अमित कोड़ले, बैतूल। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर सरकार अरबों रुपए खर्च कर मुफ्त में सभी विषयों की पुस्तकें उपलब्ध करवाती है, लेकिन इन पुस्तकों का क्या हश्र होता है ये बैतूल के आमला ब्लॉक के सरकारी स्कूल में देखने को मिला है। जहां लापरवाह अधिकारी पिछले कई साल से एक जर्जर भवन में वितरण के लिए दी गई पुस्तकें स्टोर कर रख रहे थे। वहीं दूसरी तरफ हजारों पुस्तकें चोर ले जा रहे थे। जब कुछ स्थानीय लोगों ने इसका खुलासा किया तब अधिकारी अपनी नौकरी बचाने के लिए एक्शन में आए हैं।
दरअसल, बैतूल के आमला ब्लॉक में एक बंद हो चुके जर्जर स्कूल भवन को शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने स्टोर रूम बना रखा है। यहां पाठ्य पुस्तक निगम से निःशुल्क वितरण के लिए दी जाने वाली पुस्तकें रखी जा रही थी। लेकिन पिछले कई दिनों से इस स्टोर रूम में चोर सेंध लगा रहे थे, जिसकी जानकारी होने के बावजूद शिक्षा विभाग के अधिकारी मौन साधे बैठे रहे। जिसके कारण अब तक हजारों पुस्तकें चोरी हो चुकी है। इसी परिसर में बनी एक आंगनबाड़ी के कर्मचारी चोरी के गवाह है।
वहीं जो पुस्तकें चोरी हुई है, उनमें कक्षा नौवों से लेकर कक्षा बारहवीं तक की पुस्तकों के बंडल थे। एक बंडल में 100 से 200 तक पुस्तकें होती है और इस स्टोर रूम से तो पुस्तकों के ना जाने कितने बंडल चोरी हो चुके है। बाकी बची पुस्तकें भी सीलन और लापरवाही की वजह से सड़ रही है। अधिकारियों को चोरी की सूचनाएं जब भी मिली तो पुलिस को सूचना देने की जगह वो स्टोर रूम के ताले बदलकर मामला रफा दफा करते रहे।
विडियो वायरल होने पर शुरू की जांच
लगातार चोरी हो रही पुस्तकों की जानकारी स्थानीय लोगों को थी और उन्होंने इसके कुछ वीडियो बनाकर वायरल कर दिए। जब मामला गरमाया तो अधिकारी जांच के नाम पर एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोपने में जुटे हुए है। उन्हें ये भी नहीं मालूम कि आखिर कितनी किताबें अब तक चोरी हो चुकी है।
क्या इन पुस्तकों का कोई मूल्य नहीं
अधिकारी ये भी तर्क दे रहे हैं कि जो पुस्तके चोरी हुई हैं वो वितरण के बाद बची हुई पुस्तके थी, लेकिन सवाल ये है कि क्या बची हुई पुस्तकों का कोई मूल्य नहीं था? क्या उनका चोरी हो जाना सरकार को आर्थिक नुकसान नहीं है ? और क्या शिक्षा विभाग की इस मामले में कोई लापरवाही नहीं है? इन सभी सवालों के जवाब मिलने के बजाय मामला पुलिस के पाले में डालकर इतिश्री कर ली गई है ।
कबाड़ियों का बना कमाई का जरिया
बैतूल में साल 2007 में भी पाठ्य पुस्तक निगम की लाखों रुपए कीमत की पुस्तकें शहर के एक कबाड़खाने में बरामद हुई थी। जिसे लेकर खूब बवाल मचा था। वहीं दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हुई थी। अब एक बार फिर ये साबित हो रहा है कि सरकार जिस नियत से जरूरतमन्द बच्चों के लिए अरबों खर्च करके किताबे उपलब्ध करवा रही है वो किताबें शिक्षा विभाग और कबाड़ियों की कमाई का जरिया बन गई है।
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