणेश चतुर्थी में गोबर व मिट्टी के गणेश, अब नवरात्र और दीपावली के लिए दीए, धूप, वंदनवार, लटकन व शुभ-लाभ आदि सामग्रियाँ बाजार में है.

सच में गोबर से सिर्फ खाद नहीं, बल्कि और भी बहुत कुछ बनाया जा सकता है…और इससे धन कमाने के साथ नाम भी कमाया जा सकता है….

येखरे सेति आज छत्तीसगढ़ म इही चरचा हे-
गोबर बनगे जीविका के अधार, बिदेस तक सजत हे बाजार…
दाई-बहिनी मन कहत हे, बड़ सुग्घर योजना बनाय हस भूपेश सरकार…