नई दिल्ली। चीन की विस्तारवादी नीति केवल वहां के नीति निर्माता ही नहीं बल्कि वहां का हर तबके के दिलो-दिमाग पर घर कर गया है. यही वजह है कि माउंट एवरेट को चीन के स्वायत्तशासी क्षेत्र तिब्बत में स्थित होने के चीन के सरकारी चैनल CGTN के ट्वीट पर जमकर नेपाली और भारतीयों ने जमकर खबर ली और ट्विटर पर ‘#BackOffChina’ का ट्रेंड चलने लगा.
नेपाल के एक ट्वीट यूजर ‘#BackOffChina’ हैश़टेग के साथ अफवाह फैलाने से बाज आने की बात कहते हुए माउंट एवरेस्ट के चीन में नहीं बल्कि नेपाल में होने की बात लिखी. दूसरे व्यक्ति ने ट्वीट किया कि यह हमारा माउंट एवरेस्ट (8848 ht) है. हम इसे तुम्हे इस्तेमाल करने नहीं दे सकते. नेपाल सरकार को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए. यह अब तक यहां पर कभी इस्तेमाल नहीं किया गया शब्द है. यह अस्वीकार्य है. ‘#BackOffChina’
चलिए अब फिर से CGTN के ट्वीट पर चलते हैं. चीन में माउंट एवरेस्ट को माउंट कोमोलांग्मा कहा जाता है. 2 मई को CGTN ने माउंट कोमोलांग्मा (माउंट एवरेस्ट) के ऊपर के अविश्वसनीय प्रभामंडल (halo) वाली तस्वीर को ट्वीट किया था. लेकिन इसके साथ ही इसे चीन में स्थित दुनिया की सबसे ऊंची चोटी करार दे दिया था.
इससे केवल नेपाल के लोगों को ही नहीं बल्कि भारत के लोगों को भी ठेस पहुंची. दोनों देशों के लोगों ने आक्रामक तरीके से इस ट्वीट का जवाब दिया. नेपाल के लोगों ने इसे अपने देश की शान बताते हुए नेपाल सरकार से इस तरह के ट्वीट पर सख्त एतराज जताने को कहा.
जानकारों के मुताबिक, नेपाल और चीन के बीच 1960 में सीमा विवाद को लेकर एक संधि हुई थी, जिसमें माउंट एवरेस्ट के बंटवारे की बात शामिल थी. माउंट एवरेस्ट का दक्षिणी हिस्सा नेपाल का तो उत्तरी हिस्सा स्वायत्तशासी क्षेत्र तिब्बत में स्वीकार किया गया था, तिब्बत को चीन अपना हिस्सा मानता है.