फीचर स्टोरी । गांव में एक अजीब सा सन्नाटा रहता था. हरेली तिहार के बाद गांव से लोगों की रवानगी शुरू हो जाती थी. पुरूषों के साथ-साथ महिलाएं भी बच्चों के साथ शहर की ओर निकल पड़ती थीं. बस स्टैंड से लेकर रेल्वे स्टेशन तक बोरियों में कपड़ा-बर्तन-राशन लिए ग्रामीणों की भीड़ शहरों में दिखने लगती. आज भी दिखती है, लेकिन बहुत कम. इस तरह के दृश्यों को एक शब्द में पलायन कहा जाता है.
पलयान… छत्तीसगढ़ में यह शब्द घाव की तरह ही रहा है. इस घाव को भरने की कोशिश दशकों से होती रही है. लेकिन यह घाव कभी भरा नहीं. हालांकि आज स्थिति ऐसी नहीं है. इस घाव को भरने की एक सफल कोशिश हुई है. पूरजोर तरीके लगातार हो रही है. इस कोशिश को सफलता भी मिली है और निरंतर मिल रही है.
सरकार ने छत्तीसगढ़ से पलायन की दाग को मिटाने, गांवों से सुनापन को खत्म करने और गांव-गांव में रोजगार की व्यवस्था करने की जो कोशिश की है, वह बहुत हद तक कामयाब रही है. यही वजह कि आज सरकार हर मंच से पूर्ण विश्वास के साथ कहती है कि छत्तीसगढ़ में पलायन पर ब्रेक लग गया है. प्रदेश में बेरोजगारी दर 0.4 प्रतिशत पहुंच गई है. यह सब संभव हो सका है कि गांव आधारित योजनाओं से. उन योजनाओं जिसकी चर्चा आज देश भर में हो रही है. सुराजी से गोधन और किसान न्याय से भूमिहीन न्याय तक. इन योजनाओं ने आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ऐसी मजबूती दी है कि अब गांव-गांव स्वरोजगार है. विशेषकर इन योजनाओं से किसानों और महिलाओं को सबसे ज्यादा लाभ मिला है.
वैसे कहते हैं कि सपने सच होते हैं. अगर सपनों को पूरा करने के लिए ईमानदारी के साथ प्रयास किया गया हो. छत्तीसगढ़ में बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यही किया है. इसे हम नहीं बल्कि राज्य के वो हजारों महिलाएं कह रही हैं, जो अपने सपने को सच कर पा रही है. आर्थिक उन्नति और प्रगति के पथ पर राज्य की महिलाएं आज निरंतर आगे बढ़ रही है. आत्मनिर्भरता के मामले में आज ग्रामीण महिलाएं शहरी काम-काजी महिलाओं से कहीं पीछे नहीं रह गई है.
भूपेश सरकार की आजीविकामूलक गतिविधियों ने ग्रामीण महिलाओं को ऐसा जोड़ा कि आज गांव-गांव महिला समूहों की लंबी कड़ियां जुड़ गई हैं. हर गांव में महिला स्व-सहायता समूह. हर महिला स्व-सहायता समूह के पास अपना खुद का काम. स्वयं के व्यवसाय के साथ समूह में शामिल हर महिलाओं के पास रोजगार. रोजगार के साथ आय का जरिया. आय के साथ सच होते सपने. और सच होते सपने को आप इस रिपोर्ट में सुनीता, कविता, रूपेश्वरी, गणेशी की कहानी के साथ पढ़ेंगे, देखेंगे.
केंचुआ और सुनीता
सपने सच होते हैं इसे आप सुनीता निषाद से समझिए. सुनीता निषाद बालोद जिले में अकलवारा गांव की रहने वाली है. सुनीता निषाद एक महिला समूह की सदस्य है. समूह का नाम दुर्गा शक्ति. नाम के अनुरूप ही सुनीता आज महिलाओं के लिए एक शक्ति की तरह है. नारी शक्ति के रूप में सुनीता अपनी पहचान बना चुकी है. सुनीता की पहचान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला के तौर पर है.
दरअसल सुनीता आर्थिक रूप से मजबूत हुई सरकार की दो योजनाओं से. इन योजनाओं में नरवा-गरवा, घुरवा-बारी (सुराजी) और गोधन न्याय शामिल हैं. इन योजनाओं के जरिए सरकार गांव-गांव में समूहों के माध्यम से जैविक खाद का निर्माण करवा कर रही है. जैविक खाद में केंचुआ सबसे उपयोगी है. इसी उपयोगी केंचुआ को पालने और उसे समूह के माध्यम से बेचने का काम कर रही है सुनीता.
