रायपुर। रायपुर नगर निगम में एक बार फिर कांग्रेस का ही महापौर होगा यह लगभग तय हो चुका है ! क्योंकि सर्वाधिक वार्डों में कांग्रेसी जीतकर आए हैं. हालांकि बहुमत से कांग्रेस 2 कदम दूर है, लेकिन निर्दलियों को अपने साथ लाकर कांग्रेस अपना महापौर बना लेगी इसकी पूरी संभावना है. आंकड़ों की बात करे तो 70 वार्डों में कांग्रेस को 34, भाजपा को 29 और निर्दलियों को 7 सीटों पर सफलता मिली है.

इन आंकड़ों के बीच भाजपा में जहाँ महापौर पद के दावेदार सभी दिग्गज चुनाव हार गए, तो कांग्रेस के वे 5 दिग्गज चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं, जो की महापौर के सबसे प्रबल दावेदार हैं. कांग्रेस के महापौर बनने के बाद रायपुर नगर निगम में यह कांग्रेस की हैट्रिक होगी. क्योंकि बीते एक दशक से लगातार कांग्रेस रायपुर में जीत हासिल कर रही है. एक दशक पहले किरणमयी नायक महापौर थीं, फिर प्रमोद दुबे महापौर बने. वर्तमान में प्रमोद दुबे ही महापौर हैं.

आइए जानते हैं कि कांग्रेस में वे कौन से 5 प्रबल दावेदार हैं, जो महापौर की रेस में एक-दूसरे के बिल्कुल करीब-करीब खड़े हैं. आखिर क्यों इन्हीं में से किसी एक की संभावना महापौर बनने की है.

प्रमोद दुबे : वर्तमान में महापौर है. तीसरी बार लगातार पार्षद बने हैं. जुझारू नेता की छवि है. सत्ता के साथ-साथ संगठन में पकड़ मजबूत है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी नेता माने जाते हैं. लेकिन कमजोरी ये है कि विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव ठुकराने के बाद लोकसभा चुनाव लड़े पर बुरी तरह हार गए थे.

ज्ञानेश शर्मा : तीसरी बार पार्षद चुनकर आए हैं. प्रदेश कांग्रेस संगठन में संचार विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं. वोरा और चौबे खेमा के मजबूत नेता माने जाते हैं. पीसीसी अध्यक्ष रहते भूपेश बघेल के साथ नजदिकियाँ रही हैं. लो प्रोफाइल में रहने में वाले नेताओं में गिने जाते हैं. संगठन और सत्ता के बीच किसी भी तरह के राजनीतिक विवादों से हमेशा दूर रहने वालों में माने जाते हैं. संगठन जो भी दायित्व दिया उनके अनुरूप ही काम करते रहे. गंभीर नेताओं में गिनती होती है. हालांकि कमजोरी ये कि बहुत दिनों से पीसीसी संगठन में सक्रियता कम रही है.

श्रीकुमार मेमन : तीसरी बार पार्षद बनने में सफल रहे हैं. कांग्रेस वरिष्ठ नेताओं में गिनती होती है. सौम्य छवि के नेता माने जाते हैं. संगठन में हमेशा सक्रियता बनी रहती है. कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय और जुझारू नेता की छवि है. संगठन में प्रदेश प्रवक्ता के रूप में तेज-तर्रार नेता की भी छवि है. कमजोरी ये है कि सत्ता या बड़े नेताओं के बीच दखल कम है.

अजीत कुकरेजा : दूसरी बार पार्षद बनने में सफल रहे हैं. विधानसभा चुनाव में उत्तर सीट से मजबूत दावेदारी रही, लेकिन टिकट पाने में विफल रहे. धनाड्य नेताओं में गिनती होती है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद कुकरेजा के बेटे हैं. युवा नेताओं में सबसे परिपक्व नेताओ में शुमार हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं. कमजोरी ये है कि संगठन में पैठ अन्य नेताओं के मुकाबले कुछ है.

एजाज़ ढेबर : दूसरी बार पार्षद बने हैं. सर्वाधिक मतों से जीतने वाले नेताओं में अग्रणी हो गए हैं. अपने वार्ड के सबसे जुझारू नेता माने जाते हैं. सत्ता में कुछ लोगों के बेहद करीब हैं. धनाड्य नेताओं में गिनती होती है. तेवर वाले और आक्रमक छवि के नेताओं में गिनती होती है. लेकिन कमजोरी ये है कि संगठन में पैठ कम है.

वैसे कांग्रेस संगठन के नेताओं की माने तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल महापौर के चयन में सीधे तौर पर अपना दखल नहीं देंगे. वे संगठन और सत्ता के साथ समनव्य बनाकर चलेंगे. पीसीसी अध्यक्ष, मंत्रियों और पार्षदों की राय के आधार पर ही महापौर का चयन होगा.