कांकेर। भेंट-मुलाकात का फायदा आम आदमी को मिल रहा है. कार्यक्रम के पहले ही लोगों के सभी होने वाले काम हो रहे हैं. शिकायत कम मिल रही है तो कार्रवाई भी कम या ना के बराबर है. वहीं जो घोषणाएँ की हैं, उनके क्रियान्वयन के लिए 15 दिन में कार्ययोजना बनाने के लिए अधिकारियों को कहा है. यह बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांकेर में समीक्षा बैठक के बाद पत्रकारों से चर्चा में कही.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि बस्तर संभाग की 12 विधानसभा में भेंट-मुलाक़ात पूरी हुई है. बस्तर की अपनी अलग पहचान है. भौगोलिक से लेकर वनोपज और पर्यटन से लेकर नक्सल तक की बात होती है. साढ़े तीन साल में बस्तर और कांकेर में परिवर्तन दिख रहा है. पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सभी जिलों ने काम किया है. आदिवासियों की आय के साधन बढ़े हैं. हर विधानसभा में बैंक की मांग आ रही है. आर्थिक गतिविधियों में इज़ाफ़ा हुआ है. मोटरसाइकिल, कार, ट्रेक्टर के शो रूम बढ़े हैं. कृषि में किसानों की रुचि बढ़ी है, इसी कारण बैंकों की माँग बढ़ी है.

उन्होंने कहा कि बंदोबस्त त्रुटि के लिए ड्रोन से सर्वे करने के निर्देश दिए हैं. सरकार का पहला साल चुनाव में और अगले दो साल कोरोना में बीते, हमने समय का उपयोग करते हुए योजनाएं बनाई. अब योजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है. स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल, हाट बाज़ार क्लीनिक, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी, गोधन न्याय जैसी अनेक अभिनव योजना शुरू की. कोंडागांव सहित बस्तर के इलाक़ों में दौरे का फ़ायदा आम जनता को मिला है. कई लोगों की समस्या का निराकरण त्वरित हो रहा है.

उन्होंने कहा कि महुआ की खरीदी बढ़ी है. काजू से लेकर मिलेट्स तक और महुआ का मूल्य संवर्द्धन हो रहा है, तो लोगों की जेब में पैसा आ रहा है. बदलते बस्तर की तस्वीर बदल रही है. मैं सन्तुष्ट हूं कि हमारी योजनाओं का क्रियान्वयन ज़मीनी स्तर पर हो रहा है. लोग सीधे योजनाओं का लाभ ले रहे हैं. हम हवाई सेवा का विस्तार कर रहे हैं, विकास के लिए काम कर रहे हैं.

दायरे में रखकर अधिकारी करें भलाई के कार्य

इसके पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समीक्षा बैठक में अधिकारियों को निर्देशित किया कि फारेस्ट के मामले में नियमों के दायरे रह कर लोगों की भलाई में काम करें.
फारेस्ट मामलों में बंदिशे हैं, पर हमें वनवासियों के लिए काम करना होगा. उन्होंने कहा कि वनवासियों को जंगल में रहने पर सजा का अहसास ना हो बल्कि उन्हें सभी सुविधाएँ नियमों के दायरे में ही मिले. आदिवासी संस्कृति वनों का नुक़सान करने की नहीं है, बल्कि आदिवासी वनों के संरक्षक हैं. वो दिन भी देखे जब ना आधार कार्ड था, ना वोटर कार्ड, ना राशन मिलता था, ना किसी योजना का लाभ. लेकिन अब अब परिस्थितियाँ बदली हैं. शासकीय योजना का अच्छा क्रियान्वयन हो तो जनता शिकायत नहीं करेगी.