रायपुर। निजी स्कूल के विद्यार्थियों को बिना टीसी के सरकारी स्कूल में भर्ती करने के सरकारी आदेश को लेकर प्रदेश भर में विवाद उठ खड़ा हुआ है। कोरोना काल में निजी स्कूलों के विद्यार्थियों के स्कूल छोड़ने के कुतर्क के बहाने लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा जारी किये गए आदेश को अशासकीय स्कूल स्वयं पर एक बड़ा आक्रमण और उन्हें हतोत्साहित करने वाला निरूपित कर रहे हैं। फेडरेशन ऑफ एजुकेशनल सोसायटीज छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष अजय तिवारी ने स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश को भ्रमपूर्ण एवं प्रदेश के लाखों छात्रों को गुणवत्तापूर्वक शिक्षा उपलब्ध करा रहे हजारों छोटे-बड़े निजी स्कूलों के हित पर कुठाराघात साबित करने वाला बताया है।

फेडरेशन के अध्यक्ष तिवारी ने अपने बयान में कहा है कि 20 सितंबर को संचालक लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा सभी कलेक्टरों और जिला शिक्षा अधिकारियों के नाम जारी आदेश कोरोना काल में प्रदेश के सिविल सोसायटी, समाज, आम जनता, लाखों पालकों, विद्यार्थियों, निजी विद्यालयों के बीच भ्रम फैलाने वाला है। यह आदेश मूलतः स्कूल शिक्षा विभाग की कोरोना महामारी के दौर में अपनी कमजोरियों को ढ़कने के लिए निजी स्कूलों की ओर ध्यान मोड़ने के लिए जारी किया गया है. जिसका मूल संदेश प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनैतिक है। स्कूल शिक्षा विभाग को ऐसे राजनातिक आदेश जारी करने से पहले भली-भाँति विचार-विमर्श करना चाहिए। आनन-फानन में रविवार, छुट्टी के दिन जारी यह आदेश इस बात का प्रमाण है कि विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ के वास्तविक हित को पूरी तरह नज़र अंदाज किया जा रहा है।

स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा बिना टीसी के भर्ती करने के आपात आदेश को राज्य शासन और शिक्षा संहिता के नियमों के विपरीत बताते हुए कहा है कि यह आदेश विभाग द्वारा सर्व सुविधा संपन्न औऱ गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा व्यवस्था मुहैया कराने वाली निजी संस्थाओं के हितों पर कुठाराघात और राज्य में उनके विरूद्ध माहौल बनाकर उन्हें बदनाम करनेवाला है। इस आदेश से भ्रम का वातावरण निर्मित हो गया है कि निजी स्कूल कोरोना महामारी के संकट में पूरी तरह बंद है, वहाँ अफरातफरी मचा हुआ है और निजी स्कूल के विद्यार्थी स्कूल छोड़ रहे हैं। दूसरी ओर जैसे राज्य भर में सारे सरकारी स्कूल जैसे संचालित हो रहे हैं। जबकि वास्तविकता यही है कि प्रदेश में क्या सरकारी क्या निजी स्कूल केवल ऑनलाइन क्लासें ही संचालित हो रही हैं। केंद्र औऱ राज्य सरकार की गाईड लाईन के तहत सभी तरह के स्कूलों को बंद ही रखा जा रहा है। कहीं-कहीं वैकल्पिक उपायों से गाँव, मुहल्लों में अल्पकालीन पढ़ाई हो रही है। राज्य शासन के आदेश अनुसार समूचे छत्तीसगढ़ में न केवल निजी विद्यालय बल्कि, सारे सरकारी स्कूलों में भी कक्षा संचालित नहीं करने के निर्देश हैं। ऐसे में एकतरफा शिक्षा विभाग का यह कहना कि केवल निजी स्कूलों के विद्यार्थी स्कूल त्याग रहे हैं और उन्हें सरकारी स्कूलों में बिना नियम कायदों के भी यानि बिना टीसी भी भरती करायी जाये, पूरी तरह हास्यास्पद है।

