रायपुर। डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय रायपुर के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में 3 साल की बच्ची के छाती के अंदर हार्ट के पीछे स्थित और हार्ट से चिपके हुए 1.5 किलोग्राम के ट्यूमर (कैंसर) का सफल ऑपरेशन करके बच्ची को नई जिंदगी दी गई. मेडिकल भाषा में इस ट्यूमर को गैन्ग्लियो न्यूरोफाइब्रोमा ऑफ लेफ्ट हीमोथोरेक्स (ganglioneurofibroma of left hemothorax) कहा जाता है. सामान्य भाषा में इसे पोस्टीरियर मेडिस्टाइनल ट्यूमर कहा जाता है.

ऑपरेशन के पहले छाती का एमआरआई फिल्म, जिसमें बायां फेफड़ा में बहुत बड़ा ट्यूमर दिख रहा है.

रायगढ़ के टुडरी गांव में रहने वाले परिवार की बच्ची जन्म के बाद पूरी तरह सामान्य थी परंतु 2 साल की उम्र होते-होते उसके चलने की क्षमता समाप्त हो गई. बच्ची अपने पैरों पर खड़ी भी नहीं हो पा रही थी. तब उन्होंने उड़ीसा के बुरला मेडिकल कॉलेज में दिखाया परंतु वहां बीमारी का पता नहीं चला. उसके बाद वे रायपुर एम्स में दिखाये जहां पर बीमारी का पता चला. इसमें बच्ची के स्पाइनल कॉड (रीढ़ की हड्डी) में ट्यूमर था. जिसके कारण बच्ची के पैरों की ताकत समाप्त हो गई थी. एम्स के न्यूरोसर्जन ने मासूम के स्पाइनल कॉर्ड से ट्यूमर निकाल दिया जिससे थोड़ा बहुत बच्ची चलने लगी परंतु कुछ ही समय बाद यह ट्यूमर पूरे बायीं छाती में फैल गया और यह ट्यूमर इतना बड़ा था जिससे बच्ची ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी.

ऑपरेशन के बाद ट्यूमर निकल जाने बाद का छाती का एक्सरे, जिसमें बायां फेफड़ा बिल्कुल सामान्य सा दिखाई दे रहा है.

एम्स के डॉक्टरों ने ट्यूमर के फैलाव को देखते हुए यह केस अम्बेडकर अस्पताल के हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के पास रेफर कर दिया. डॉ. साहू बताते हैं कि यह ट्यूमर इतना बड़ा था कि शरीर के मुख्य अंग जैसे महाधमनी, सबक्लेवियन आर्टरी (left subclavian artery ), हार्ट की झिल्ली ( pericardium ) एवं लंग हाइलम् को चपेट ( invaded) में ले लिया था जिसके कारण इसको निकालना असंभव सा प्रतीत हो रहा था. डॉ. साहू बताते हैं कि उन्होंने फेफड़े और छाती के कैंसर के 250 से भी ज्यादा केस ऑपरेट कर चुके हैं. साथ ही पोस्टेरियर मेडिस्टाइनल ट्यूमर के 25 से भी ज्यादा ऑपरेशन कर चुके हैं परंतु अभी तक 3 साल की बच्ची में इतना बड़ा पोस्टेरियर मेडिस्टाइनल ट्यूमर का केस पहली बार देखा. पहले तो ऑपरेशन के लिए मना कर दिया कि यह केस ऑपरेशन के लायक नहीं है क्योंकि इसमें बच्चे के जान जाने की 90 से 95 प्रतिशत संभावना है और ऑपरेशन नहीं भी करवाते तो कैंसर बीमारी के कारण 100 प्रतिशत जान जाने की संभावना है. फिर भी 5 प्रतिशत सफलता की आशा के साथ बच्ची के माता-पिता ऑपरेशन के लिए राजी हो गए.

इस ऑपरेशन को पहले एसीआई के हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग में करने के लिए प्लान किया गया था. परंतु ट्यूमर के बहुत बड़े होने और मासूम की उम्र बहुत ही कम होने तथा हाई रिस्क केस होने के कारण यहां के एनेस्थीसिया विशेषज्ञों ने डीकेएस हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के ऑपरेशन थियेटर में ऑपरेशन की सलाह दी. डी. के. एस. सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक सर्जरी की एचओडी डॉ. शिप्रा शर्मा और डॉ. नितिन शर्मा से बात करके बच्चे को डीकेएस शिफ्ट कराया गया.

ऐसे हुआ ऑपरेशन

बच्ची के छाती के महत्वपूर्ण अंगों को बचाते हुए लगभग 1.5 किलोग्राम का ट्यूमर पूर्णतः (R 0 Resection) निकाल दिया गया. यह ट्यूमर इतना बड़ा था कि इसको टुकड़ों में निकालना पड़ा. जिस स्पाइनल कार्ड से ट्यूमर की उत्पत्ति हुई थी वहां भी बारीकी से ट्यूमर के हर हिस्से को निकाला गया. स्पाइनल कॉर्ड को बचाते हुए ड्यूरा मेटर (dura mater) को भी रिपेयर किया गया जिससे स्पाइल फ्लुइड (cerebrospinal fluid (CSF) ) लीकेज नहीं हो सके.

मरीज को चार दिनों तक वेंटीलेटर में रखना पड़ा. ऑपरेशन के बाद लगभग 10 दिनों तक बच्ची की हालत नाजुक थी. डॉ. कृष्णकांत साहू ने डी. के. एस. सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक सर्जरी एचओडी डॉ. शिप्रा शर्मा, एसोसिएट प्रो. डॉ. नितिन शर्मा एवं एनेस्थीसिया विभाग के कंसल्टेंट, रेजिडेंट एवं नर्सिंग स्टाफ का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह ऑपरेशन टीम वर्क के कारण ही सफल एवं संभव हो पाया. बिना पोस्ट ऑपरेटिव केयर यानी गहन देखभाल के बिना कोई भी ऑपरेशन सफल नहीं होता है इसलिए पोस्ट ऑपरेटिव केयर करने वाले सभी स्टाफ को धन्यवाद देता हूं. बच्ची को 18 दिनों बाद अस्पताल से डिस्चार्ज दे दिया गया एवं बच्ची अपने प्रथम फ़ॉलो अप में बिल्कुल स्वस्थ है. बच्ची का चलना फिरना शुरू हो गया है. यह ऑपरेशन स्वास्थ्य सहायता योजना की मदद से पूर्णतः निशुल्क हुआ.