भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई(B.R Gawai) ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा (Yashwant Verma) द्वारा दायर याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. इस याचिका में एक इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी गई है, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा को कथित “कैश रिकवरी” विवाद में दोषी ठहराया गया था. CJI गवई ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल(Kapil Sibaal) को बताया कि वह इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते क्योंकि वह उस समिति का हिस्सा थे जिसने जस्टिस वर्मा का चयन किया था. उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले को सूचीबद्ध करने के लिए एक नई पीठ का गठन करना आवश्यक होगा.
यह टिप्पणी तब आई जब कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति वर्मा के माध्यम से इस मामले के त्वरित निपटारे की मांग की. सिब्बल ने कहा कि याचिका में संवैधानिक मुद्दे उठाए गए हैं, इसलिए इसकी शीघ्र सुनवाई आवश्यक है. मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची भी शामिल थे. जस्टिस वर्मा ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा 8 मई को की गई उस सिफारिश को भी रद्द करने की मांग की, जिसमें उन्होंने संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह किया था.
क्या है मामला?
जस्टिस यशवंत वर्मा उस समय दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे, जब 14 मार्च की रात लगभग 11:35 बजे उनके आधिकारिक निवास पर आग लग गई. इस घटना के बाद मौके से कैश मिलने की सूचना ने विवाद को जन्म दिया. इसके परिणामस्वरूप, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागु की अध्यक्षता में एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसने 10 दिनों तक जांच की, जिसमें 55 गवाहों से पूछताछ की गई और घटनास्थल का निरीक्षण भी किया गया. समिति की रिपोर्ट के आधार पर, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने 8 मई को संसद से जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की.
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संसद में महाभियोग प्रस्ताव
सोमवार को 208 सांसदों, जिनमें 145 लोकसभा और 63 राज्यसभा के सदस्य शामिल हैं, ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति को याचिका प्रस्तुत की. इस प्रस्ताव पर प्रमुख हस्ताक्षरकर्ताओं में राहुल गांधी, अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, सुप्रिया सुले, पी.पी. चौधरी और के.सी. वेणुगोपाल का नाम शामिल है. कांग्रेस सांसद के. सुरेश ने इस कदम को पार्टी का पूरा समर्थन मिलने की पुष्टि की.
यह प्रस्ताव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है. इन अनुच्छेदों के अनुसार, किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए कम से कम 100 लोकसभा और 50 राज्यसभा सांसदों का समर्थन आवश्यक है. अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं या अस्वीकार करते हैं.
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने जांच समिति की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग के साथ-साथ महाभियोग की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं. मुख्य न्यायाधीश गवई के अलग होने के बाद, अब एक नई पीठ का गठन किया जाएगा जो इस संवेदनशील और संवैधानिक मुद्दे पर सुनवाई करेगी.
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