लखनऊ. उत्तर प्रदेश चतुर्थ श्रेणी राज्य कर्मचारी महासंघ के प्रदेश महामंत्री सुरेश सिंह यादव एवं प्रदेश अध्यक्ष रामराज दुबे ने गुरुवार को प्रेसवार्ता की. जिसमें उन्होंने मुख्यत: आठवें केंद्रीय वेतन आयोग को लेकर बयान जारी किया. उन्होंने कहा कि 8वें सीपीसी को सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के साथ न्याय करना चाहिए. दिल्ली विधानसभा चुनावों के मद्देनजर 16 जुलाई, 2025 को सरकार द्वारा 8वें केंद्रीय वेतन आयोग के गठन का फैसला लेने के बाद, यह फैसला ठंडे बस्ते में चला गया और अब बिहार चुनावों में जब कुछ ही दिन बचे हैं, 10 महीने बाद कैबिनेट ने 28.10.2025 को 8वें केंद्रीय वेतन आयोग के गठन का फैसला लिया है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को आयोग के लिए एक अध्यक्ष और एक अंशकालिक सदस्य नामित करने में 10 महीने लग गए.
आयोग को सरकार को अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए 18 महीने का समय दिया गया है, जिसका मतलब है कि हम 8वें केंद्रीय वेतन आयोग की रिपोर्ट/सिफारिशों की उम्मीद केवल 2027 के मध्य में ही कर सकते हैं और जब तक सरकार फैसला लेगी, अगर वह काफी ईमानदार है, तो यह 2027 के अंत तक जा सकता है. केंद्र और राज्य दोनों के सरकारी कर्मचारियों को अपनी मजदूरी में संशोधन के लिए और दो साल इंतजार करना होगा. यह उनके साथ अन्याय है.
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सरकार द्वारा 8वें केंद्रीय वेतन आयोग को दिए गए संदर्भ की शर्तें इतनी कठोर हैं कि 8वें CPC पर अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में बहुत सारी मजबूरियां पैदा होंगी, क्योंकि सरकार द्वारा जारी प्रेस नोट से देखे गए लगभग सभी संदर्भ की शर्तें केवल यही कहती हैं कि 8वें केंद्रीय वेतन आयोग को आर्थिक स्थितियों, वित्तीय विवेक, विकासात्मक व्यय और कल्याणकारी उपायों के लिए पर्याप्त संसाधन सुनिश्चित करने और सबसे बुरी बात गैर-अंशदायी पेंशन योजना की बिना वित्तपोषित लागत के बारे में ध्यान रखना चाहिए यह कहा गया. ये सभी बातें सरकार के दिमाग में तभी आती हैं जब कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को कोई लाभ देने की बात आती है. कॉरपोरेट्स द्वारा सार्वजनिक बैंकों से लिए गए लोन पर छूट/राहत देने और उन्हें माफ करने, या कॉरपोरेट्स पर टैक्स रेट कम करने आदि के समय मोदी सरकार इन आर्थिक स्थितियों और वित्तीय समझदारी आदि पर कभी विचार नहीं करती है.
8वां केंद्रीय वेतन आयोग, सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदियों के बावजूद, एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में, निष्पक्ष रूप से अध्ययन करने और पांच यूनिट वाले परिवार के लिए जरूरत के हिसाब से न्यूनतम वेतन की सिफारिश करने के लिए बाध्य है, न कि तीन यूनिट वाले परिवार के लिए, यह देखते हुए कि अब माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक संरक्षण अधिनियम, या माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत बूढ़े माता-पिता की देखभाल करना बच्चों की कानूनी जिम्मेदारी है और इसलिए माता-पिता अब परिवार का हिस्सा हैं. इसके अलावा, आज की जीवन की जरूरतों, सूचना प्रौद्योगिकी पर खर्च, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल आदि पर खर्च को देखते हुए, क्योंकि इन सभी का निजीकरण वर्तमान सरकार द्वारा किया गया है, 8वें CPC को एक न्यूनतम वेतन की सिफारिश करनी चाहिए ताकि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से आने वाले सरकारी कर्मचारी एक सम्मानजनक और गरिमापूर्ण जीवन जी सकें.
