रायपुर। आज उन दो छत्तीसगढ़ माटी पुत्रों की जयंती जिन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ समाज के कई प्रमुख क्षेत्रों में ऐसा काम किया कि उससे प्रभावित होकर महात्मा गाँधी न सिर्फ गाँधी रायपुर आए थे, बल्कि गाँधी ने यहाँ आकर अपने गुरू को भी पाया था. आज जयंती है छत्तीसगढ़ के गाँधी पं. सुंदरलाल शर्मा और सहकारिता आंदोलन के पुरोधा ठा. प्यारेलाल की. छत्तीसगढ़ महतारी के इन दो रत्नों को राज्यपाल अनुसुईया उइके और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी विनम्र श्रद्धांजलि दी है.
छत्तीसगढ़ के गाँधी की संज्ञा पाने वाले पं. सुंदरलाल शर्मा की आज जयंती है. 21 दिसम्बर 1881 को राजिम के निकट महानदी के तट पर बसे ग्राम चंद्रसूर में शर्मा जी का जन्म हुआ था. सुंदर लाल शर्मा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाज सुधारक और प्रसिद्ध रचनाकार थे. उन्होंने हिंदी और छत्तीसगढ़ी में अनके रचनाएँ लिखी. छत्तीसगढ़ी में लिखित दानलीला छत्तीसगढ़ी का प्रथम खंडकाव्य कहा जाता है. उन्हें पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का प्रथम स्वप्नदृष्टा भी कहा जाता है.
19 वीं सदी के अंतिम चरण में देश में राजनैतिक और सांस्कृतिक चेतना की लहरें उठ रही थी. समाज सुधारकों, चिंतकों तथा देशभक्तों ने परिवर्तन के इस दौर में समाज को नयी सोच और दिशा दी. छत्तीसगढ़ में आपने सामाजिक चेतना का स्वर घर-घर पहुंचाने में अविस्मरणीय कार्य किया. वे राष्ट्रीय कृषक आंदोलन, मद्यनिषेध, आदिवासी आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन से सक्रिय रूप जुड़े रहे.
उन्होंने छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता तथा कुरीतियों को दूर करने के लिए आपने अथक प्रयास किया. आपके हरिजनोद्धार कार्य की प्रशंसा महात्मा गाँधी ने मुक्त कंठ से करते हुए, इस कार्य में आपको गुरु माना था। 1920 में धमतरी के पास कंडेल नहर सत्याग्रह आपके नेतृत्व में सफल रहा। आपके प्रयासों से ही महात्मा गांधी 20 दिसम्बर 1920 को पहली बार रायपुर आए थे. समाज सेवा में रत परिश्रम के कारण शरीर क्षीण हो गया और 28 दिसम्बर 1940 को आपका निधन हुआ। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहित्य/आंचिलेक साहित्य के लिए पं. सुंदरलाल शर्मा स्थापित किया है.
छत्तीसगढ़ के लिए उनके अमूल्य योगदान को याद करते हुए उन्हें नमन किया मुख्यमंत्री ने अपने संदेश में कहा है कि पंडित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में फैले अंधविश्वास,छुआ-छूत,रूढिवादिता जैसी कुरीतियों को दूर करने के लिए अथक प्रयास किया. सामाजिक चेतना की आवाज हर घर तक पहुंचाने का अविस्मरणीय कार्य उन्होेंने किया. वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई राष्ट्रीय आंदोलनों से जुड़े और छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता आंदोलनों की मजबूती और जनजागरण के लिए भरसक प्रयत्न किया. वे किसानों के अधिकारों की लड़ाई के रूप में प्रसिद्ध कंडेल सत्याग्रह के प्रमुख सूत्रधार थे। श्री बघेल ने कहा कि पंडित सुदरलाल शर्मा का व्यक्तित्व सदैव प्रेरणादायी रहेगा.
छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलन के सूत्रधार और सहकारिता आंदोलन के पुरोधा ठाकुर प्यारेलाल की भी जंयती आज ही है. उनका जन्म 21 दिसम्बर 1891 को राजनांदगांव जिले के दैहान ग्राम में हुआ था. बाल्यकाल से ही आप मेधावी तथा राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत ठा. प्यारेलाल 1906 में बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आकर क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार आरंभ किया और विद्यार्थियों को संगठित कर जुलूस के समय वंदेमातरम् का नारा लगवाते थे. 1909 में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की. 1920 में राजनांदगांव में मिल-मालिकों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई, जिसमें मजदूरों की जीत हुई. उन्होंने स्थानीय आंदोलनों और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जन-सामान्य को जागृत किया.
राजनैतिक झंझावातों के बीच 1937 में रायपुर नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए. 1945 में छत्तीसगढ़ के बुनकरों को संगठित करने के लिए आपके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ की स्थापना हुई. प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को शोषण एवं अत्याचार से मुक्त कराने की दिशा में भी आप सक्रिय रहे.
वैचारिक मतभेदों के कारण सत्ता पक्ष को छोड़कर प्यारेलाल आचार्य कृपलानी की किसान में शामिल हुए. 1952 में रायपुर से विधानसभा के लिए चुने गए तथा विरोधी दल के नेता बने. विनोबा भावे के भूदान एवं सर्वोदय आंदोलन को आपने छत्तीसगढ़ में विस्तारित किया। 20 अक्टूबर 1954 को भूदान यात्रा के समय अस्वस्थ हो जाने से आपका निधन हो गया. छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान स्थापित किया है.
ठा. प्यारेलाल को याद करते हुए कहा कि ठाकुर साहब ने न सिर्फ गरीबों की सेवा की बल्कि उनके अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष किया. ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन के पुरोधा के रूप में जाने जाते हैं. वेे छात्र जीवन से ही स्वाधीनता आंदोलनों से जुडे़. उन्होंने अत्याचार और अन्याय के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की और जन असंतोष को संगठित दिशा प्रदान की. राजनांदगांव में मिल मजदूरों को संगठित कर उन्हें कुशल नेतृत्व प्रदान किया. छत्तीसगढ़ में छात्रों को संगठित रूप से आंदोलनों से जोड़ने का श्रेय भी ठाकुर साहब को जाता है. हरिजन उद्धार और जन-जागरण के लिए भी कई काम उन्होंने किये. बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में अपने अमूल्य योगदान के लिए ठाकुर साहब हमेशा याद किये जाएंगे.