रायपुर- छत्तीसगढ़ विधानसभा में सदन की कार्यवाही के दौरान बीजेपी विधायक अजय चंद्राकर की कांग्रेस को विकलांग पार्टी कहे जाने वाली टिप्पणी पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जमकर भड़के. सदन के बाहर मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यजनक बात है. हमारी पार्टी को कोई विकलांग कहे, इससे ज्यादा आपत्तिजनक कुछ नहीं हो सकता. यह मानसिक दिवालियापन है. भूपेश बघेल ने कहा कि देश की आजादी की लड़ाई कांग्रेस पार्टी ने लड़ी. देश का निर्माण कांग्रेस पार्टी ने किया. देश का संविधान बनाने वाली कांग्रेस ही थी. महान लोगों इस पार्टी के सदस्य रहे हैं और इस पार्टी के बार में यदि अजय चंद्राकर विकलांग होने जैसी टिप्पणी करे, तो यह उचित नहीं है. 

भूपेश बघेल ने कहा कि जोगी जी ने एक बार कहा था कि कांग्रेस मेरी मां है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के सेंट्रल हाल में कहा था कि बीजेपी उनकी मां के समान है. इसका मतलब यह है कि जो पार्टी है, वह मां की तरह होती है. मां को कोई गाली दे, इसे कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है, जिस पार्टी की विचारधारा के साथ मैं पूरी जिंदगी संघर्ष करता रहा हूं. आज इस पर बैठा हूं, तो यह कांग्रेस पार्टी की बदौलत ही है. ऐसी टिप्पणी मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता हूं. 

 सदन में धारा 35 ए को लेकर की गई अजय चंद्राकर की उस टिप्पणी पर भी मुख्यमंत्री ने तंज कसा, जिसमें उन्होंने यह कहा था कि जम्मू-कश्मीर से धारा 35 ए हटाने के बाद यह कहीं और लागू नहीं है. दरअसल संविधान पर सदन में हुई विशेष चर्चा के दौरान बीजेपी विधायक अजय चंद्राकर ने अपने भाषण के दौरान यह कहा था, जिस पर मुख्यमंत्री ने आपत्ति जताई थी. भूपेश बघेल ने इसे लेकर कहा कि बीजेपी हमेशा से ही अफवाह फैलाने का काम करती रही है. धारा 35 ए सिर्फ जम्मू-कश्मीर में ही नहीं लगा था. यह नार्थ-ईस्ट के राज्यों में भी लगा है. ये लोग अपनी सुविधा के हिसाब से बातें करते हैं. 
 
सदन में सत्तापक्ष के विधायक बृहस्पति सिंह की बार-बार की जाने वाली टिप्पणी के बाद उन्हें मानव बम की संज्ञा दिए जाने वाले बयान पर भी भूपेश बघेल ने बयान दिया. उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि ये लोग असहमति का कभी सम्मान नहीं कर सकते, क्योंकि इनके आदर्श सावरकर हैं, मुंजे हैं. ये मुसोलिनी-हिटलर से प्रभावित लोग हैं. इनका राष्ट्रवाद इजाजत नहीं देता कि असहमति का सम्मान किया जाए. उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्रवाद पारंपरिक है, जो बुद्ध, गुरूनानक, रामकृष्ण परमहंस, दयानंद सरस्वती, राजा राममोहन राय जैसी हस्तियों से प्रभावित रहा है, जिसमें असहमति का पूरा सम्मान है.