सत्यपाल सिंह,रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने त्योहारों को देखते हुए पटाखों पर बैन न लगाते हुए फोड़ने के लिए समय निर्धारित कर दिया है. सरकार के इस निर्णय को डॉक्टर, विशेषज्ञ और पर्यावरण विद ने खतरनाक माना है. कोरोना काल में 2 घंटे के लिए आतिशबाजी ज्यादा खतरनाक हो सकता है. प्रति सेंकेड प्रदूषण का स्तर बढ़ेगा. विशेषज्ञों का कहना है जब नियंत्रण के उचित व्यवस्था नहीं है, तो पूर्णरूप से प्रतिबंध लगाना चाहिए.

हार्ट एवं चेस्ट विभाग के एचओड़ी डॉक्टर कृष्णकांत साहू का कहना है कि फेफड़े से संबंधित रोगियों के लिए पटाखे से फैलने वाला प्रदूषण बहुत ज़्यादा खतरनाक साबित होगा. कोरोना से संक्रमित मरीजों का फेफड़ा ज़्यादा प्रभावित होता है. अगर लगातार धमाके हुए तो जान जाने का भी खतरा है. उन्होंने आगे बताया कि धमाके से हाइड्रोजन सल्फाइड और सल्फर डाइऑक्साइड के साथ धूल व अन्य पार्टीकल निकलते हैं, जो सीधे फेफड़े में जाकर फंस जाते हैं. जिससे सांस लेने में बहुत दिक्कत होती है. यह गैस खतरनाक होता है.

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ईएनटी डॉक्टर राकेश गुप्ता का कहना है कि लगातार धमाके हुए तो लोग बहरापन के शिकार होंगे. साथ ही आंख, कान, नाक में भी कई तरह के इन्फेक्शन देखने को मिलेगा. दो घंटे इसके लिए विकल्प नहीं है, बल्कि पूर्णरूप से प्रतिबंध करना चाहिए. दो घंटे आतिशबाज़ी प्रति सेकेंड पर्यावरण को डबल स्पीड से प्रदूषित करेगा. उन्होंने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के पास नियंत्रण के लिए उपयुक्त साधन मशीन नहीं है. जिस कारण से डेसीबल आधारित ब्लास्टर को नहीं रोका जा सकता है.

बता दें कि कोरोना वायरस इंसानों के फेफड़ों पर सीधा असर डालता है. इसका संक्रमण फेफड़ों में इतना फैल जाता है कि ऑक्सीजन क्षमता को कम या बिलकुल खत्म कर देता है. इससे संक्रमित मरीज की मौत भी हो जाती है. सिर्फ फेफड़ों का संक्रमण कोरोना के दौर में मरीजों की जान ले रहा है. ऐसे में अब पटाखों के धुंए का डर भी सताने लगा है. फेफड़ों में धुंआ जाने से मरीजों के लिए जानलेवा हो सकता है. खासतौर से अस्थमा मरीजों के लिए कोरोना से बचना ही मुश्किल हो रहा है. ऐसे में वे पटाखे के धुएं की चपेट में आ गए, तब भी उनके लिए इलाज मुश्किल हो सकता है.