भोपाल. आज मुख्यमंत्री आवास एकसाथ दो पलों का गवाह बना. एक तरफ जहां घनघोर बेबसी, लाचारी और उदासी थी वहीं दूसरी ओर उल्लास, उमंग और खुशियों का माहौल था. एक तरफ सीएम शिवराज के जय जयकारे लगाए जा रहे थे दूसरी तरफ कुछ मुट्ठी भर लोग सीएम के सुरक्षाकर्मियों से गिड़गिड़ा रहे थे कि उनको भी साहेब से एक बार मिलने भर दिया जाय. पता नहीं साहेब से एक मुलाकात में ही उनके जीवन का अंधेरा हट जाए.
सीएम हाउस के अंदर का सीन-
कहते हैं भीड़ की सब सुनते हैं. सीएम शिवराज ने भी सुनी, भीड़ की. अपनी मांगों को लेकर अक्रामक रुख अख्तियार कर चुके शिक्षक किसी भी कीमत पर अपनी मांगें मनवाना चाहते थे. सीएम को भी शिक्षकों के संख्याबल के आगे झुकना पड़ा और उनके संविलियन की मांग माननी पड़ी. सीएम ने जैसे ही संविलियन की मांग मानी जाने की घोषणा की शिक्षकों ने सीएम के जय जयकारे लगाने शुरु कर दिए. सीएम को फूल मालाओं से लादा जाने लगा. सीएम साहेब गदगद थे. आखिर साहेब को जय जयकारे लगवाने और सुनने की आदत जो पड़ गई है. हर तरफ जश्न था, खुशी थी. आखिर शिक्षकों के लिए खुश होने की बात जो थी. शिक्षकों की अरसे से लंबित मांग सीएम साहेब ने एक झटके में मान जो लिया था.
सीएम हाउस के बाहर का सीन-
कहते हैं तस्वीर का दूसरा पहलू भी होता है. बिल्कुल था. सीएम हाउस के बाहर कुछ दृष्टिहीन (दिव्यांग) बेहद उदास और हताश खड़े थे. वे सीएम साहेब के सुरक्षाकर्मियों से भीख मांग रहे थे कि एक बार साहेब से मिल लेने दीजिए. उन्हें उम्मीद थी कि साहेब से एक बार मिल लेने भर से उनकी बदहाल जिंदगी में खुशियों का उजाला आ जाएगा. ठीक वैसे ही जैसे शिक्षकों की जिंदगी में सीएम साहेब के कहे दो शब्दों ने उजाला कर दिया था. बस इसी उम्मीद में ये दिव्यांग मिन्नतें कर रहे थे कि एक बार, बस एक बार सीएम साहेब से मिल लेने दीजिए. शायद सीएम साहेब की कृपा उन पर भी हो जाए. पर इन मासूमों को ये पता नहीं था कि इनके पास भीड़ नहीं है. इनके पास वोट बैंक नहीं है. इसलिए साहेब के पास इनके दुखदर्द सुनने के लिए वक्त नहीं है. अंदर भव्य पंडाल लगा था. सीएम साहेब की शान में कसीदे पढ़े जा रहे थे. उधर सीएम हाउस के बाहर इन मुट्ठीभर दिव्यांगों को दुत्कारा जा रहा था. ठीक सुना है, ठीक वैसे ही जैसे कभी गुलाम भारतीयों को अंग्रेज दुत्कारते थे. इन बेचारों को ये उम्मीद थी कि सीएम हाउस पहुंचकर शायद इनकी हालत और बेहद वाजिब मांगों पर किसी भलेमानस का दिल पसीज जाए और इनकी जिंदगी में भी उजाला हो जाए लेकिन कहावत है न कि आजकल चेहरा देखकर इज्जत मिलती है. ये दिव्यांग थे, कमजोर और लाचार थे. शायद यही वजह थी कि सीएम हाउस के दरवाजे इनके लिए बंद थे. अगर ये भी शिक्षकों जैसे ताकतवर संगठन के नुमाइंदे होते, इनके पास संख्याबल होता तो सीएम हाउस के दरवाजे इनके लिए भी खुल जाते.
हम बस सीएम साहेब शिवराज सिंह चौहान से यही पूछना चाहते हैं. सीएम साहेब ये कैसा न्याय है. दिव्यांगों और दृष्टिहीनों से मिलने के लिए आपके पास और आपके स्टाफ के पास वक्त नहीं है, वहीं हजारों की तादाद में पहुंचे शिक्षकों के साथ घंटों बिताने के लिए आपके पास वक्त है. सीएम साहेब कहते हैं गरीब की लाठी में आवाज नहीं होती है. ध्यान रखिएगा.बाकी आप खुद समझदार हैं.
एक तरफ बेबसी, निराशा और हताशा, दूसरी तरफ उल्लास और उत्सव का नजारा, नीचे दिए लिंक के वीडियो में देखिए.
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