रायपुर। हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल खनन का विरोध कर रहे गाँव वालों का आरोप है कि अडानी कंपनी के लोग मनमानी कर रहे हैं. स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर हमारी जमीनें अधिग्रहित करने की कोशिश कर रहे हैं. एक मामला तो वन अधिकार मान्यता कानून के तहत प्राप्त वनभूमि की खरीदी करने का भी है. इस मामले में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन(CBA) ने एक शिकायत पत्र मुख्यमंत्री को लिखा है. इस पत्र में उन्होंने इलाके में अडानी पर मनमानी करने का आरोप भी लगाया है. वहीं खिरती गाँव से एक वीडियो भी सामने आया जिसमें स्थानीय ग्रामवासी गाँव पहुँचे अडानी और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों का घेराव करते और विरोध जताते हुए दिख रहे हैं.
वनाधिकार मान्यता कानून के तहत मान्य वनभूमि खरीदी नहीं जा सकती- आलोक
पूरे मामले में मुख्यमंत्री से शिकायत करने वाले छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि हाल में ही ज्ञात हुआ कि छत्तीसगढ़ में कोयला खनन कर रही मेसर्स अडानी की कम्पनी ने आदिवासियों को वनाधिकार कानून के तहत प्राप्त जमीनें अवैध रूप से खरीदी है. मामला कोरबा के घाटबर्रा गाँव की है. यहाँ पर वर्ष 2016 में कोयला खनन के लिए सामुदायिक वनाधिकार वापस ले लिया गया था, उसी गाँव के भोले-भाले ग्रामीणों से उनकी वनभूमि को अडानी कम्पनी द्वारा पिछले वर्ष खरीदने की अब खबर मिली है. वर्ष 2013 में घाटबर्रा को सामुदायिक अधिकारों के लिए वनभूमि का अधिकार-पत्र मिला था. जिसे यह कह कर वापस ले लिए गया कि ग्रामसभा ने 2012 में ही खनन के लिए वनभूमि डायवर्शन की सहमति दी थी. पूरे देश में ऐसी मिसाल कहीं नहीं मिली कि दिए अधिकार को छिनने के लिए लोगों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाए. अब दूसरी ऐसी मिसाल, फिर घाटबर्रा व अन्य गाँव जहाँ अडानी द्वारा कोयला खनन किया जा रहा है, वहां मिल रही है, कि वनभूमि जो वनाधिकार कानून के तहत हस्तांतरणीय नहीं होगी, और सिर्फ वारिसों को ही मिलेगी, उसे भी एक कम्पनी ने बाकायदा चेक से भुगतान कर खरीद लिया.
आलोक शुक्ला ने कहा कि हमारी मांग है, कि तमाम क़ानूनी प्रावधानों के बावजूद भविष्य में ऐसे मामले रोकने के लिए, प्रदेश सरकार देशज/आदिवासी लोगों के अधिकारों की संयुक्त राष्ट्र घोषणा (UNDRIP) में व्यक्त “मुक्त, पूर्व, संसूचित सहमति” (FPIC) के सिद्धांत का अनुपालन कर पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम करें. इस सिद्धांत के अनुसार, आदिवासियों की किसी भी प्रकार की भू-संसाधन के अधिग्रहण या बदलाव के पूर्व उनसे मुक्त सहमति – यानि किसी भी दबाव से मुक्त; पूर्व-यानि अधिग्रहण जैसी किसी प्रक्रिया से पर्याप्त पहले, ताकि वे अपने फैसले ठीक से ले सके; संसूचित सहमति- यानि सहमति का आधार पर्याप्त रूप से अपनी भाषा में प्राप्त और समझ ली गयी जानकारी है; ली गयी हो. हमारी मांग है कि सरकार इस मामले में संज्ञान ले और इसकी जाँच कराकर दोषियों पर कार्रवाई करें.
वहीं जो वीडियो सामने आया है उसे लेकर आलोक शुक्ला ने कहा कि दरअसल यह वीडियो आज कोरबा जिले में हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्राम खिरती का हैं. जहां अडानी कंपनी के लोग तहसीलदार के साथ पतुरिया, गिड़मूड़ी कोल ब्लॉक के भूमि अधिग्रहण के लिए प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए ग्राम खिरती में विस्थापित गांव को पुनर्वास देंने जगह के सीमांकन के लिए गए थे.
ग्रामीणों ने विरोध कर अधिकारियों को किसी भी प्रकार के सर्वे करने से मना किया. यह वीडियो दर्शाता है कि हसदेव अरण्य को बचाने केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया, जिसमें 5 कोल ब्लॉक को छोड़ने की अपील हैं, लेकिन मोरगा साउथ और मदनपुर नार्थ से लगे हुए कोल ब्लॉक पतुरिया गिड़मूड़ी एवम मदनपुर साउथ के लिए स्थानीय प्रशासन लगातर प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा हैं.
वहीं इस मामले में अडानी प्रबंधन और जिला प्रशासन के अधिकारियों की ओर से प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.
देखिए वीडियो
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