
रायपुर. छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के पहले छत्तीसगढ़ी भाषा प्रचार समिति की ओर से रविवार को हांडीपारा स्थित छत्तीसगढ़ी भवन में दोपहर छत्तीसगढ़ी के चलन और भाषा साहित्य के विकास पर संगोष्ठी संपन्न संपन्न हुई. संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पद्मश्री मदन लाल चौहान (वरिष्ठ सूफी भजन गायक), विशेष अतिथि संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सुरेश शर्मा थे. साथ ही संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि गीतकार रामेश्वर वैष्णव ने की.
संगोष्ठी के विशेष अतिथि डॉ. सुरेश शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ी ढाई करोड़ छत्तीसगढ़ियों की आत्मा है. छत्तीसगढ़ी के चलन को बढ़ाने के लिए वातावरण तैयार करने की जरूरत है. भाषा साहित्य की स्तर को ऊपर करने के लिए सतत प्रयास होना चाहिए. साथ ही साथ छत्तीसगढ़ी की मानकीकरण के लिए कार्यशाला करने की जरूरत पर जोर दिया. हमारी भूमि ऋषि संस्कृति से संस्कारित है, इसलिए यहां के लोगों में साधुता, सरलता और सामाजिक समरसता की भावना विद्यमान है. इसके लिए योजना संगत कार्य करने की जरूरत है.
संगोष्ठी हमेशा एक उद्देश्य को लेकर किया जाना चाहिए. रंगकर्मी अशोक तिवारी ने कहा कि छत्तीसगढ़ी का उपयोग घर और बाहर सभी जगह हो. हीन भावनाओं को दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ी में पढ़ाई हो, साथ ही साथ छत्तीसगढ़ी को रोजगार और व्यवसाय से जोड़ने की जरूरत है. मुख्य अतिथि पद्मश्री मदनलाल चौहान ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा के चलन और साहित्य के विकास के लिए जो गोष्ठी में विद्वत जन सुझाव दे रहे हैं, वो सराहनीय है. इस प्रकार का प्रयास होते ही रहना चाहिए. इसके बाद दो लाइन गीत का पठन किया कि-“मैं महानदी के पानी म मर जाहूं ना -मैं छत्तीसगढ़ म जिहंव अउ मर जाहूं ना.

गोष्ठी के अध्यक्ष रामेश्वर वैष्णव ने कहा कि छत्तीसगढ़ी में शिष्ट साहित्य सृजन और पाठ्य पुस्तक तैयार करने के लिए छत्तीसगढ़ी में मानकीकरण करने की जरूरत है. मानकीकरण से डरने की जरूरत नहीं है. अलग-अलग क्षेत्र में “भी”के लिए अलग-अलग शब्द का उपयोग करते हैं. जैसे रायपुर में घलो बिलासपुर में घलाव कहते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के अधिकांश क्षेत्र में घलो का उपयोग करते हैं. इसलिए “भी “के लिए घलो ही उपयोग होना चाहिए. उसी तरह से “पीछू और पाछु” शब्द का उपयोग किया जाता है, जबकि दोनों का अर्थ अलग-अलग है जैसे पीछू पीछू का मतलब हुआ आपके पीछू. वैसे ही पाछु का मतलब होता है बाद में आना. इसी प्रकार से “रिहिस-किहिस” के जगह में “रहिस,कहिस ” शब्द का उपयोग होना चाहिए. तभी लिखने में एकरुपता और साहित्य में निखार आएगा.
डॉ.अर्चना पाठक ने कहा कि हिंदी छत्तीसगढ़ी लिखने के लिए अनुवाद करने की कोशिश होनी चाहिए. इससे छत्तीसगढ़ी सिखने में सुविधा होगी. सरल रूप में अच्छा लिखे जाना चाहिए. इससे सीखने वालों को सुविधा होगी. डॉ पंचराम सोनी ने कहा कि लोग और लोग जीवन को समझने के लिए लोग भाषा छत्तीसगढ़ी ही सबसे उपयुक्त माध्यम है. रामेश्वर शर्मा ने कहा कि बाहर से आए व्यवसायी लोग छत्तीसगढ़ी का अधिक उपयोग करते हैं, क्योंकि उसको छत्तीसगढ़ी बोलकर अधिक व्यवसाय चलाना है. गोष्ठी में राज्य आंदोलनकारी किसान मोर्चा के संस्थापक दाऊ जी.पी.चंद्राकर, वरिष्ठ कवि रसिक बिहारी अवधिया, शीलकांत पाठक, ममता आहार, वरिष्ठ पत्रकार आशीष ठाकुर, डॉ.उदयभान चौहान, जयंत साहू, कवि गोविंद धनगर, काविश हैदरी, इंद्रदेव यदु, मन्नूलाल यदु, अकबर हैदरी, डॉ.रामलाल वर्मा, राजेंद्र पांडेय आदि ने भी विचार व्यक्त किया. संगोष्ठी का संचालन छत्तीसगढ़ी भाषा प्रचार समिति के संयोजक जागेश्वर प्रसाद ने किया और आभार प्रदर्शन अशोक कश्यप ने किया.

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