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गौरव जैन, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। मरवाही वनमंडल के अंतिम छोर मरवाही वन रेंज के बीट उषाड़ में कोयले का काला कारोबार अवैध रूप से पनप रहा है, लेकिन जिम्मेदारों को कानोकान खबर नहीं है. कोयला माफ़िया ने कोयला चोरी के लिए कई किलोमीटर की सुरंग खोद डाली है. यहां कोयले का अवैध कारोबार करने वालों ने जंगलों को बेतरतीब खोदकर उन्हें खोखला कर चोरी के कोयले की तस्करी कर रहे हैं.
इस इलाके में कोयला चोरों ने जमीन के अंदर ही अंदर कई किलोमीटर तक जंगलों को कोयले के लिए खोखला कर दिया है. कोयला चोरी यहीं नहीं रुकती है. छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाके मरवाही से सटे गांवों में बड़े-बड़े कोल डिपो बनाकर कोयले का अवैध कारोबार कर रहे हैं, जिसकी ख़बर न तो वन विभाग को है, न ही खनिज विभाग को है. जंगलों के अंदर कई किलोमीटर की सुरंग बनाकर कोयले का अवैध कारोबार पनप रहा है.
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बता दें कि मरवाही वनमंडल के बीट उषाड़ मेल कोयले उत्खनन बेख़ौफ़ किया जाता रहा है. जंगल के अंदर कई किलोमीटर तक कोयले के लिए जंगलों को खोदकर कर सुरंग बना दी गई है. यहां सवाल उठना लाजमी है, जिनके पास जंगलों की सुरक्षा का दायित्व है, उनको भी इस अवैध खुदाई की जानकारी नहीं है.
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इस संबंध में जानकारी है तो अब तक इन जंगलों की अवैध सुरंगों से कितना कोयला उत्खनन हुआ और कितनों पर जंगल विभाग ने पीओआर फाइल किया. यह जंगल विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों से पूछा जाना चाहिए, जबकि कोयले की तस्करी का कारोबार मरवाही के आसपास कोल डिपो खोल किया जा रहा है.
यहां के निवासियों का कहना है कि गर्मी और ठंड के समय सबसे ज्यादा कोयले का उत्खनन किया जाता है. दशकों से हो रही अवैध खुदाई से जंगलों में बड़ी बड़ी सुरंगें बना दी गई है, जो कई किलोमीटर तक अंदर है. वहीं बरसात के समय इन सुरंगों को पत्थर डालकर बंद कर दिया जाता है. गर्मियों में सुरंग बनाकर कोयले की तस्करी करते हैं. वहीं इन सुरंगों के न गिरने के लिए यहीं के जंगलों की सरई, साजा की लड़कियों को काटकर टेका बनाया गया है, ताकि सुरंगों में सुरक्षित रूप से अंदर घुसा जा सके.
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मात्र 100 रुपये के लिए यहां के मजदूरों को उन सुरंगों में उतार दिया जाता है. इन सुरंगों में मजदूरों के जरिये खुदाई करवाई जाती है. ये भोले भाले मजदूर पैसे की चाहत में सुरंग में बिना किसी सुरक्षा के उतर जाते हैं. दिन रात कोयले की खुदाई करने में लगे रहते हैं. ऐसी जानकारी भी मिली है कि पूर्व में इन सुरंगों के भीतर दबकर कुछ मजदूरों की भी मृत्यु हो चुकी है.
इन मजदूरों को दिहाड़ी मजदूरी के नाम पर मात्र 100 रुपये दिया जाता है, फिर ये मजदूर खदान के अंदर से कोयला निकालकर बोरी में भरकर साइकिलो के जरिये डंपिंग स्थल ( जहां परिवहन के लिए गाड़ियां ) खड़ी रहती हैं. उक्त जगह तक पहुंचाया जाता है. वहां से फिर कोयला तस्कर कोयले को बड़े बड़े वाहनों के जरिये परिवहन कर कोल डिपो में खपाते हैं.
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