सुनीता बताती है कि 6 महीने पहले समूह की महिलाओं ने केंचुआ पालन का काम शुरू किया. लेकिन 6 महीने में इससे 2 लाख 88 हजार रुपये की कमाई हो गई. इससे आत्मविश्वास काफी बढ़ गया है. समूह में शामिल महिलाएं अब परिवार में आर्थिक जरूरतों को पूरा कर पा रही हैं. हम सब सदस्य महिलाएं ज्यादातर प्राप्त आय को अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं. मेरी बेटी को खूब पढ़ना चाहती है. मैं आज अपनी बेटी की पढ़ाई में थोड़ी मदद कर पा रही इस बात की मुझे खुशी है. मेरी बेटी बीसीए करना चाहती थी, वह आज अपने सपने को साकार कर रही है.
… अगर बघेल सरकार की योजनाएं नहीं होती
सुनीता बताती है कि समूह की ओर से 18 क्विंटल केंचुए का उत्पादन किया गया है. इसकी 5 ब्लॉकों में की है. इससे समूह को 2 लाख 88 हजार रुपये की आय हुई है. इसके अलावा गोबर के माध्यम से ही 1 लाख 29 हजार रुपये का वर्मी खाद से आय अर्जित की है. साथ ही फिनाइल के विक्रय से भी 24 हजार रुपये की राशि प्राप्त हो गई है. वो कहती है कि अगर गौठान नहीं होता, भूपेश बघेल सरकार की योजनाएं नहीं होती तो उनके सपने सच नहीं होते. सफलता मिलती है तो आगे की उम्मीद भी बढ़ जाती है.
मालीघोरी की रूपेश्वरी
सपने सच होते है में ये कहानी है बालोद जिले में मालीघोरी गांव की रूपेश्वरी सुधाकर की. रूपेश्वरी गांव के गौठान में स्व-सहायता महिला समूह का संचालन करती है. गौठान में संचालित विभिन्न रोजगारमूलक गतिविधियों से समूह की महिलाएं जुड़ी हुई हैं.
रूपेश्वरी के मुताबिक 2021 से वे गोठान में कार्यरत हैं और 5 लाख 9 हज़ार 462 किलो वर्मी खाद का निर्माण कर चुकी हैं. पूरा वर्मी बिक गया है और उन्होंने लगभग 3 लाख 65 हज़ार रुपये के वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री की है. उन्होंने बालोद दौरे के दौरान मुख्यमंत्री से शेड ना होने की वजह से गर्मी में केंचुओं को सुरक्षित रखने में आ रही समस्या की जानकारी देते हुए गोठान में शेड निर्माण की मांग की. यह मांग तत्काल मुख्यमंत्री ने पूरी कर दी.
कविता की इमली चपाती
इसी कड़ी में ये कहानी है कविता देवी मंडावी की. कविता आम ग्रामीण महिला है. महिला समूह के साथ जुड़ने के बाद कविता की जिंदगी भी तेजी बदलने लगी है. कविता ने अपना छोटा कारोबार इमली चपाती बनाने का शुरू किया. शुरुआत बिहान योजना से 60 लोन के साथ हुई. लोन से मिले पैसे के साथ कविता ने इमली चपाती बनाने का काम शुरु किया. कविता के साथ इस कार्य में 13 महिलाएं भी जुड़ीं.
कविता बताती है कि एक महीने में अच्छी आमदनी हो गई. एक महीने में करीब 84 हजार रुपये का लाभ समूह को हुआ. समूह ने इस पैसे से एक पिकअप गाड़ी खरीदी और किराये पर गाड़ी लगा दी गई. इससे अब आय का नया जरिया बन गया है.
फिनाइल से राइस मिलर तक
सपने सच होते है में से एक गणेशी टंडन भी है. गणेशी भी बालोद जिले की रहने वाली है. गणेशी टंडन नारीशक्ति महिला स्व-सहायता समूह की सदस्य है. गणेशी की शुरुआत फिनाइल व्यवसाय के साथ हुई. इस कारोबार को धीरे-धीरे गणेशी ने आगे बढ़ाया. शुरुआती फायदा 25 हजार रुपये तक हुआ. इससे गणेशी का आत्मविश्वास बढ़ा. वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती गई. उन्होने अपने कारोबार को विस्तार दिया. गणेशी ने फिनाइल के साथ-साथ मिनी राइस मिल चलाना भी शुरू किया. इससे 95 हजार रुपये तक फायदा हुआ.
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