तिवारी ने स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश को मूलतः एकतरफ़ा बताते हुए कहा कि विभाग प्रशासन को ऐसे आदेश जारी करने से पहले निजी और अशासकीय शिक्षण संस्थाओं के संगठनों, पदाधिकारियों को बुलवाकर वास्तविक स्थिति का आंकलन करना चाहिए, उनसे सामुहिक तौर पर विचार विमर्श कर हल निकालना चाहिए था। पहले जिला शिक्षा अधिकारियों के माध्यम से वास्तविक स्थिति का पता लगाना चाहिए ताकि वे अपने जिले के निजी स्कूल छोड़ने वाले विद्यार्थियों की मनगढंत कहानी का सच्चा आकंलन कर पाते। यह आदेश अपने बुनियादी स्वरूप में राज्य के निजी विद्यालयों में अपने बच्चों को अध्ययन-अध्यापन करा रहे लाखों पालकों को उकसाने वाला प्रतीत होता है। स्कूल शिक्षा विभाग को यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य के हजारों निजी स्कूल उसकी वैधानिक अनुमति से ही अधिक गुणवत्ता के साथ नौनिहालों को शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं। यह तुलनात्मक रूप से निजी स्कूलों को बदनाम करने की दिशा में सरकारी कुचेष्टा है। यह आदेश कानून सम्मत निजी स्कूलों और सरकारी स्कूलों के बीच विभाजनकारी है और जनता के समक्ष निजी स्कूलों की तौहिनी के लिए उकसावे जैसा ही प्रतीत होता है। प्राइवेट स्कूलों को छोड़ने के लिए समाज को उकसाने जैसा ही है। तिवारी ने यह भी अपील की है कि शिक्षा विभाग के कर्ता-धर्ताओं को इस आदेश को सामान्य दिनों के परिप्रेक्ष्य में सोचकर जारी करना चाहिए, जब निजी स्कूल निजी शिक्षण संस्थायें सरकारी स्कूलों की तुलना में अधिक गुणवत्ता पूर्वक समाज के सभी वर्गों की पहली पसंद है।

फेडरेशन ऑफ एजुकेशनल सोसायटीज छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष अजय तिवारी ने कहा है कि लोक शिक्षण संचालनलाय द्वारा जारी आदेश को तत्काल निरस्त करने के लिए शीघ्र फेडरेशन और विभिन्न संगठनों को लेकर शीघ्र ही एक आपात बैठक बुलायी जा रही है। बैठक में सामूहिक तौर पर प्रकरण की समीक्षा करते हुए इसे निरस्त करने की राज्य शासन से अपील की जायेगी। एक प्रतिनिधि मंडल संचालक, प्रमुख सचिव, शिक्षामंत्री और मुख्यमंत्री से भेंट कर वास्तविकता से अवगत कराते हुए इस आदेश को शिथिल कराने की माँग करेगा। संगठन अतिरिक्त प्रयास करते हुए निजी स्कूलों से स्वेच्छा से भर्ती होनेवाले छात्रों की काउंसिल की जायेगी ताकि वे अपनी सुविधानुसार भविष्य में अधिक गुणवत्तापूर्वक शिक्षा से वंचित न रहें। क्योंकि यह सर्वविदित है कि पालक स्वेच्छा और अपने सांवैधानिक अधिकार के तहत ही अधिक गुणवत्ता वाले निजी स्कूलों में अपने बच्चों को दर्ज कराते हैं, उन्हें यह भी ज्ञात है कि सरकारी स्कूलों में उनकी अपेक्षा के अनुरूप प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की वांछित शिक्षा की पूर्ति नहीं हो पाती है। लंबित आर टी ई प्रतिपूर्ति की राशि विगत 2 वर्षों से शिक्षा विभाग से निजी शालाओं को नहीं मिली है. उन्होंने शासन से मांग की है कि सभी निजी शालाओं में कार्यरत शिक्षक कर्मचारियों को सहायता राशि के रूप में 10 हजार प्रतिमाह दिया जाए.