रायपुर। छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही भूपेश सरकार ढेरों चुनौतियों से घिरी हुई नजर आ रही है. शुरुआती बड़े निर्णय जैसे- कर्ज माफी, जमीन वापसी, बिजली हाफ, 25 सौ रुपये समर्थन मूल्य में धान खरीदी, 4 हजार रुपये में तेंदूपत्ता खरीदी से सरकार ने तो वाहवाही तो खूब लूटी. लेकिन इसके बाद सरकार के सामने एक बाद एक कई ऐसी घटनाएं हुई जिससे बदनामी भी हुई और किरकिरी भी. सवाल भी उठने लगे कि सरकार के नियंत्रण में प्रशासन नहीं है क्या ? जैसे ट्रेजरी में वेतन भूगतान की शिकायत आई, नक्सल हमले में भाजपा विधायक की मौत की, सरकारी नौकरी पर रोक की खबरें,  फिर पीईटी-पीपीएचटी परीक्षा रद्द, चिप्स के सर्वर पर सवाल ? और 10 मई की रात कई जिलों में घंटे भर बिजली बंद की समस्या.

अब सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि ऐसी स्थितियां बन क्यों रही है ? क्या वाकई में शासन के नियंत्रण में प्रशासन नहीं है ? या फिर यह सबस महज एक घटनाएं है जो एक बाद एक घट रही है. या यह भी कि कहीं सरकार के खिलाफ कोई साजिश तो नहीं हो रही है ? साजिश कहीं सरकार की छवि खराब करने की तो नहीं हो रही है ? क्योंकि एक बाद एक हुई घटनाओं को लेकर जिस तरह रिपोर्ट्स मीडिया में आती रही उससे तो यही सवाल उभर के सामने आए हैं. फिर चाहे सरकारी नौकरी में रोक को लेकर वित्तीय संकट गहारने जैसी खबरें हो या फिर 10 मई को बिजली बंद होने को लेकर या व्यामं के सर्वर में खराबी वाली खबर ?

वैसे एक चर्चा सोशल मीडिया और आमजनों में यह रही है कि यह सरकार पूर्व की सरकारों से ज्यादा छत्तीसगढ़िया हितैषी सरकार है. इस सरकार में छत्तीसगढ़ियापन अलग से ही झलकता है. सरकार की बोली-भाषा के साथ-साथ नीति-रीति और अधिकारियों की स्थिति में भी. तो कहीं छत्तीसगढ़ियापन ही तो सरकार के लिए चुनौती तो नहीं बन गई है. क्योंकि चर्चा यह भी खूब होती है कि बहुत ऐसे लोग सिस्टम के भीतर हैं जिन्हें ठेठ छत्तीसगढ़िया सरकार से बड़ी दिक्कत हो रही है. और यही दिक्कत मीडिया जगत की भी बताई जाती है. क्योंकि भूपेश सरकार आने के बाद जहाँ उपेक्षित छत्तीसगढ़िया लोगों को सम्मान मिला है तो वहीं छत्तीसगढ़िया अधिकारियों को बड़ा बल भी.

लेकिन व्यवस्था आसानी से कहाँ सुधरती है. सिस्टम के भीतर कई सिस्टम काम कर रहे होते हैं जिन्हें कई बार समझने में बहुत देर हो जाती है. सरकार की ओर से कराई जा रही जाँच ऐसे सिस्टमों की ओर इशारा करते हैं. इस व्यवस्थाओं में अधिकारियों ने कितनी गड़बड़ियां की वह सब धीरे-धीरे खुलकर सामने आती जा रही है. फिर मसला नान को, खदान को, वन का हो या जनसंपर्क का. मसला फिर चाहे नक्सल नीतियों को लेकर हो, या फिर बने कई सारी समितियों को लेकर हो या फिर चिप्स में गड़बड़ी का, या फिर फोन टैपिंग कड़ी का. मसला जो भी हो हर जगह सरकार के सामने चुनौतियाँ अगनित दिखती है.

कहीं इसी तरह की गड़बड़ियाँ बिजली विभाग में भी तो बड़े पैमाने पर नहीं हुई. क्योंकि यहाँ का सिस्टम भी तो उसी अफसर के हवाले ही रहा जिनके जिम्मे रहे महत्वपूर्ण विभाग में गड़बड़ियों की जाँच ईओडब्ल्यू कर रही है. दरअसल मीडिया में इसी विभाग को लेकर कई तरह की खबरें लिखी जा रही है. चूंकि विभाग के अधिकारी छत्तीसगढ़िया है तो बतातें हैं बहुतों को दिक्कत हो गई है. वैसे ऐसी दिक्कतें बहुत सारें विभागों में है ऐसा लोग कहते हैं. लेकिन इन स्थितियों के बीच जो रिपोर्ट सरकार की सामने लाई जा रही उससे तो यह सवाल अपने आप ही उठ खड़े हुए क्या छत्तीसगढ़िया सरकार के खिलाफ वाकई कहीं कोई सिस्टम के भीतर कोई साजिश हो रही है ?

ये लेखक की अपनी टिप्पणी है.
लेखक- टीवी पत्रकार