छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी योजना मिलेट्स मिशन के अंतर्गत प्रदेश के जिलों के अंतर्गत सभी विकासखण्डों में मिलेट्स वर्ष का क्रियान्वयन किया जा रहा है. पूरे छत्तीसगढ़ में मिलेट के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. कृषक अपने खेतों में मिलेट्स फसलों का उत्पादन कर रहे हैं. साथ ही इससे कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में भी मदद मिल रही है.

महासमुंद जिले में पहली बार कुपोषण को दूर करने के लिए लहलहाती पोषक रागी फसल की खेती की गई है. रागी फसल कृषक संतकुमार पटेल, पूरन पटेल, सागर पटेल और अन्य ने करीब 100 एकड़ में खेती कर रहे हैं. जिले को कुल लक्ष्य 1500 हेक्टेयर प्राप्त हुआ है. कृषि विभाग ने जिले के पांचों विकासखण्डों को 310 हेक्टेयर में 31 क्विंटल रागी बीज प्रति विकासखण्ड के मान से 155 क्विंटल प्रदाय किया गया.

1255 हेक्टेयर हो रही खेती

विभागीय अधिकारियों ने बताया कि महासमुंद विकासखण्ड में 220 हेक्टेयर, विकासखण्ड बागबाहरा में 210 हेक्टेयर, विकासखण्ड पिथौरा में 235 हेक्टेयर, विकासखण्ड बसना 280 हेक्टेयर और विकासखण्ड सरायपाली में 310 हेक्टेयर में इस प्रकार कुल 1255 हेक्टेयर में क्षेत्राच्छादन किया जा चुका है. शेष लक्ष्य की पूर्ति नर्सरी से बोनी कर किया जा रहा है. धान की अपेक्षा कम पानी में रागी की फसल लिया जा सकता है.

173 गांवों के किसानों को मिल रहा फायदा

योजनांतर्गत जिले के कुल 173 ग्रामों में 1826 कृषक लाभान्वित हो रहे है. 200 हेक्टेयर से अधिक में बीज निगम द्वारा बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत पंजीयन भी किया गया है. प्रति एकड़ 10 क्विंटल उत्पादन होता है. उत्पादित रागी बीज का भोजन के रूप में उपयोग, आंगनबाड़ी, मध्यान्ह भोजन और गर्भवती महिलाओं समेत कुपोषित बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए किया जा रहा है.

कम लागत में उत्पादन

मिलेट में छोटा अनाज और मोटा अनाज दोनों शामिल होते हैं. इन्हें पहाड़ी, तटीय, वर्षा, सूखा आदि इलाकों में बेहद कम संसाधनों में ही उगाया जा सकता है. एक तरफ मिलेट को उगाने में लागत कम आती है. वहीं इसका सेवन करने से शरीर को वो सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं, जो साधारण खान-पान से मुमकिन नहीं है. यही वजह है कि अब बेहतर स्वास्थ्य के लिए चिकित्सक भी डाइट में 15 से 20 प्रतिशत मिलेट को शामिल करने की सलाह दे रहे हैं.