रायपुर। मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदेश में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के बैनर तले 25 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए हैं. कोरबा, राजनांदगांव, सूरजपुर, सरगुजा, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही, बिलासपुर, धमतरी, जशपुर, बलौदाबाजार व बस्तर सहित 20 से ज्यादा जिलों में अनेकों स्थानों पर सड़क रोककर भारी विरोध प्रदर्शन कर पुतले जलाए गए. किसानों के इस चक्का जाम का प्रदेश में व्यापक असर देखने को मिला है और राष्ट्रीय राजमार्ग सहित राज्य की सड़कें और विशेष रूप से गांवों को शहरों से जोड़ने वाली सड़कों पर आवागमन बाधित हुआ है. छत्तीसगढ़ में किसान आंदोलन के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली (जेएनयू) से दो छात्र प्रतिनिधि प्रीति उमराव के नेतृत्व में यहां आए, जिन्होंने प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला और छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते ने सफल चक्का जाम के लिए किसान समुदाय और आम जनता का आभार व्यक्त किया है. उन्होंने कहा है कि देश और छत्तीसगढ़ की जनता ने इन कानूनों के खिलाफ जो तीखा प्रतिवाद दर्ज किया है, उससे स्पष्ट है कि आम जनता की नजरों में इन कानूनों की कोई वैधता नहीं है और इन्हें निरस्त किया जाना चाहिए. किसान संघर्ष समन्वय समिति के कोर ग्रुप के सदस्य हन्नान मोल्ला ने भी प्रदेश में इस सफल चक्का जाम के लिए किसानों को बधाई दी है.
आंदोलन की सफलता का दावा करते हुए इन संगठनों ने आरोप लगाया कि इन कॉर्पोरेटपरस्त और कृषि विरोधी कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है. कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से देश के किसान समर्थन मूल्य से वंचित हो गए हैं. चूंकि ये कानून किसानों की फसल को मंडियों से बाहर समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदने की कृषि-व्यापार करने वाली कंपनियों, व्यापारियों और उनके दलालों को छूट देते हैं और किसी भी विवाद में किसान के कोर्ट में जाने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाते हैं. इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है.
आंदोलनकारी संगठनों का मानना है कि समर्थन मूल्य पर सरकार यदि धान नहीं खरीदेगी, तो कालांतर में गरीबों को एक और दो रुपये की दर से राशन में चावल-गेहूं भी नहीं मिलेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पंगु हो जाएगी. इन कानूनों का असर सहकारिता के क्षेत्र की बर्बादी के रूप में भी नज़र आएगा. इसके साथ ही व्यापारियों को असीमित मात्रा में खाद्यान्न जमा करने की छूट देने से और कंपनियों को एक रुपये का माल अगले साल दो रुपये में और उसके अगले साल चार रुपये में बेचने की कानूनी इजाजत देने से कानून बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ गई है और बाजार की महंगाई में आग लग है.
उन्होंने कहा कि इन कानूनों को बनाने से मोदी सरकार की स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और किसानों की आय दुगुनी करने की लफ्फाजी की भी कलई खुल गई है. किसान नेताओं ने कहा कि कॉर्पोरेट गुलामी की ओर धकेलने वाले इन कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ देश के किसान तब तक संघर्ष करेंगे, जब तक इन्हें बदला नहीं जाता. आज के आंदोलन में सभी किसान संगठन 10 नवम्बर से धान की खरीदी शुरू करने और घोषित समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल की खरीदी को कानूनन अपराध घोषित करने की भी मांग की.