प्रतीक चौहान. रायपुर. कोरोना की पहली और दूसरी लहर में रायपुर के छोटे से लेकर बड़े अस्पतालों तक एक भी बैड खाली नहीं थे. निजी अस्पतालों पर मरीजों ने खूब मनमानी करने के आरोप भी लगाए. लेकिन वे कोरोनाकाल में भगवान बनकर भी आएं और कई लोगों की जान भी बचाई. लेकिन आज आलम ये है कि वे लोगों की मदद के लिए अपने अस्पतालों में बूस्टर डोज लगवाने को लेकर भी कोई पहल नहीं कर रहे हैं.
न केवल निजी अस्पताल बल्कि स्वास्थ्य विभाग की भी प्रदेशवासियों को बूस्टर डोज लगे इसे लेकर ध्यान नहीं दे रहा है. आलम ये है कि रायपुर सीएमओ डॉ मीरा बघेल का कहना है कि निजी अस्पताल जिनका है वो ही ध्यान नहीं दे रहे है तो वे क्या कर सकती है.
उनका कहना है कि कुछ अस्पतालों को वैक्सीन की वजह से नुकसान हुआ था. यही कारण है कि वे बूस्टर डोज पर ध्यान नहीं दे रहे है. लेकिन क्या स्वास्थ्य विभाग निजी अस्पतालों को लेकर कोई आदेश जारी नहीं कर सकता ? या विभाग करना नहीं चाहता है ? आलम ये है कि प्रदेश के बड़े अस्पतालों में से सिर्फ एक एनएचएमएमआई में ही को-वैक्सीन का बूस्टर डोज लग रहा है. इसके अलावा राजधानी रायपुर में कही भी बूस्टर डोज नहीं लगाया जा रहा है. कोविशिल्ड वैक्सीन किस अस्पताल में लग रहा है, ये जानकारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को भी नहीं है.
कम पैसे मिल रहे इसलिए नहीं दे रहे ध्यान ?
कोरोनाकाल में मनमाने तरीके से मरीजों से पैसे वसूलने वाले निजी अस्पतालों में बूस्टर डोज न लगने की वजह जो सामने आई हैं वो संभवतः ये है कि इसमें उन्हें कोई खास कमाई नहीं होगी. यही कारण है कि वे बूस्टर डोज को लेकर ध्यान नहीं दे रहे है. जबकि 18 वर्ष से 59 वर्ष के लोग बूस्टर डोज लगवाने के लिए दर-दर भटक रहे है. वहीं 60 वर्ष से ऊपर या हाई रिस्क वाले मरीजों को शासकीय अस्पतालों में ये डोज लगवाया जा रहा है.
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