भोपाल/जबलपुर। ‘जबलपुर की धरती बलिदान के लंबे इतिहास को समेटे हुए है। मां नर्मदा की कृपा से यह सदैव समृद्ध रहा है। वीरता-शौर्य-पराक्रम इस धरती की पहचान हैं। जनजातीय नायकों के पराक्रम से सिंचित महाकौशल की यह धरा अद्भुत है। 300 साल पहले शासन करने वाली रानी दुर्गावती के बलिदान से पूरा क्षेत्र आज भी रोमांचित होता है। उनके बाद शासन की बागडोर संभालने वाले राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने आदर्श प्रस्तुत किए। मैं इस पूरे कुल को नमन करता हूं। जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु भी तय है। लेकिन, जीते जी जो मौत को जीत ले, जो अपने पराक्रम-पुरुषार्थ से अपना मस्तक भारत माता के चरणों में समर्पित कर दे, वो वीर नहीं महावीर होते हैं। वो मृत्यु के बाद भी अमर हो जाते हैं। उनका जीवन धन्य हो जाता है।’ यह बात मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 18 सितंबर को जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस कन्वेंशन सेंटर में कही।

सीएम डॉ. मोहन राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के 168वें बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह की लड़ाई का मूल भी स्वदेशी था। प्रदेश के मुखिया ने जनता से स्वदेशी को अपनाने की अपील की।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि हमारी पीढ़ियों की पीढ़ियां निकलने के बाद भी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान को कोई भूल नहीं सकता। हम सब जानते हैं पिता-पुत्र का एक ही रास्ते पर चलना असंभव होता है। ऐसा घटनाक्रम कई जन्मों के पुण्य के बाद होता है। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह एक ही रास्ते पर चले। दोनों ने जब एक ही जगह, एक ही समय, एक साथ खुद को इस बात के लिए प्रेरित किया कि हमें अपने धर्म पर गर्व होना चाहिए। माता रणचण्डी दुर्गा भवानी पर गर्व होना चाहिए। यह वह दौर था जब बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं की अंग्रेजों के सामने आवाज नहीं निकलती थी। लेकिन, राजा शंकर शाह अलग माटी के बने थे। वे अंग्रेजों के सामने न केवल डंके की चोट पर अपनी बात रखते थे, बल्कि कविताओं-गीतों के माध्यम से पूरे आदिवासी अंचल में अलख जगाते थे। राजा शंकर शाह ने इस बात को साबित किया कि भले दस बार जन्म लेना पड़े, लेकिन अंग्रेजों के आगे झुकेंगे नहीं।

यह है इतिहास की बहुत बड़ी घटना

सीएम डॉ. यादव ने कहा कि यह इतिहास की बहुत बड़ी घटना है कि राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने एक ही मार्ग पर चलते हुए जीवन का एक ही लक्ष्य तय किया। इतना ही नहीं राजा शंकर शाह की पत्नी ने भी उसी रास्ते पर चलने का फैसला किया। इस तरह अंग्रेजों के पैर कांपने लगे। अंग्रेजों ने सभी को गिरफ्तार कर लिया। इस राजपरिवार को जहां लाया गया, हमने उस स्थान को तीर्थ स्थल बनाया है। जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया, जिसने मन को जीत लिया , जिसने भारत माता के चरणों में खुद को बलिदान करने का संकल्प कर लिया, उनके आगे तोप के गोले भी छोटे पड़ जाते हैं। उनका मौत भी कुछ नहीं कर सकती।

उन्होंने कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने जीवन का सार्थक किया। दोनों आज भी अमर हैं। कायर अंग्रेजों ने दोनों को जेल में बहुत समझाया कि आप हिंदू धर्म छोड़कर हमारा धर्म अपना लो, संधि कर लो आपकी जान बख्श देंगे। उसके बाद दोनों को तोप के आगे खड़ा करके फिर समझाया, लेकिन, दोनों अलग मिट्टी के बने थे। दोनों ने अंग्रेजों से कहा कि अपना धन अपने पास रखो, चाहे हमें भूखा मरना पड़े हम हिंदू धर्म नहीं छोड़ेंगे। ये कभी नहीं हो सकता कि हम मां दुर्गा की पूजा छोड़ दें। इस गौरवशाली अतीत पर हमें गर्व है। उस समय नकारात्मक ताकतें हमें आपस में लड़वाना चाहती थीं, फूट डालना चाहती थीं। आज भी इस तरह की ताकतें सक्रिय हैं। राजा शंकर शाह की तीसरी पीढ़ी के बाद रानी दुर्गावती ने 1857 तक क्रांति की मशाल को जलाए रखा।

माताओं-बहनों के स्वास्थ्य के लिए खजाने में कमी नहीं

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल आदिवासी अंचल (धार) में अपना जन्मदिन सार्थक किया है। केंद्र और राज्य सरकार जनजातीय भाई-बहनों के कल्याण के लिए संकल्पित है। प्रधानमंत्री मोदी ने प्रदेश के कपास उत्पादक किसानों को पीएम मित्र पार्क की सौगात दी है। माताओं-बहनों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए सरकारी खजाने में कोई कमी नहीं है। समय पर बीमारी की जांच हो जाए तो जान बच जाती है। राज्य सरकार ने स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान के साथ स्वच्छता का संकल्प भी लिया है।

राजा शंकर शाह की लड़ाई का मूल भी स्वदेशी

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि विकसित भारत का मार्ग स्वदेशी से होकर गुजरता है। राजा शंकर शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी। उसका मूल भी स्वदेशी ही था। देश में हमारा अपना शासन और कानून होना चाहिए। देश में स्वदेशी अपनाने का अभियान चल रहा है। गर्व से कहो हम स्वदेशी अपनाएंगे। उन्होंने कहा कि स्व-सहायता समूह की बहनों ने पारंपरिक व्यंजन और उत्पाद तैयार कर आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल पेश की है। हमारे गांवों में आत्मनिर्भर पद्धति थी। केवल नमक लेने बाहर जाना पड़ता था। आइए हम सभी स्वदेशी को अपनाएं।

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