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चिंता की बात यह है कि 01.01.2026 से पहले रिटायर हुए कर्मचारियों की पेंशन में 01.01.2026 से होने वाले रिवीजन के संबंध में, सरकार द्वारा फाइनेंस एक्ट के माध्यम से सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 (अब 2021) में किए गए बदलाव के कारण भविष्य और पिछले पेंशनभोगियों के बीच भेदभाव किया जा रहा है. जैसा कि पहले भी हुआ है, सरकार को विशेष रूप से 8वें केंद्रीय वेतन आयोग से 1 जनवरी 2026 से सेवारत कर्मचारियों के बराबर पेंशन रिवीजन की सिफारिश करने के लिए कहना चाहिए. इसी तरह, 8वें केंद्रीय वेतन आयोग की यह जिम्मेदारी है कि वह एनपीएस में शामिल 24 लाख से ज्यादा केंद्र सरकार के कर्मचारियों की इस जायज मांग पर विचार करे कि उन्हें 1 जनवरी 2004 से नॉन-कंट्रीब्यूटरी पुरानी पेंशन योजना में शामिल किया जाए. एटक सभी केंद्र सरकार के कर्मचारियों, पेंशनभोगियों और राज्य सरकार के कर्मचारियों से एकजुट होकर 8वें केंद्रीय वेतन आयोग के सामने अपनी मांगें रखने और न्याय पाने के लिए अपनी रणनीति तैयार करने का आह्वान करता है.
8वें केंद्रीय वेतन आयोग से सम्मानजनक और उचित व्यवहार दोनों कर्मचारी नेता प्रदेश अध्यक्ष रामराज दुबे प्रदेश महासचिव सुरेश सिंह यादव एवं राष्ट्रीय डिप्टी जनरल सेक्रेटरी अखिलेश भारतीय राज्य सरकारी चतुर्थ श्रेणी महासंघ ने पुरजोर तरीके से विरोध करते हुए प्रधानमंत्री से है के वेतन आयोग का गठन में देरी एवं एक जनवरी 2026 से लागू किए जाने की पुरजोर तरीके से मांग की दोनों कर्मचारी नेताओं ने यह भी मांग की की समस्त राज्य के एवं उत्तर प्रदेश स्थाई पद रिक्त हैं उनको भरा जाना चाहिए. जिससे बेरोजगारों को अस्थाई रोजगार मिल सके चतुर्थ श्रेणी के 90 लाख पद स्वीकृत है 60% से ज्यादा सेवानिवृत हो चुके हैं यह सभी समस्त राज्यों में भर्ती की जाए तो अस्थाई रोजगार युवाओं को दिया जा सकता है लेकिन सरकार को इस तरफ ध्यान नहीं और सोर्सिंग व्यवस्था को समाप्त किया जाए पुरानी पेंशन बहाल की जाए.
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आज के समाज में ऐसी कर्मचारियों की स्थित है कि जिन कर्मचारियों को पेंशन नहीं मिल रहे हैं उनके बच्चे भी उनकी कोई देखरेख नहीं कर रहा है उनको भी दर-दर भटकना पड़ रहा है जब एक बार सांसद एक बार विधायक एक बार मलक या राज्यसभा बनता है तो हर पेंशन को अलग-अलग लेते हैं और 40 वर्ष 42 वर्ष सेवा करने के बाद कर्मचारियों को पेंशन नहीं दी जा रही है. यह न्याय नहीं है संविधान सभी के लिए बराबर है लेकिन पूरे देश के कर्मचारी समाज की अनदेखी की जा रही अलग-अलग संगठनों द्वारा भी इसकी पुरजोर तरीके से मांग की जा रही लेकिन सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही समय रहते ही सरकार इस पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में समस्त राज के कर्मचारी मिलकर एक पुरजोर तरीके से आंदोलन करने के लिए बढ़े होंगे जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी शासन प्रशासन की हो.
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