दंतेवाड़ा, नाम सुनते मात्र से ही बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ने लगती थी. आंखों के सामने एक ऐसा मंजर घूमनें लगता था, जहां खूनी-खेल, माओवादी दहशतगर्द और भय का भौकाल मानों सिस्टम का हिस्सा हो गया हो, कुछ हद तक यह सिहरन और आंखों के सामने का मंजर सही भी था, क्योंकि बीते साल ही दंतेवाड़ा के चुने हुए जनप्रतिनिधी की माओवादियों ने दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. स्थिति यह कि दंतेवाड़ा में विकास की रीढ़ तय करते रायपुर में बैठें हमारे हुक्मरान से लेकर अफसरगण इस बात से अधिक चिंतित थे कि आखिरकार यह स्याह तस्वीर बदलेगी कैसे ? कैसे दंतेवाड़ा के चेहरे पर मुस्कान बिखरेगी? कैसे दंतेवाड़ा में विकास की धारा प्रवाहित होगी ? कैसे दंड़ेवाड़ा के विश्व प्रसिद्ध आकाश नगर को संरक्षित किया जाएगा ? कैसे माई दंतेश्वरी के आशीर्वाद से सब बेहतर होगा ?

दानेश्वरी संभाकर

राज्य सरकार की सकारात्मक सोच और ठोस इरादों की ही देन हैं कि आज दंतेवाड़ा दहशत से दूर उम्मीदों से भरपूर “हमारा दंतेवाड़ा” बन रहा है। बात अगर बीते एक-डेढ़ सालों की करें तो दर्जनों महत्वाकांक्षी सरकारी योजनाओं से हमारा दंतेवाड़ा आमूलचूल परिवर्तन के साथ प्रगति की ओर बढ़ रहा है. सरकार की कार्यप्रणाली से ना केवल विकास की धारा अविरल प्रवाहित हो रही है, बल्कि लोगों के मन में जिम्मेदारों के प्रति विश्वास भी जागृत हो रहा है. बदलते विकास के इस दौर में हमारा दंतेवाड़ा नित नए आयाम की ओर बढ़ रहा है. अब दंतेवाड़ा के चेहरे पर मुस्कान बिखरने लगी है. नैसर्गिक सुंदरता वाले दंतेवाड़ा में आज सकारात्मक विकास गूँजायमान है. हमारा दंतेवाड़ा सपनों का दंतेवाड़ा की ओर तेज गति से अग्रस रहा है.

बीते दिनों में दंतेवाड़ा जिले में नरवा, गरवा, घुरवा, बारी के तहत गौठानों का निर्माण, तेंदूपत्ता संग्राहकों को नगद भुगतान की व्यवस्था, उचित मूल्य पर वनोपजों की खरीदी जैसी कई योजनाओं ने जनजातियों के जीवन को उज्ज्वलित किया. इसके साथ ही जिले के 3 हजार 259 पंजीकृत किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत 01 करोड़ 90 लाख 74 हजार रूपए भुगतान की व्यवस्था ने किसानों के चेहरे पर चमक बिखेर दी है. राज्य सरकार के निर्देश पर अब वनवासी क्षेत्रों में 31 तरह से वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य में की जा रही है, जिसकी संख्या साल 2018 तक महज 07 थी. नए वनोपजों में गिलोय और भेलवा को भी शामिल किया गया है. इतना ही नहीं राज्य सरकार की इस घोषणा ने लोगों के मन में और अधिक विश्वास जागृत कर दी कि कुसमी लाख, रंगीनी लाख और कुल्लू गोंद की खरीदी समर्थन मूल्य पर तो की ही जाएगी साथ ही इसके संग्रहणकर्ताओं को प्रतोत्साहन राशि भी दी जाएगी. जिस वक्त देश और दुनिया लॉकडाउन को लेकर चिंतित थी, उस वक्त दंतेवाड़ा जिले में 1166.320 क्विंटल वनोपज की खरीदी हो चुकी थी, जो प्रदेश में दूसरे स्थान पर रही थी. लॉकडाउन के दौरान शिक्षा व्यवस्था को गति देने के लिए राज्य सरकार ने पढ़ई तुंहर दुआर योजना की शुरूआत की जिससे दंतेवाड़ा जिले के करीब 10 हजार बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं. इन तमाम योजनाओं ने जनजातीय समूह में उत्साह को संचारित किया है. इन योजनाओं के जरिए शासन और प्रशासन लोगों के दिलों तक पहुंच रहा है और यह तमाम कोशिशे हमें “हमारा दंतेवाड़ा” की ओर अग्रसित कर रहा है.

डॉक्टर वही जो नब्ज पकड़ मर्ज पहचाने

प्रशासनिक बदलाव के तहत दंतेवाड़ा जिले को युवा आईएएस दीपक सोनी के रूप में नया कलेक्टर मिला, नए कलेक्टर ने एक माह के अध्ययन में ही दंतेवाड़ा की नब्ज टलोटते हुए मर्ज तक पहुंचने की पूरी कोशिश की. बात फिर गरीबी उन्मूलन अभियान की हो या बैंक संगवारी तुमचो द्वार तक. यह ऐसी योजनाएं साबित हो रही है जो सीधे आम लोगों से जुड़ते हुए उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में मददगार है. गरीबी उन्मूलन अभियान के तहत कलेक्टर खुद दर्जनों कार्यों की सूची अपने साथ लेकर चलते हैं, ताकि जहां जिसकी आवश्कता हो उसे यथासंभव पूरा किया जा सके. बात अगर बैंक संगवारी तुमचो द्वार की करें तो एक ऐसी सोच-ऐसी योजना जिसने जिले के 18 हजार 995 वयोवृद्धों के चहरे पर खुशी के आंसू छलका दिए, दरअसल इस योजना के जरिए जिले के पेंशनधारियों को पेंशन आहरण के लिए बैंकों में घंटों तक कतारबद्ध होने की आवश्कता नहीं है, दंतेश्वरी माई मितान के साथी 18 हजार 995 पेंशनधारियों के घरों तक पहुंचकर उन्हें पेंशन की राशि प्रदान कर रहे हैं. सोच और योजना की सफलता इस आकड़े से भी प्रतीत होती हैं कि अब तक हितग्राहियों के लिए करीब एक करोड़ रूपए का ट्रांजेक्शन किया गया है.
 
