शिवम मिश्रा, रायपुर। छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब और कोयला घोटाले मामले में आर्थिक अपराध विंग (EOW) की दबिश कार्रवाई पूरी हो गई है। राजधानी रायपुर में शराब कारोबारी अवधेश यादव और उनके सहयोगियों के छत्तीसगढ़ स्थित तीन ठिकानों पर रेड की गई, जहां कार्रवाई समाप्त हो गई। वहीं कारोबारी अवधेश के बिहार और झारखंड स्थित ठिकानों पर जांच अब शेष है। इसके अलावा सौम्या चौरसिया के निजी सहायक रहे जयचंद कोसले के सभी ठिकानों पर भी दबिश कार्रवाई पूरी कर ली गई है। दोनों घोटालों से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज, मोबाइल फोन, नगदी और तकनीकी उपकरण जब्त किए गए हैं। जब्त सामग्रियों की जांच अभी जारी है।

बता दें कि शराब और कोयला घोटाला मामले में रविवार की सुबह EOW ने राजधानी रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में कुल 10 ठिकानों पर छापेमारी की। शराब घोटाले में आर्थिक अपराध विंग ने प्रदेशभर के इन ठिकानों पर कार्रवाई की। रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर में शराब कारोबारियों के घरों पर रेड पड़ी, जिसमें राजधानी रायपुर में 3-4 ठिकानों पर दबिश दी गई। रायपुर स्थित शिव विहार कॉलोनी में शराब कारोबारी अवधेश यादव के घर भी EOW की टीम पहुंची और दस्तावेजों की जांच कर रही है।

क्या है छत्तीसगढ़ का शराब घोटाला मामला?

ईडी के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के शासनकाल के दौरान साल 2019 से 2022 तक लाइसेंसी शराब दुकानों पर डुप्लिकेट होलोग्राम लगाकर बड़ी मात्रा में अवैध शराब बेची जाती थी, जिसके चलते छत्तीसगढ़ के राजस्व विभाग को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ था। उस दौरान शराब को स्कैनिंग से बचाने के लिए नकली होलोग्राम भी लगाया जाता था, ताकि वह किसी की पकड़ में न आ सके। इस होलोग्राम को बनाने के लिए घोटाले में संलिप्त लोगों ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में होलोग्राफी का काम करने वाली PHSE (प्रिज्म होलोग्राफी सिक्योरिटी फ़िल्म्स प्राइवेट लिमिटेड) कंपनी को टेंडर दिया था।

ईडी ने अपनी जांच के बाद यह बताया है कि यह कंपनी होलोग्राम बनाने के लिए पात्र नहीं थी, फिर भी नियमों में संशोधन करके यह टेंडर उसी कंपनी को दे दिया गया था। ईडी के टेंडर दिलाने के एवज में कंपनी के मालिक से भारी कमीशन लिया गया था। यह जानकारी सामने आने के बाद जब कंपनी के मालिक विधु गुप्ता को ईडी ने गिरफ्तार किया तो उसने कांग्रेस सरकार में CSMCL में एमडी अरुणपति त्रिपाठी, बिजनेसमैन अनवर ढेबर और अनिल टुटेजा का नाम लिया।

ED ने जब इन तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया, तो मामले में और भी खुलासे होने लगे। इसके बाद साल 2024 के अंत में कांग्रेस विधायक और पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा का नाम सामने आया। सूत्रों के मुताबिक ED की जांच में पता चला है कि कवासी लखमा को शराब घोटाले से पीओसी (Proceeds of Crime) से हर महीने कमिशन मिलाता था।

क्या है कोयला घोटाला मामला ?

ED की जांच में सामने आया कि कुछ लोगों ने राज्य के वरिष्ठ राजनेताओं और नौकरशाहों से मिलीभगत के बाद ऑनलाइन मिलने वाले परमिट को ऑफलाइन कर कोयला ट्रांसपोर्ट करने वालों से अवैध वसूली की। जुलाई 2020 से जून 2022 के बीच कोयले के हर टन पर 25 रुपये की अवैध लेवी वसूली गई। 15 जुलाई 2020 को इसके लिए आदेश जारी किया गया था।

खनिज विभाग के तत्कालीन संचालक IAS समीर बिश्रोई ने आदेश जारी किया था। यह परमिट कोल परिवहन में कोल व्यापारियों को दिया जाता है। पूरे मामले का मास्टरमाइंड किंगपिन कोल व्यापारी सूर्यकांत तिवारी को माना गया। इसमें जो व्यापारी पैसे देता उसे ही खनिज विभाग से पीट और परिवहन पास जारी होता था, यह रकम 25 रुपये प्रति टन के हिसाब से सूर्यकांत के कर्मचारियों के पास जमा होती थी। इस तरह से स्कैम कर कुल 570 करोड़ रुपये की वसूली की गई।

कहां खर्च की अवैध कमाई

जांच में सामने आया है कि इस घोटाले की राशि को सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं को रिश्वत देने में खर्च किया गया। साथ ही चुनावी खर्चों के लिए भी इस अवैध राशि का इस्‍तेमाल किया गया। आरोपियों ने इससे कई चल-अचल संपतियों को खरीदा।

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