सुदीप उपाध्याय, वाड्रफनगर। बलरामपुर जिले में कोरोना काल में कुपोषण से कोडाकू जनजाति से जुड़े एक परिवार के बच्चे की मौत हो गई. सबसे हैरानी वाली बात यह है कि बच्चे को पौष्टिक भोजन इसलिए नहीं मिल पाया क्योंकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सीमा विवाद को लेकर उलझे रहे. अब बच्चे की मौत के बाद अधिकारी परिवार का हालचाल जान रहे हैं, और राशन की व्यवस्था करने में जुटे हैं.
मामला जिले के वाड्रफनगर विकासखंड के ग्राम पंचायत भगवानपुर का है, जहां भीख मांगकर जीवनयापर करने वाले कोडाकू जनजाति के बिपन के परिवार को दो वक्ता का खाना तक नसीब नहीं हुआ. परिवार के पास राशन कार्ड नहीं है, जिसकी वजह से कोरोना काल में सरकार से मिलने वाला चावल तक नसीब नहीं हुआ.
भूख और कुपोषण से बिपन के 2 साल का नाती की तबीयत खराब हुई तो उसे लेकर वह अस्पताल लेकर पहुंचा, जहां डॉक्टर ने उसे काफी कुपोषित बताया. प्रारंभिक इलाज के बाद उसे घर भेज दिया. घर में फिर चावल की किल्लत ने आखिर बच्चे की जान ले ली. बच्चे को भोजन नहीं मिल पाने पर महिला बाल विकास विभाग की कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी से मुकर रहीं हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये हमारे सेक्टर में नहीं आते है, जिसके चलते बच्चे को रेडी टू ईट, दूध, अंडा तक नहीं मिला.

वहीं कुपोषण से मासूम बच्चे की मौत की खबर मिलते ही वाड्रफनगर के प्रशासनिक अधिकारी एसडीएम, सीईओ, तहसीलदार, बीएमओ और महिला बाल विकास विभाग सभी अधिकारी मौके पर पहुंच कर पीड़ित परिवार से मिले और उनके लिए खाद्यान की व्यवस्था भी करवाई. मृत बच्चा अपने नाना के साथ रहा करता था. नाना भीख मांग कर गुजारा किया करता था. शासन से मिलने वाले मूलभूत सुविधाओं से वंचित होने की वजह से वह बच्चों के इलाज के साथ उन्हें बेहतर संरक्षण के लिए सक्षम नहीं था, जिसकी वजह से बच्चा आज वह काल के गाल में समा गया.
एसडीएम ने भी मानी गलती
इस संबंध में वाड्रफनगर विकास खंड के अनुविभागीय अधिकारी विशाल महाराणा ने बताया कि बच्चे की मौत कुपोषण से ही हुई है, और महिला बाल विकास की घोर लापरवाही है, अगर समय पर उसे पोषित आहार दिया गया होता तो उसकी मौत नहीं हुई होती.