दिलों तक पहुँचने की कोशिश

आदिवासियों के आस्था का प्रतीक देवगुड़ी के संरक्षण की सोच ने ही प्रशासन को लोगों के दिलों तक पहुंचा दिया. जिले 9 देवगुड़ी के संरक्षण और संधारण कार्य का भूमिपूजन जिले के जनप्रतिनिधियों के हाथों संपन्न हुआ. इस कार्य ने बता दिया की प्रशासन का कार्य लोगों तक सुविधा पहुंचाना ही नहीं, बल्कि लोगों की आस्था को भी संरक्षित करना है. प्रशासन ने इन देवगुड़ी स्थलों को एफआरए कलस्टर अर्थात वन संरक्षित क्षेत्र के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है. इन क्षेत्रों में सामुदायिक खेती, पशुपालन, वृक्षारोपण सहित सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया जाएगा.

जिला प्रशासन ने दंतेवाड़ा की जीवनदायनी नदी डंकनी के दोनों किनारों पर रिक्त भूमि को भी एफआरए कलस्टर बनाने का निर्णय लिया है, जिससे जीवनदायनी नदी सदा जीवनदायनी बनी रहे और नदी के दोनों किनारों को लंबी दूरी तक संरक्षित किया जा सके. वन विभाग, कृषि विभाग, पशुधन विभाग और उद्यानिकी विभाग को जिम्मेदारी देकर प्रशासन ने एफआरए कलस्टर निर्मित करने को कहा है. मां दंतेश्वरी मार्ट ने महिला स्व सहायता समूहों के उत्पादन को विक्रय के लिए उचित स्थान प्रदान किया है, जिले में संचालित 16 मां दंतेश्वरी मार्ट में स्व सहायता समूहों द्वारा हस्तनिर्मित अलग-अलग 18 प्रकार के साबुन, नीमयुक्त हर्बल फिनायल के अलावा दैनिक उपयोग की समाग्री का भी विक्रय किया जा रहा है. समूह की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की दृष्टि से प्रशासन की ओर से मार्ट के लिए ई-रिक्शा उपलब्ध कराया गया है, ताकि उसके माध्यम से घर पहुंच सेवा का भी लाभ लोगों को मिल सके, मार्ट से महिलाओं द्वारा आश्रम,छात्रावास, कैंप, सार्वजनिक स्थानों में दैनिक जरुरतों की वस्तुओं की आपूर्ति की जा रही है.

संवाद पहल

यह एक ऐसा प्रेरक अभियान जिसके तहत जिले के होनहारों को जिला प्रमुख से लेकर प्रशासन के कार्यप्रणाली को जानने-समझने और जिलाधीश के साथ एक दिन का समय व्यतीत करने का मौका मिलता है. इस दौरान जिले के होनहार प्रशासन के कार्यों को करीब से देख कर समझ कर अपनी उन तमाम संघर्षों का जिक्र करते हैं, जिन संघर्षों पर चलकर ही उन्होनें सफलताओं को महसूस किया, संघर्ष की लंबी कहानी के बाद जो सफलता मिलती है वह दूसरों के लिए प्रेरणादायक बन जाती है. यहीं वजह हैं कि कलेक्टर दीपक सोनी खुद इन होनहारों के साथ भोजन कर औरों को भी प्रेरणा देने के प्रति आकर्षित करते है. अभियान के तहत जिले के युवा लेखक-उपन्यासकार धनराज डेगल के साथ कलेक्टर ने एक दिन का समय बिताया, धनराज ने 18 वर्ष की आयु में अपनी पहली उपन्यास ‘यू नेवर बिलीव माय स्टोरी’ लिखी है, जो काफी चर्चित हुई. इसके बाद धनराज ने ‘फेयरी ईन ब्लैक फ्रॉक’ लिखी यह उपन्यास भी काफी प्रसिद्धि हुई. धनराज ने ना केवल अपने संघर्षों की कहानी बयां की बल्कि औरों को भी प्रेरणा देने का संकल्प लिया.

दरअसल कहते हैं कि जीवन में उम्मीदें ना हो तो समझो कुछ नहीं है, हम उम्मीदों का दामन थामे अपनी मंजिल की डगर पर निकल जाते हैं. उम्मीद है तो सब कुछ है. उम्मीद एक अहसास और हौंसले की तरह होती है, इसका कोई रूप-रंग तो नहीं, लेकिन हर व्यक्ति इसी के सहारे जिंदा है, तो बस इसी उम्मीद और विश्वास के बल पर दंतेवाड़ा चल पड़ा रहा, चल पड़ा है अपनी उस मंजिल की ओर जहां साधन हो, संसाधन हो, लोग खुशहाल हों, लोगों के मन में विश्वास हो. अंत में ‘अमीर क़ज़लबाग’ की दो लाइने-

“मेरे जुनूं का नतीजा जरूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा”

लेखिका जनसंपर्क विभाग में सहायक संचालक हैं, और बतौर दंतेवाड़ा पीआरओ कार्यरत हैं.