सत्यपाल राजपूत रायपुर। देश में उच्च शिक्षा का स्तर बताती मानव संसाधन मंत्रालय के नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क 2020 में छत्तीसगढ़ के न तो विश्वविद्यालयों और न ही कॉलेजों का कहीं अता-पता है. इस स्थिति पर छात्रों में गुस्सा नजर आ रहा है, वहीं विश्वविद्यालयों के कर्ता-धर्ता जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं.
विश्वविद्यालयों की बात आती है तो गुणवत्ता के लिहाज से सबसे पहला नाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों का आता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में उल्टी ही गंगा बहती नजर आ रही है. बिलासपुर स्थित गुरू घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अंजिला गुप्ता से इस विषय पर चर्चा करने की तमाम कोशिश असफल साबित हुई.
जानकार बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय पूर्व कुलपति लक्ष्मण चतुर्वेदी के कार्यकाल तक रैकिंग में रहा, लेकिन उनके जाने के बाद रैकिंग गिरता गया. इस बात तो टॉप-200 से बाहर हो गया है.
वहीं बिलासपुर स्थित अटल बिहारी विश्वद्यालय के कुलपति जीडी शर्मा ने कहा कि प्रदेश में टॉप-100 में प्रदेश का कोई भी विश्वविद्यालय नहीं है. जहां तक हमारी बात है तो अभी नया विश्वविद्यालय है. डेवलपमेंट की ओर है. रिसर्च आउटपुट कम है, अध्यापकों की कमी है, कैंपस छोटा है, अभी कई विभाग नहीं हैं, लेकिन हमारी कोशिश रहेगी कि अगले रैंकिग में हमारा स्थान हो.
अब बात प्रदेश के सबसे पुराने पं. रविशंकर विश्वविद्यालय की. कुलपति केएल वर्मा कहते हैं कि हमारी रैंकिंग लगातार रैकिंग बढ़ रही है, पहले टॉप-200 में थे, लेकिन अब 150 के बीच आ गए हैं. यह किसी एक नहीं बल्कि पूरे प्रबंधन, अधिकारी, कर्मचारी, विद्यार्थी, शिक्षा में गुणवत्ता रैकिंग में बढ़ोत्तरी हो रही है.
छात्रों का फूटा गुस्सा
प्रदेश के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग को लेकर छात्रों में गुस्सा है. सबसे ज्यादा गुस्सा गुरू घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय को लेकर है. इसके लिए छात्र कुलपति को जिम्मेदार ठहराते हैं. वे कुलपति पर तानाशाही, मनमर्जी औऱ कुशल नेतृत्व की कमी बताते हैं. गलत फैसलों पर छात्र विरोध का दमन और गलत आदेश थोपने का नतीजा संस्थान भुगत रहा है.