बिलासपुर से करीब 25 किमी दूर आदिशक्ति महामाया देवी नगरी रतनपुर में महालक्ष्मी देवी का एक प्राचीन मंदिर है. धन वैभव, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी का ये प्राचीन मंदिर करीब 846 साल से ज्यादा पुराना है. जहां दीपावली में विशेष पूजा अर्चना होती है. मान्यता है, कि धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-आराधना से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है.

बता दें कि मां महामाया की नगरी रतनपुर में 11 ईस्वी में राजा रत्नदेव के शासन में अकाल और महामारी से प्रजा परेशान थी. राजकोष भी खाली हो चुका था. ऐसे में तत्कालीन राजा रत्नदेव के निर्देश पर धन, वैभव और खुशहाली की कामना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया और विधि विधान से मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना किया. इसके बाद उनके शासनकाल में खुशहाली लौट आई. फिर कभी इस क्षेत्र में कभी अकाल नहीं पड़ा. इस मंदिर को लखनी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है.
रतनपुर की पहचान ऐतिहासिक और प्राचीन धरोहर के रूप में है. यह मंदिर प्रदेश के सबसे प्राचीन लक्ष्मी मंदिर के रूप में भी माना जाता है. रतनपुर में पहाड़ की चोटी पर माता का मंदिर बनाया गया है, जहां 252 सीढ़ी चढकर हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं. दीपावली के दिन मंदिर में पुजारी माता की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार कर विधि विधान से पूजा करते हैं.
कलचुरी राजा के मंत्री ने बनवाया था मंदिर
जिस पर्वत पर लखनी देवी मंदिर की स्थापना की गई है, इसके भी कई नाम है. इसे इकबीरा पर्वत, वाराह पर्वत, श्री पर्वत और लक्ष्मीधाम पर्वत भी कहा जाता है. ये मंदिर कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के विद्वान मंत्री गंगाधर ने 1178 में बनवाया था. उस समय इस मंदिर में जिस देवी की प्रतिमा स्थापित की गई उन्हें इकबीरा और स्तंभिनी देवी कहा जाता था. यहां मां लक्ष्मी की जो मुख्य प्रतिमा स्थापित है, उसे यहां के लोग लखनी देवी कहते है. प्रतिमा के साथ मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू भी यहां विराजमान है.
प्राकृतिक सौंदर्य के बीच यह मंदिर श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करता है. मंदिर का आकार पुष्पक विमान जैसा
प्राचीन मान्यता के मुताबिक महालक्ष्मी देवी की मंदिर का निर्माण शास्त्रों में बताए गए वास्तु के अनुसार कराया गया है. यह मंदिर पुष्पक विमान जैसे आकार का है. मंदिर के अंदर श्रीयंत्र भी बना है, जिसकी पूजा-अर्चना करने से धन-वैभव और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. लखनी देवी का स्वरूप अष्ट लक्ष्मी देवियों में से सौभाग्य लक्ष्मी का है. जो अष्टदल कमल पर विराजमान है. सौभाग्य लक्ष्मी की हमेशा पूजा-अर्चना से सौभाग्य प्राप्ति होती है, और मनोकामनाएं भी पूरी होती है.
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