रायपुर। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर आज पूरे देश के किसानों के साथ ही छत्तीसगढ़ के किसानों ने भी गांव-गांव में मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ ताली-थाली-ढोल-नगाड़ा बजाकर अपना विरोध प्रकट किया. किसान विरोधी तीन कानूनों और बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने की मांग की. छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा सहित छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के सभी घटक संगठनों ने प्रदेश के सूरजपुर, कोरबा, मरवाही, रायपुर, धमतरी, सरगुजा, राजनांदगांव, गरियाबंद, बलौदाबाजार सहित 15 से अधिक जिलों में विरोध प्रदर्शन संगठित किया.

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि मोदी को अपने मन कु बात देश को सुनाने से पहले देश के जन-गण-मन की बात सुननी होगी और वह किसान विरोधी तीनों कानूनों और बिजली कानून में संशोधनों की वापसी चाहती है. पूरे देश के किसान आज अपनी खेती-किसानी को बचाने के लिए सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य और कर्ज़मुक्ति चाहता है, जबकि मोदी सरकार के कानून कृषि अर्थव्यवस्था को कार्पोरेटों के हाथों में सौंपने के लिए किसानों के लिए डेथ वारंट है. उन्होंने कहा कि यदि सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेती, तो दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान दिल्ली कूच करने से नहीं हिचकेंगे और मोदी सरकार की लाठी-गोलियां धरी रह जाएंगी. उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर वर्दी के नीचे एक किसान है.

इस देशव्यापी किसान आंदोलन के खिलाफ संघी सरकार द्वारा आधारहीन दुष्प्रचार करने की भी किसान सभा नेताओं ने निंदा की. उन्होंने कहा कि आंदोलनकारी किसान संगठनों से उनके मुद्दों पर बातचीत करने के बजाए सरकार उन पर अपना एजेंडा थोपना चाह रही है. उन्होंने कहा कि इन कानूनों में संशोधनों से इसका कॉर्पोरेटपरस्त चरित्र नहीं बदलने वाला है, इसलिए इसमें संशोधन की कोई गुंजाइश नहीं है. 29 दिसम्बर की वार्ता में सरकार को स्पष्ट करना होगा कि क्या वह इन कानूनों को वापस लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का कानून बनाना चाहती है या नहीं। सरकार के इस जवाब पर ही किसान आंदोलन के आगे के कार्यक्रम तय किये जायेंगे.

किसान सभा नेताओं ने कहा कि देश में पर्याप्त खाद्यान्न का उत्पादन होने के बावजूद केंद्र सरकार की जन विरोधी नीतियों के चलते आज हमारा देश दुनिया में भुखमरी से सबसे ज्यादा पीड़ित देशों में से एक है और इस देश के आधे से ज्यादा बच्चे और महिलाएं कुपोषण और खून की कमी का शिकार हैं. कृषि के क्षेत्र में जो नीतियां लागू की गई है, उसका कुल नतीजा किसानों की ऋणग्रस्तता और बढ़ती आत्महत्या के रूप में सामने आ रहा है. मोदी सरकार को जवाब देना होगा कि विकास के कथित दावों के बावजूद उसके राज में किसान इतने बदहाल क्यों हो गए? क्यों 5.5 करोड़ किसान परिवारों को उनको मिलने वाली निधि से असम्मानजनक ढंग से बाहर कर दिया गया है?

उल्लेखनीय है कि आज रेडियो और टीवी में मोदी ने ‘मन की बात’ का प्रसारण किया है, तो किसान संगठनों ने भी इन तीन काले कानूनों के खिलाफ अपनी बात सुनाने के लिए पूरे देश में थालियां बजाने का फैसला किया था.