हसदेव अरण्य का आंदोलन एक और जीत की ओर आगे बढ़ेगा. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पूर्व में दिया अपना शपथ पत्र बदल दिया है. इस नए शपथ पत्र के अनुसार हसदेव अरण्य में संचालित परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान के दूसरे चरण में उपलब्ध 350 मिलियन टन कोयला राजस्थान की 20 वर्षो की कोयला की जरूरतों को पूरा करने के लिए सक्षम है. हसदेव में किसी भी नए कोल ब्लॉक का आवंटन या उपयोग नहीं होना चाहिए.

शपथ पत्र में कहा गया है कि भारतीय वन्य जीव संस्थान ने कहा है कि हसदेव अरण्य पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र है. जहां मानव हाथी संघर्ष की स्थिति गंभीर है. यहां कोयला खनन राज्य के हित में नहीं होगा.

शपथ पत्र में छत्तीसगढ़ की विधासभा में सर्व सम्मति से दिनांक 26 जुलाई 2022 को पारित इस संकल्प का भी जिक्र है जिसमें कहा गया है कि हसदेव अरण्य में आवंटित सभी कोल ब्लॉक निरस्त किए जाएं. शपथ पत्र में राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजे गए उस पत्र का भी जिक्र है जिसमें परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति को निरस्त करने का निवेदन किया गया है. शपथ पत्र में कहा गया है कि प्रदेश के कुल कोयले का हसदेव अरण्य में मात्र 8 प्रतिशत कोयला ही है.

यानी इस क्षेत्र को संरक्षित करके भी देश की कोयला की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. हालांकि हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति का मानना है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा के संकल्प के तारतम्य और संविधान की पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों की ग्रामसभाओं के निर्णयों का पालन करते हुए राज्य सरकार को परसा कोल ब्लॉक को जारी वन स्वीकृति के अंतिम आदेश को तत्काल वापिस लेना चाहिए. हसदेव की समृद्ध वन संपदा और जैव विविधता न सिर्फ स्थानीय आदिवासियों बल्कि सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के पर्यावरण और जीवन के लिए आवश्यक है.