रायपुर- ऑक्सीजन के औद्योगिक उपयोग पर लगाई गई पाबंदी के बाद राज्य के स्टील उद्योग संकट में हैं, लिहाजा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाए. प्रधानमंत्री के साथ हुई वर्चुअल बैठक में बघेल ने कहा कि स्टील उद्योगों में ऑक्सीजन की आपूर्ति रोकने से हजारों लोगों का रोजगार प्रभावित होगा. प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री के सुझाव पर जल्द निर्णय लिए जाने का आश्वासन दिया है.

केंद्र सरकार ने राज्यों को भेजे गए गाइडलाइन में यह कहा था कि ऑक्सीजन के औद्योगिक उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हुए केवल मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाए. केंद्र की गाइडलाइन के आधार पर राज्य ने आदेश जारी किया था. राज्य के स्टील उद्योगों में ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने से उत्पादन पर असर पड़ रहा है. स्टील उद्योग बंद होने की कगार पर आ गए हैं. उत्पादन ठप होने से हजारों लोगों का रोजगार प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहा है. राज्य सरकार को भी आर्थिक क्षति उठानी पड़ेगी. औद्योगिक संगठनों ने भी सरकार से मांग करते हुए कहा था कि राज्य में सरप्लस ऑक्सीजन है. मेडिकल सप्लाई के लिए इस वक्त राज्य में 140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत है, जबकि उत्पादन 380 मीट्रिक टन से ज्यादा है. राज्य से महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश को दिए जाने के बावजूद राज्य के पास पर्याप्त ऑक्सीजन का उत्पादन है. लिहाजा इसके औद्योगिक उपयोग के लिए लगे प्रतिबंध को हटाया जाए.
ऑक्सीजन के औद्योगिक उपयोग पर प्रतिबंध लगने के बाद जिन उद्योगों में ऑक्सीजन का स्टाॅक था, वहां कुछ घंटों तक उत्पादन प्रभावित नहीं हुआ, लेकिन ऑक्सीजन की कमी आगे के लिए रोड़ा बनकर खड़ी हो गई. जानकार कहते हैं कि उद्योगों का बंद होना सही मायने में बुनियादी विकास को कमजोर करने जैसा है. यह हर किसी को प्रभावित करेगा. जानकारों की दलील है कि छत्तीसगढ़ में उद्योग खासतौर पर स्टील प्लांट राज्य की लाइफ लाइन है. ये प्लांट्स यहां के रिच मिनरल रिसोर्स का उपयोग कर उत्पाद तैयार करते हैं. राज्य की आर्थिक गति को मजबूती देते हैं. अकेले रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र उरला और सिलतरा में करीब तीन लाख वर्कर्स को इन प्लांट्स के जरिए रोजगार मिलता है. जाहिर है उत्पादन प्रभावित होने से रोजगार का बड़ा और गहरा संकट खड़ा होगा, जिसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा.
क्या कहा था उद्योगपतियों ने?
उद्योगपति पंकज सारडा कहते हैं कि मौजूदा हालात देखकर लगता है कि यदि उद्योग प्रभावित होते हैं, तो इससे पैनिक सिचुएशन क्रिएट होगा. काम नहीं होने की स्थिति में वर्कर्स पलायन करेगा. इससे बेरोजगारी बढ़ेगी. राज्य की बिजली कंपनी उद्योगों को 500 से 1000 मेगावाट तक की बिजली देकर बड़ा रेवेन्यू जनरेट करती है. उद्योग उत्पादन बंद करेंगे, तो बिजली की जरूरत नहीं होगी, इससे सरकार को रेवेन्यू की बड़ी क्षति होगी. दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि बैंक से कर्ज लेने वाले उद्योगों को रिवाइव कर पाना मुश्किल हो जाएगा. कई उद्योग एनपीए के कगार पर जा पहुंचेंगे. राज्य का जीएसटी लाॅस एक बड़ा फैक्टर होगा. उत्पादन ठप होने से माइनिंग प्रभावित होगी. पंकज सारडा बताते हैं कि स्थानीय स्तर पर जिलों में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड में जाने वाली राशि कम हो जाएगी, इससे विकास के काम प्रभावित होंगे. उनका कहना है कि एक सेक्टर प्रभावित होगा, तो इससे जुड़े दस और सेक्टर हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे. रियल स्टेट, हाउसिंग, माइनिंग जैसे सेक्टर चरमरा जाएंगे. मेजर चेन इफेक्ट देखने को मिल सकता है. हालांकि पंकज सारडा का कहना है कि ऑक्सीजन की कमी के मद्देनजर राज्य सरकार ने अभी कई प्लांट्स को ऑक्सीजन बनाने का लाइसेंस दिया है. बीते दो-तीन दिनों में हालात सुधरते दिख रहे हैं. उन्होंने कहा कि यदि राज्य में ऑक्सीजन की क्राइसेस नहीं है, तो सरकार को थोड़ी राहत दी जानी चाहिए, इसे लेकर राज्य सरकार को केंद्र को चिट्ठी लिखने की जरूरत है.
स्पंज आयरन एसोसिएशन से जुड़े उद्योगपति मनोज अग्रवाल कहते हैं कि सरकार के अधिकारियों से हमारी बातचीत हुई है. हमें बताया गया है कि राज्य में सरप्लस ऑक्सीजन है. करीब 140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मेडिकल और 60-70 मीट्रिक टन उद्योगों को जा रहा है. इसके बावजूद राज्य में ऑक्सीजन सरप्लस है, जिसे हम महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश को दे रहे हैं. मनोज अग्रवाल ने कहा कि, हम चाहते हैं कि करीब बीस फीसदी ऑक्सीजन उद्योगों को दिया जाए .यदि ऑक्सीजन नहीं मिलेगा, तो सारे उद्योग बैठ जाएंगे. दो से तीन लाख मजदूरों के सामने पलायन की स्थिति आ जाएगी. सीएसईबी से पांच सौ से सात सौ मेगावाट का लोड विड्रॉ उद्योगों को हो रहा है, यदि यह अचानक से बंद हो गया तो इससे रेवेन्यू में भी प्रभाव पड़ेगा.