रायपुर. प्रदेश छेरछेरा के उत्साह में डूबा हुआ है. ये उत्साह  2 के बाद  3 जनवरी भी जारी रहेगा. सरगुजा में इसे छेरता के नाम से जाना जाता है. ये खरीफ की फसल काटने की खुशी में मनाया जाने वाला त्यौहार है. इसमें मांदर, ढोल लेकर टोलियां घरों में पहुंचती है और उनसे अनाज इकट्ठा करके उत्सव मनाया जाता है.

जानकार बताते हैं कि इससे नये फसली साल का आगाज़ होता है. इस त्यौहार को पूरे छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है. लड़कियां सुआ नृत्य करती हैं और पुरुष शैला या डांडा नृत्य टोलियों में करके घर-घर से धान इकट्ठा करते हैं और पौष माह के पुर्णिमा के दिन पिकनिक मनाते हैं. ये नृत्य टोलियां हफ्ते भर पहले निकली. साथ में इनके मांदर, मंजीरा, ढोल और डंडा होता है. गांव के बच्‍चों की टोलियाँ घर-घर जाकर परम्‍परानुसार प्रचलित बोल छेर छेरता काठी के धान हेर लरिका बोलते हैं और मुट्ठी भर अनाज मांगते हैं. रात्रि में ग्रामीण बालाएं टोली बनाकर घर में जाकर लोकड़ी नामक गीत गाती हैं.

कुछ आदिवासी समुदायों में इस उत्साह में महुआ, हड़िया (चावल की शराब जिसे राइस बीयर भी कहा जाता है) बनाकर बकरा मुर्गे खाया जाता है. सभी के घरों में नये चावल का चिवड़ा गुड़ तथा तिली के व्‍यंजन बनाकर खाया जाता है. सभी के घरों में नये चावल का चिवड़ा गुड़ तथा तिली के व्‍यंजन बनाकर खाया जाता है. गांव के बच्‍चों की टोलियाँ घर-घर जाकर परम्‍परानुसार प्रचलित बोल छेर छेरता काठी के धान हेर लरिका बोलते हैं और मुट्ठी भर अनाज मांगते हैं. रात्रि में ग्रामीण बालाएं टोली बनाकर घर में जाकर लोकड़ी नामक गीत गाती हैं.

इस त्योहार के पहले ही डंडा नृत्य करने वाले लोग आसपास के गाँवों में नृत्य करने जाते हैं. वहाँ उन्हें बड़ी मात्रा में धान व नगद रुपए मिल जाते हैं. इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहता है. इस दिन लोग प्रायः गाँव छोड़कर बाहर नहीं जाते.