Supreme Court ने मंगलवार (9 December, 2025) को election commission से पूछा कि क्या किसी संदिग्ध की नागिरकता की जांच करना उसके संवैधानिक अधिकार से बाहर है. विभिन्न राज्यों में चल रहे वोटर लिस्ट के SIR के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की. Supreme Court में यह दलील दी गई कि चुनाव आयोग नागरिकता के मुद्दे पर फैसला नहीं ले सकता है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया.Chief Justice सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के सामने दलील दी गई कि election commission नागरिकता के मुद्दे पर decision नहीं ले सकता. Election commission का काम सिर्फ यह विचार करना होता है कि व्यक्ति भारतीय नागरिक है, उसकी आयु 18 years या उससे अधिक है और वह उसी निर्वाचन क्षेत्र में रहता है.

PTI की report के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि SIR प्रक्रिया क्षेत्राधिकार के अतिक्रमण और प्रक्रियागत अनियमितताओं से ग्रसित है और इसमें नागरिकता साबित करने का भार असंवैधानिक रूप से आम मतदाताओं पर डाला गया है. Senior Advocate शादान फरासत ने कहा कि Article 326 के तहत वयस्क मताधिकार के लिए सिर्फ three conditions पूरी होनी चाहिए और वे हैं- भारत की नागरिकता, 18 साल की आयु और विशिष्ट अयोग्यताओं का अभाव.

एडवोकेट फरासत ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम इन आधारों को प्रतिबिंबित करता है, लेकिन मतदाता सूची से बाहर करने के लिए नए आधार नहीं दे सकता. उन्होंने कहा, ‘निर्वाचन आयोग को मुझे वोटर लिस्ट में शामिल होने से रोकने या लिस्ट से बाहर करने का कोई अधिकार नहीं है. नागरिकता पर फैसला सिर्फ केंद्र सरकार या विदेशी न्यायाधिकरण ही ले सकता है.

कोर्ट ने कहा, ‘नागरिकता एक संवैधानिक अनिवार्यता है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 19 अनुच्छेद 325 के आधार पर अधिनियमित की गई है. एक अवैध प्रवासी लंबे समय से यहां रह रहा है… मान लीजिए 10 साल से अधिक समय से… तो क्या उसे सूची में बने रहना चाहिए? यह कहना कि निवास और आयु से संतुष्ट होने पर नागरिकता मान ली जाती है, गलत होगा. यह निवास या आयु पर निर्भर नहीं है, क्योंकि नागरिकता एक संवैधानिक आवश्यकता है.’

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