रायपुर। राज्यपाल अनुसुईया उइके, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने प्रदेशवासियों को पोला तिहार की बधाई और सुभकामनाएं दी है. साथ ही नागरिकों के सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की है.

राज्यपाल अनुसुईया उइके ने कहा कि पोला का यह पर्व छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में कृषि संस्कृति से गहराई से जुड़ा है. कृषि कर्म एवं श्रम पर आधारित यह पर्व हम सभी के लिए अच्छी फसल की कामना का संदेश लेकर आता है. राज्यपाल ने इस अवसर पर नागरिकों के सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने शुभकामना संदेश में कहा कि पोला तिहार छत्तीसगढ़ की परम्परा, संस्कृति और लोक जीवन की गहराइयों से जुड़ा है. इस त्यौहार में उत्साह से बैलों और जाता-पोरा की पूजा कर अच्छी फसल और घर को धन-धान्य से परिपूर्ण होने के लिए प्रार्थना की जाती है. यह त्यौहार हमारे जीवन में खेती-किसानी और पशुधन का महत्व बताता है. बघेल ने कहा कि यह पर्व बच्चों को हमारी संस्कृति और परम्पराओं से परिचय कराने का भी अच्छा माध्यम है. घरों में प्रतिमान स्वरूप मिट्टी के बैलों और बर्तनों की पूजा कर बच्चों को खेलने के लिए दिया जाता है, जिससे बच्चे अनजाने ही अपनी मिट्टी और उसके सरोकारों से जुड़ते हैं. मुख्यमंत्री ने कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए ग्रामीणों और किसान भाइयों से पोला तिहार के मनाने के दौरान मास्क लगाने और फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील की है.

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने कहा कि पारंपरिक पर्व पोला, खरीफ फसल के द्वितीय चरण का कार्य पूरा हो जाने व फसलों के बढ़ने की खुशी में मनाया जाता है. इस दिन किसानों द्वारा बैलों की पूजन कर कृतज्ञता दर्शाते हुए प्रेम भाव अर्पित किया जाता है, क्योंकि बैलों के सहयोग से ही खेती कार्य किया जाता है. वही पोला पर्व की पूर्व रात्रि को गर्भ पूजन किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है. अर्थात धान के पौधों में दूध भरता है.  इसी कारण पोला के दिन किसी को भी खेतों में जाने की अनुमति नहीं होती. प्रतिष्ठित सभी देवी-देवताओं के पास जाकर विशेष पूजा-आराधना करते हैं. किसान गौमाता और बैलों को स्नान कराकर श्रृंगार करते हैं सींग और खुर यानी पैरों में माहुर, लगाएंगे, गले में घुंघरू, घंटी, कौड़ी के आभूषण पहनाकर पूजा करते है.

डॉ महंत ने बताया कि परंपराओं अनुसार ग्रामीण इलाकों में युवतियां नंदी बैल, साहड़ा देव की प्रतिमा स्थल पर पोरा पटकने जाएंगी. नंदी बैल के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए अपने-अपने घर से लाए गए मिट्टी के खिलौने को पटककर फोड़ेंगी. मान्यता है कि, कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहां रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था. एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था, जिसे भी कृष्ण ने मार दिया था. वह दिन भाद्रपद अमावस्या का था इसलिए इसे पोला कहा जाता है.