रायपुर। छत्तीसगढ़ में संचालित सीपीपी आधारित उद्योग कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की बेरूखी से कभी भी बंद हो सकते हैं. उत्पादन लक्ष्य से बेहद पीछे सीआईएल की अनुषंगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) ने छत्तीसगढ़ के नॉन पावर सेक्टर को मिलने वाले कोयले में भारी कटौती कर दी है. स्थानीय उद्योगों की आवश्यकता को देखते हुए राज्य से बाहर भेजे जा रहे कोयले पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई है.
एसईसीएल ने 1 फरवरी, 2022 को एक परिपत्र जारी किया है, जिसके अनुसार वह छत्तीसगढ़ में सीपीपी आधारित उद्योगों के उपभोक्ताओं को मंथली शेड्यूल्ड क्वांटिटी (एमएसक्यू) के मात्र 75 फीसदी कोयले का ऑर्डर बुक करने की सुविधा देगा. जानकार बताते हैं कि एसईसीएल का यह कदम नॉन पावर सेक्टर के लिए बड़ा छलावा है. कागजों पर यह दिखाई तो दे रहा है कि एसईसीएल ने नॉन पावर सेक्टर को कोयला देने से मना नहीं किया, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि अघोषित रूप से नॉन पावर सेक्टर के कोटे में भरी कमी कर दी गई है.
एमएसक्यू का गणित यह है कि उपभोक्ता एसईसीएल के साथ प्रति वर्ष एक निश्चित मात्रा में कोयला लेने का अनुबंध करते हैं. एक वर्ष के कोयले की जिस मात्रा का अनुबंध होता है, उसे तकनीकी शब्दावली में एन्यूअल क्वांलिटी (एक्यू) कहा जाता है. प्रतिमाह कोयले का हिसाब निकालने के लिए एक्यू में से 12 का भाग दिया जाता है. इस प्रकार जो मात्रा निकलती है, उसे ही एमएसक्यू कहा जाता है. एसईसीएल ने सोची समझ रणनीति के तहत परिपत्र निकालकर उपभोक्ताओं को यह कह दिया है कि एमएसक्यू का 75 फीसदी कोयला बुक किया जा सकेगा, लेकिन कोयले की आपूर्ति इसकी उपलब्धता के अनुपात में तय होगी. इस प्रकार शेष 25 फीसदी कोयले की आपूर्ति का एसईसीएल का दायित्व स्वतः समाप्त हो जाएगा.
यह भी कि एसईसीएल भले ही एमएसक्यू का 75 फीसदी कोयला देने की बात कहे पर यह भी उतना ही सच है कि उपभोक्ताओं को 75 फीसदी कोयला भी नहीं मिल पाता. सीपीपी आधारित उद्योगों के लिए एसईसीएल की यह अड़ंगेबाजी इसलिए है क्योंकि उसके पास पर्याप्त उत्पादन नहीं है. उत्पादन के जो आंकड़े कागजों में पेश किए जा रहे हैं, वह भी हवा-हवाई हैं.
छत्तीसगढ़ स्पंज आयरन एसोसिएशन ने इस पर 3 फरवरी को मीडिया में बाकायदा एक बयान जारी कर बताया है कि ट्रिगर लेवल तक कोयला ले चुके नॉन पावर सेक्टर के उद्योगों को एसईसीएल शेष कोयला नहीं देगा. इस मनमाने आदेश से छत्तीसगढ़ राज्य में स्टील, सीमेंट, एल्यूमिनियम और पेपर इंडस्ट्री सहित अनेक सीपीपी आधारित उद्योगों की सेहत और भी ज्यादा बिगड़ जाएगी.
स्पंज आयरन एसोसिएशन ने मांग की है कि राज्य के संसाधनों पर पहला अधिकार स्थानीय उद्योगों का है. ऐसे में उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर कोयला मिलना चाहिए. एसोसिएशन ने एसईसीएल की कार्यशैली के साथ कोल माफिया की संदिग्ध भूमिका की ओर भी ध्यान दिलाया है. यह कहा गया है कि सीपीपी आधारित उद्योगों के हितों के विपरीत काम किया जा रहा है. यदि उद्योग बंद हुए तो बेरोजगारी बढ़ेगी जिससे प्रदेश को राजस्व का नुकसान होगा.
बताते चलें कि छत्तीसगढ़ राज्य के 250 से अधिक कैप्टिव विद्युत संयंत्रों पर आधारित उद्योगों के सुचारू संचालन के लिए प्रति वर्ष 32 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है, जो कि एसईसीएल के उत्पादन का मात्र 19 प्रतिशत है. इन उद्योगों ने लगभग 4000 मेगावॉट के कैप्टिव पावर प्लांट स्थापित किए हैं, जिनके लिए हर दिन लगभग 2 लाख टन कोयले की जरूरत है. लेकिन अपने उत्पादन लक्ष्य से काफी पिछड़ चुकी कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी एसईसीएल की स्थिति यह है कि उसने नॉन पावर सेक्टर को प्रतिदिन मात्र 50 हजार टन कोयले की आपूर्ति करने की रणनीति बनाई है.
एसईसीएल का वार्षिक उत्पादन लक्ष्य 165 मिलियन टन है, और देश के कुल कोयला उत्पादन का 25 प्रतिशत राज्य में उत्पादन किया जाता है. एसईसीएल के सामने चौथी तिमाही में 15 जनवरी से 31 मार्च 2022 के दौरान 75 दिनों में 75 मिलियन टन का उत्पादन लक्ष्य पाने की बड़ी चुनौती है. वर्तमान में एसईसीएल प्रतिदिन लगभग 4 लाख टन कोयला निकाल पा रहा है. इस गति से एसईसीएल इस वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही में 35-37 मिलियन टन के आंकड़े तक सिमट जाएगा. ऐसे में कोल इंडिया ने राज्य के संयंत्रों की जरूरतों पर कैंची चला दी है और राज्य का कोयला दूसरे राज्यों में भेजने का फैसला कर लिया है.