Assam Government Distributing Arms Licenses To Hindu: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अल्पसंख्यक क्षेत्रों (मुस्लिम इलाकों) में रहने वाले हिंदुओं को आर्म्स लाइसेंस देने का ऐलान किया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिंदुओं की सुरक्षा की चिंता जताई है। उन्होंने दक्षिण सलमारा, मनकाचर और भागबर जैसे जिलों का हवाला दिया। वहीं पिछले कई दिनों ने असम में लाइसेंस पॉलिसी को लेकर विपक्ष सवाड़ खड़ा कर रहा है। बता दें कि सीएम सरमा का बयान ऐसे समय में आया है जब असम में जनसंख्या संतुलन और धार्मिक असमानता को लेकर बहस छिड़ी हुई है।

उन्होंने कहा कि असम में कुछ ऐसे जिले हैं, जहां एक गांव में 30,000 लोगों के बीच केवल 100 सनातन धर्म के लोग रहते हैं। कानूनी प्रक्रिया के तहत, यदि ऐसे परिवार चाहें तो उन्हें आर्म्स लाइसेंस मिल सकता है. सनातन धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सनातन धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। अगर कोई हिंदू परिवार कठिन परिस्थितियों में रह रहा है और कानूनी तौर पर हथियार का लाइसेंस लेना चाहता है, तो सरकार उसका पूरा समर्थन करेगी। बता दें कि सीएम सरमा का बयान ऐसे समय में आया है जब असम में जनसंख्या संतुलन और धार्मिक असमानता को लेकर बहस छिड़ी हुई है।

दरअसल, असम मंत्रिमंडल ने इस साल 28 मई को असुरक्षित और रिमोट एरिया के मूल निवासियों में सुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए उन्हें हथियार लाइसेंस जारी करने को मंजूरी दी थी।

बंदूक के लाइसेंस की प्रक्रिया है कठिन

लाइसेंस लेना 1959 के शस्त्र अधिनियम के अंतर्गत आता है। कोई भी नागरिक जो बंदूक रखना चाहता है उसे केवल नॉन प्रोहिबिटेड बोर (एनपीबी) बंदूकें खरीदने की इजाजत दी गई है। इस अधिनियम में एक प्रावधान है, जिसके जरिए आम नागरिक लाइसेंस ले सकता है। किसी भी व्यक्ति को गंभीर खतरा होने पर बंदूक लाइसेंस हासिल करने का अधिकार मिला हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि अपनी जान को खतरा साबित कैसे किया जाए। हालांकि इसे साबित करना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। इसके लिए बस एक एफआईआर दर्ज कराने की जरूरत होती है। लेकिन, भारत में बंदूक लाइसेंस हासिल करने की पूरी प्रक्रिया लंबी है।

जांच के बाद दिया जाएगा लाइसेंस

यह नीति मई 2025 से लागू की गई है, जो सीमावर्ती क्षेत्रों में स्वदेशी लोगों की सुरक्षा के लिए है, जहां बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इसके लिए एक पोर्टल से आवेदन करना होगा और जांच के बाद लाइसेंस दिया जाएगा। वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस फैसले पर सरकार को घेरा है। जबकि बीजेपी समर्थकों का कहना है कि अल्पसंख्यक हिंदू परिवारों के लिए यह जरूरी कदम है।

अपराधियों पर जीरो टॉलरेंस नीति

बता दें कि असम में 2021 में हिमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद से अपराधियों पर जीरो टॉलरेंस नीति लागू की गई थी। आंकड़ों के अनुसार, पिछले 3 साल में पुलिस एनकाउंटर के 200 से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। इनमें से कई मामलों में असम सरकार ने खुलकर कहा कि यह अपराध और उग्रवाद को खत्म करने की रणनीति है।

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