रायपुर। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि कोरोना आपदा के चलते आर्थिक संकट से जूझ रहे छत्तीसगढ़ की ढाई करोड़ जनता (लगभग 50 लाख परिवार) को भूपेश सरकार सीधे मदद पहुंचाने का काम कर रही है. न्याय योजना के माध्यम से 19 लाख किसानों को समर्थन मूल्य और 2500 रुपए प्रति क्विंटल के बीच की अंतर की राशि दी जा रही है. भूमिहीनों को भी लाभ पहुंचाने न्याय योजना के विस्तार पर प्रदेश सरकार विचार कर रही है. विगत 2 महीनों में आपदा के दौरान 18 लाख 52 हजार परिवारों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया गया जो पूरे देश में सर्वाधिक है. 23 लघु वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य में करके देश के कुल खरीदी का 99.67% की रिकॉर्ड खरीदी छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा की गई और उनके खातों में सीधे भुगतान किया गया.

इसी प्रकार मोदी सरकार को भी पूर्व में घोषित आपदा राहत पैकेज पर पुनर्विचार कर, छत्तीसगढ़ का अनुसरण करते हुए, आर्थिक बदहाली से जूझ रहे देश की जनता के जनधन खातों में सीधे पैसा ट्रांसफर कर मदद करना चाहिए. मोदी सरकार के द्वारा घोषित किया गया, कोरोना राहत पैकेज “अनुपात एवं सुरक्षा” के दोहरे मापदंड पर पूरी तरह से असफल साबित हुआ है. वैश्विक परिदृश्य में देखें तो यह “भावना और राहत सामग्री ” इन दोनों ही आधार पर केंद्र सरकार पूरी तरह फ़ैल हो गई है. सीधा-सीधा गणित लगायें, तो पता चलता है कि तथाकथित राहत पैकेज, हमारे जी डी पी का 1% से भी कम है. केंद्र सरकार के द्वारा कितना वित्तीय मदद की जा रही है, उसके आंकड़े उतने महत्वपूर्ण नहीं है, जितना यह महत्वपूर्ण है कि नीयत और नीति क्या है? भारत सरकार ने अपने करोड़ों प्रभावित लोगों को दोनों ही आधार पर निराश किया है .

यह समय लड़खड़ाते और परेशान आम इंसान को, मध्यम वर्ग को, गरीब जनता को, शब्दों और आंकड़ों के जाल में फंसाकर या जुमलेबाजी कर – परेशान, दुखी लोगों को और ज्यादा परेशान करने का, कंफ्यूज करने का, या धोखा देने का नहीं है. बल्कि उन्हें भ्रम एवं देरी से बचाकर तुरंत सहायता एवं न्याय देने का है – और ये न्याय होगा उनके खातों में, उनकी जेब में सीधे नकद पहुंचाकर.

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि मोदी सरकार ने महामारी की गंभीरता को समझने में विलंब, लापरवाही और अपनी नाकामी को ढकने के लिए बार-बार ये कहा कि भारत में दूसरे देशों की तुलना में डेथ रेट और कोरोना डबलिंग रेट कम है, यही कहकर ये क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहे हैं.

केंद्र सरकार को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए, अच्छे के साथ बुरे की, आशा के साथ मुसीबतो की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए. मोदी सरकार को दूसरे देशों से सीखते हुए अपने देश में भी राजकोषीय वैक्सीन उपलब्ध कराने में अपनी योग्यता दिखानी चाहिए. भारत के 45 लाख एमएसएमई (वर्तमान भारत के 6 करोड़ MSME का सिर्फ 8%) के लिए कोलेट्रल फ़्री लोन के लिए प्रस्तावित क्रेडिट गारंटी फंड में सिर्फ़ 3 लाख करोड़ के फ़ंड की घोषणा हुई है. जिसमे कहा गया है कि उन्हे 12 महीने तक लोन की किश्त नहीं चुकाना है. लेकिन इसके बाद ना तो ये उन एमएसएमई वालों की मदद के रूप में उन्हें कोई एक्सट्रा इनकम देता है, ना ही उन्हें कर्ज़ के शातिर चक्र से मुक्त करता है.

वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था को तत्काल ऑपरेशन की जरूरत है और मोदी सरकार बैंड एज लगाने का काम कर रही है. अमेरिका, ब्राजील, इंग्लैंड, कनाडा, और जापान में भी “वेतन पैकेज” और “इमरजेंसी सैलरी प्रोग्राम” की व्यवस्था प्रभावितों को सीधे मदद करने के लिए की गई है.

आरबीआई के भूतपूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा है कि प्रभावितों के खाते में सीधे ₹7500 प्रति महीने के हिसाब से 65000 रुपए ट्रांसफर करने में सरकार को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए जबकि यह हमारे जीडीपी का महज 0.325% है. यही मांग कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बार-बार मोदी सरकार से किया हैं. यह राशि प्रवासी मजदूरों को सीधे दी जा सकती थी. इसके अलावा निजी संस्थानों और एमएसएमई सेक्टर के लिए मजदूरी सुरक्षा अधिनियम और मध्यम और निम्न वर्ग के लिए वेतन सुरक्षा पैकेज की घोषणा भी मोदी सरकार को तत्काल करनी चाहिए! जो निजी स्कूलों के शिक्षक हैं, जो निजी संस्थानों में कार्यरत वेतनभोगी वर्ग है, जो पत्रकार और मीडिया कर्मी है इस महामारी के समय भी जान जोखिम में डालकर रिपोर्टिंग कर रहे हैं, उनके लिए भी बहुत कठिन समय है केंद्र सरकार अबतक उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है.

यह वही वर्ग है जिसने कोरोना के साथ बेरोजगारी के विस्फोट को भी झेला है और दर्द से भी गुजर रहा है. केंद्र सरकार को डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के धारा 13 के तहत अपने वित्तीय दायित्व को निभाते हुए छात्रों को दिए गए लोन सहित सभी तरह के लोन के ब्याज को भी तत्काल माफ करना चाहिए. यह राजनीति का वक्त नहीं है मगर प्रत्येक अच्छे विचार का स्वागत होना चाहिए चाहे वह विचार जहां से या जिस से भी मिले. अब भी समय है, इससे पहले कि देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो और देश की जनता की सारी उम्मीदें खत्म हों, मोदी सरकार को अपने आर्थिक पैकेज और राहत योजना पर फिर से विचार करना चाहिए.