वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। कोरिया जिले में हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा पाए तीन आरोपियों को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। अदालत ने प्रत्यक्षदर्शियों के बयान को विश्वसनीय नहीं मानते हुए कहा कि उनकी लंबी चुप्पी और घटनाओं के संबंध में असंगतियां संदेह पैदा करती हैं। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने सत्र न्यायालय के फैसले को रद्द किया।

बता दें कि सत्र न्यायालय ने आरोपियों को धारा 302 के तहत हत्या और 120-बी के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जबकि धारा 201 के तहत 7 साल की अतिरिक्त सजा भी दी गई थी।

जानिए क्या है पूरा मामला

2 मार्च 2015 को कोरिया जिले के अमरपुर क्षेत्र की एक महिला घर से लापता हो गई थी। 7 मार्च को उसकी लाश घुटरी पहाड़ी के पास गड्ढे में पाई गई। पुलिस ने शव बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि महिला की मौत गला घोंटने से हुई थी।

जांच के दौरान पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया। आरोप लगाने वाले पक्ष ने दो गवाहों, अमर सिंह और रघुवीर की गवाही पर भरोसा किया। इन दोनों ने दावा किया कि उन्होंने आरोपियों को महिला का गला घोंटते और उसे ले जाते हुए देखा। इसी आधार पर सत्र न्यायालय ने आरोपियों को सजा सुनाई, जिसके खिलाफ अपील दायर की गई।

हाईकोर्ट ने तर्कों को माना मजबूत

अपराधियों की ओर से हाईकोर्ट में तर्क दिया गया कि गवाहों ने घटना के सात दिन तक किसी को सूचना नहीं दी, जबकि वे पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार में मौजूद थे। शुरुआती एफआईआर में भी आरोपियों का नाम शामिल नहीं था। अदालत ने कहा कि ऐसे गवाहों पर भरोसा करना न्यायसंगत नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि प्रत्यक्षदर्शियों का आचरण संदिग्ध हो और उनकी गवाही में विरोधाभास हो, तो दोषसिद्धि के लिए उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अदालत ने आरोपियों को बरी कर 25,000 रुपये का मुचलका भरने का निर्देश भी दिया।

गौरतलब है कि हाईकोर्ट का यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि साक्ष्य की विश्वसनीयता न्यायिक प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण होती है। प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही में असंगतियों और लंबी चुप्पी के आधार पर भी आरोपियों को निर्दोष माना जा सकता है।

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