रायपुर। ये कहानी राजधानी की है. उस राजधानी की जो धीरे-धीरे मेट्रो शहर की बनने की ओर अग्रसर है. ये कहानी है रायपुर की. उस रायपुर की जहाँ अब आधी रात शराब और शबाब दोनों की मांग बढ़ती जा रही है. विशेष अवसरों पर तो बड़े इवेंट के साथ डिमांड और बढ़ जाती है. इस तर बढ़ जाती है कि पूंजीपति लोग शौक पूरा करने हजारों रुपये देकर अपनी एंट्री बुक कराते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. होता है और जब होता है तो ऐसा होता कि कानफोड़ू डीजे की आवाज के बीच हंगामा, बवाल, तोड़फोड़ शुरू हो जाता है. छोटे-बड़े चम-चमाते कपड़ों के बीच अचानक खाकी वर्दी दिखाई देने लगते हैं. मदहोश आँखों के सामने शराब परोसने वालों की जगह पुलिस वालों का डंडा नज़र आने लगता है. नज़र ही नहीं आता कुछ देर में घूमते हुए भी दिखाई देने लगता है.

सच्ची घटना पर आधारित इस कहानी के अब और अंदर प्रवेश करिए. प्रवेश करिए आप रायपुर से नवा रायपुर के रास्ते पर स्थित लतित महल में. यह कोई राज परिवार का महल नहीं इस बात का ध्यान रखिएगा. बल्कि इस महल पर आप भी पैसा देकर अपना अधिकार कुछ घंटे, दिन तक जमा सकते हैं. याद रखिएगा पैसा के बल-बूते आप महल में राजा होने का सुख प्राप्त कर सकते हैं. नए साल पर कुछ ऐसे राजसी सुख का आनंद प्राप्त करने बड़ी संख्या में लोग पहुँचे हुए थे.

शराब और शबाब के साथ पैसे के बलबूते पर राज शाही सुख अभी पूरी तरह से लोगों को मिला नहीं था और कार्यक्रम बंद. हजारों रुपये खर्च पहुँचे लोगों को यह नागवार गुजरा. थोड़ा बहुत जो कुछ भी ललित महल से लिया था सब वहीं उतार दिया. गमले टूटे, कांच टूटा, टेबल-कुर्सी से लेकर न जाने-जाने क्या टूटे ? टूटने के साथ अनेक जुबानों से गंदी गालियाँ भी छूटे. जो लोग अभी चार-बोतल वोतका कर रहे थे, वही अब जमकर गालियाँ दे रहे थे. नारे भी यही लग रहे थे….ललित महल मुर्दाबाद….ललित महल मुर्दाबाद.

मुर्दाबाद के नारे के साथ जब आवाज महल से निकल दूर-दूर तक सुनाई देने लगी तो मौके पर अब दल-बल के साथ पुसिस भी थी. लेकिन रसुखदारों की पार्टी थी लिहाजा पुलिस ने जैसे-तैसे कर मामला शांत करा दिया. किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. क्योंकि पुलिस में किसी भी पक्ष ने किसी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की. एएसपी प्रफ्फुल ठाकुर कहना है कि अनुमति 10.30 बजे तक की थी. किसी भी होटल में शराब पिलाने पर रोक थी.

ललित महल के संचालक का कहना है कि हमने इवेंट कंपनी को किराये पर दिया था. यह हमारा कार्यक्रम नहीं था. जिनका था वह जाने. लेकिन तोड़फोड़ से बहुत नुकसान हुआ. अगर इसकी भरपाई नहीं हुई तो कोर्ट जाऊँगा.

अब सवाल ये कि शराब और शबाब के बीच नए साल का जश्न ही जश्न. जश्न मनाने के इस बदलते हुए महौल से फायदा किसे हुआ और नुकसान किसे ? किसके लिए अच्छा रहा इस तरह का जश्न-ए-नया साल ये समाज को ही तय करना है. फिलहाल आप वीडियो देखकर हुआ क्या इसे समझिए….
देखिए वीडियो