पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद. शुरुआती रुझानों में गरियाबंद जिले की दोनों ही विधानसभा सीट बिंद्रनवगढ़ और राजिम में कांग्रेस आगे चल रही है. राजिम तो कांग्रेस का गढ़ रहा है, लेकिन बिंद्रानवागढ़ भाजपा का गढ़ रहा है, जहां कांग्रेस आगे चल रही है. भाजपा ने अपने सिटिंग एमएलए का टिकट काटकर यहां से गोवर्धन मांझी को अपना उम्मीदवार बनाया है.
बिन्द्रानवागढ़ विधानसभा
कांग्रेस – जनक ध्रुव 14998
बीजेपी – गोवर्धन मांझी 10586
राउंड 04 – कांग्रेस 4412 मतों से आगे
राजिम विधानसभा
कांग्रेस – अमितेश शुक्ल 15019
बीजेपी – रोहित साहू 11129
राउंड 04 – कांग्रेस 3890 मतों से आगे
कांग्रेस ने बिंद्रानवागढ़ विधानसभा सीट के लिए जनक राम ध्रुव को अपना प्रत्याशी बनाया है. जनक राम ध्रुव 2013 में क्रीड़ा अफसर के पोस्ट से त्याग पत्र देकर राजनीति में आए थे, कांग्रेस पार्टी ने उन्हें ओंकार शाह के जगह पर रिप्लेस कर दिया था. क्षेत्र और राजनीति में नए थे लिहाजा भाजपा प्रत्याशी गोवर्धन मांझी ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए रिकार्ड 30536 मतों से हराया था. पिछले 10 साल में जनक ने क्षेत्र में जनता के बीच अच्छी पैठ बना लिया है.
विधान सभा का पहला चुनाव 1962 में
विधान सभा का पहला चुनाव 1962 में हुआ प्रजातांत्रिक सोसलिस्ट पार्टी से डेंडूपदर निवासी खामसिंह कोमर्रा पहले निर्वाचित विधायक बने. कांग्रेस प्रत्याशी श्यामाकुमारी को हरा कर कोमर्रा दूसरी बार 1967 में जनसंघ से विधायक बन गए. तीसरी बार 1972 में भी कोमर्रा मैदान में थे लेकिन इस बार उन्हें छुरा घराने से निर्दलीय प्रत्याशी रही पार्वती कुमारी शाह से हार का सामना करना पड़ा था.1977 में मुनगापदर से बलराम पुजारी जनसंघ के प्रत्याशी रहे जिन्होंने कांग्रेस की प्रत्याशी बन चुकी पार्वती शाह को हराया. 1980 के चुनाव में भाजपा अस्तित्व में आ चुका था. मूनगापदर के बलराम पुजारी को अपना प्रत्याशी बनाया. इस साल कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी अमलीपदर के ईश्वर सिंह पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया. लेकिन जीत भाजपा की हुई.
1985 के चुनाव ने कांग्रेस के प्रत्याशी रहे ईश्वर सिंह पटेल विधायक चुने गए थे. 1990 में बलराम पुजारी के सामने कांग्रेस ने मूंगझर के महेश्वर सिंह कोमर्रा को खड़ा किया था, इस बार फिर पदर वाले पुजारी विधायक चुने गए. 1993, व 1998 के चुनाव ने पदर की उपस्थिति नही थी, लेकिन उसके बाद फिर से पदर की दावेदारी रही. 2003 के चुनाव में भाजपा ने गोहरापदर के गोवर्धन मांझी को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वे 1993 में विधायक रह चुके कांग्रेस के ओंकार शाह से हार गए. 2008 में मूनगापदर के डमरूधर पुजारी, 2013 में गोहरा पदर के गोवर्धन मांझी, और 2018 में फिर से डमरुधर पूजारी विधायक बन कर पादर के मिथक को कायम रखा.
भाजपा, अभेद्य गढ़ बताती है बिंद्रानवागढ़ को
इस सीट के साथ भाजपा का अभेद्य गढ़ का एक प्रमाणिक मिथक भी जुड़ा हुआ है. आंकड़े बताते हैं की अब तक हुए 13 चुनाव में केवल 3 बार कांग्रेस अपना विधायक बना सकी है. राजनीतिक विश्लेषक एवम वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील कुमार बेहेरा बताते हैं कि भाजपा के बागी कांग्रेस के जीत की वजह बनती है. उन्होंने बताया कि 1985 में भाजपा के डमी प्रत्याशी धनाशाय नागेश ने बगावत किया, कांग्रेस के ईश्वर सिंह पटेल जीते. 1993 में भाजपा के चरण सिंह मांझी महज 1331 मतों से व 2003 मे गोवर्धन मांझी महज 8 हजार मतों से बागियों के कारण हारी थी, दोनों बार कांग्रेस से कुमार ओंकार शाह विधायक चुने गए थे. भाजपा अपने सीटो के 4 केटेगिरी में इस क्षेत्र को ए केटेगिरी में रखी हुई है.
गिरशुल के ठाकुर गौकरण सिंह पहले मनोनित विधायक
आजादी के बाद विधायिका अस्तित्व में आने के बाद बिंद्रानवागढ के लिए 1952 में प्रथम विधायक के रूप में गिरशुल के गोकरण सिंह ठाकुर को मनोनित किया गया था, इस समय राजिम भी इन्ही के अधीन था. 1957 में दो क्षेत्र में विभक्त किया गया, राजिम के सामान्य सीट से पंडित श्याम चरण शुक्ल व बिंद्रानवागढ़ एसटी आरक्षित सीट के लिए श्यामा कुमारी को कांग्रेस ने मनोनित किया था.
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