रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन ने रमन सरकार के उस निर्णय का कड़ा विरोध किया है जिसमें जिला केंद्रीय सहकारी बैंको को समाप्त करके राज्य स्तरीय बैंक (एपेक्स) में समाहित करने का निर्णय लिया गया है। संगठन के संयोजक राजकुमार गुप्त और अध्यक्ष आई के वर्मा ने रमन सरकार पर आरोप लगाया है कि वह कार्पोरेट सेक्टर को मजबूत करने के लिये को आपरेटिव सेक्टर को कमजोर करने का कार्य कर रही है जबकि प्रदेश के किसानों की बदहाली को देखते हुए को आपरेटिव सेक्टर को मजबूत करने की जरूरत है।
संगठन का कहना है कि जिला केंद्रीय सहकारी बैंको का संचालन किसानों की निर्वाचित समितियां करती है जो किसानों की आवश्यकताओं और कठिनाईयों को समझते हैं और किसानों के प्रति संवेदनशील होते हैं जबकि एपेक्स बैंक का संचालन किसानों के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेट के द्वारा किया जाता है जिनसे किसानों के प्रति संवेदनशीलता की आशा नहीं की जा सकती, इसके अलावा लाभ होने की स्थिति में जिला केंद्रीय सहकारी बैंको द्वारा किसानों की समितियों को लाभांश दिया जाता है जिससे किसान समितियां वंचित हो जायेंगी।
सहकारिता के जानकारों का कहना है कि सरकार ने यह नीतिगत निर्णय लिया है कि, राज्य की सभी 06 जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों- रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, जगदलपुर, बिलासपुर और अम्बिकापुर का संविलयन छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक (अपेक्स बैंक) में किया जाए। यह निर्णय सहकारिता आन्दोलन का गला घोंटने वाला निर्णय है। राज्य में 27 जिले हैं और जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक केवल 06 हैं, इन 06 बैंकों के कार्यक्षेत्र में 25 जिले आते हैं, केवल रायगढ़ और जशपुर जिले ऐसे हैं जहां नया जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक पंजीकृत तो है लेकिन रिजर्व बैंक द्वारा लाइसेंस देने से इंकार करने के कारण कार्यरत नहीं हो सका और पुराना बैंक परिसमापन में है।
सहकारिता क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों की राय है कि राज्य में कृषि क्षेत्र में ऋण सुविधाएं बढ़ाने के लिए और जिलों में नये सहकारी केन्द्रीय बैंक और शाखाएं स्थापित किये जाएं, लेकिन राज्य सरकार ने विद्यमान बैंकों को ही समाप्त करने का निर्णय ले लिया। यद्यपि यह सही है कि, विद्यमान सभी जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों और उनसे सम्बद्ध 1333 प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं की आर्थिक स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है, जिसका कारण है- कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, घोटाला, और कुछ गलत नीतियां और स्थिति को नियंत्रित करने में सहकारिता विभाग की विफलताएं रही है। संभवतः विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ही संविलयन का निर्णय लिया गया है। संविलयन के निर्णय को उचित ठहराने के लिए राज्य सरकार के द्वारा बताए जा रहे कारण और लाभ पूरी तरह से गलत हैं और जनता को भ्रमित करने मात्र के लिए हैं। संविलयन के बाद प्रदेश में कृषि साख सुविधा हेतु सहकारी क्षेत्र में केवल एक बैंक होने के कारण, बैंक के कामकाज में किसान प्रतिनिधियों की भूमिका नगण्य हो जाएगी, उनकी समस्याओं का समाधान करने में बहुत विलंब होगा और बैंक के कामकाज का प्रबंध सहकारी सिद्धांतों के अनुसार न होकर आई ए एस अधिकारियों के हाथों में चला जाएगा। संविलयन के बाद कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और घोटाले बढ़ेंगे।