संदीप अखिल, भोपाल। 8 अक्टूबर को कलेक्टर-कमिश्नर-एसपी कॉन्फ्रेंस के समापन के साथ ही मध्यप्रदेश के शासन-प्रशासन की कार्यशैली में नई ऊर्जा, एक नई दिशा और लक्ष्य का स्पष्ट खाका दिखाई दिया. मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की अध्यक्षता में भोपाल में पहली बार हुई फिजिकल कलेक्टर-कमिश्नर-एसपी कॉन्फ्रेंस के आठ सत्रों के निचोड़ में 2047 का विजन डॉक्यूमेंट एकदम पारदर्शी हो गया है. कॉन्फ्रेंस में एक ओर जहां गांव, पंचायत, स्कूलों से लेकर कानून व्यवस्था में अमूलचूक परिवर्तन का खाका तैयार किया गया. वहीं मुख्यमंत्री की ओर से जनता के प्रति अफसरों की जवाबदेही के नियम भी सुनिश्चित किए गए. 7 अक्टूबर 2025 को दो दिवसीय कलेक्टर-कमिश्नर कॉन्फ्रेंस का शुभारंभ करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा- “जनता का विश्वास हमारी सबसे बड़ी पूंजी है, हमें यह विश्वास बनाए रखना है।” यह वाक्य केवल एक संदेश नहीं, बल्कि शासन की आत्मा का परिचायक है। इस सम्मेलन ने स्पष्ट कर दिया कि मध्यप्रदेश की प्रशासनिक सोच अब “प्रतिक्रिया” से आगे बढ़कर “प्रेरणा” के चरण में पहुँच चुकी है।
डॉ. यादव के नेतृत्व में यह कॉन्फ्रेंस नीति और क्रियान्वयन का ऐसा संगम बनी, जिसने प्रशासनिक ढांचे को जनसेवा की नई परिभाषा दी। शासन के चार स्तंभ- कृषि, स्वास्थ्य, उद्योग और नगरीय विकास, इस सम्मेलन के केंद्र में रहे। अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने से पहले ही मुख्यमंत्री ने इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से यह संदेश दे दिया कि उनकी प्राथमिकता “कार्यान्वयन” है, केवल “घोषणाएं” नहीं।
प्राकृतिक खेती और जैविक समृद्धि की ओर
कॉन्फ्रेंस के पहले सत्र “कृषि एवं संबद्ध सेक्टर्स” में मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि “मध्यप्रदेश की आत्मा खेती में बसती है, अब इसे उत्पादन के बजाय आजीविका और उद्यमिता के रूप में देखना होगा।” उन्होंने सभी कलेक्टर्स को निर्देश दिए कि वे अपने जिलों में प्राकृतिक और जैविक खेती को प्रोत्साहित करें, और कम से कम 100 किसानों को इस दिशा में प्रेरित करें। यह पहल मिट्टी की सेहत, पर्यावरण संतुलन और किसानों की लागत घटाने की दिशा में बड़ा कदम है। मुख्यमंत्री ने ‘श्री अन्न’ (मिलेट्स) को बढ़ावा देने की बात कही, ताकि पोषण और पर्यावरण दोनों का संतुलन बना रहे। गुना जिले में गुलाब की खेती, हरदा में जैविक खेती और श्योपुर में फसल अवशेष प्रबंधन पर हुई चर्चाओं से यह संकेत स्पष्ट मिला कि अब किसान प्रयोगशील और तकनीकी दृष्टि से सशक्त हो रहे हैं। उन्होंने पराली जलाने पर सख्त नियंत्रण और “हैप्पी सीडर” जैसे उपकरणों के उपयोग पर बल दिया, ताकि पर्यावरण संरक्षण के साथ खेती टिकाऊ बने। साथ ही, किसानों को नकद फसलों, उद्यानिकी, दुग्ध उत्पादन और मत्स्य पालन जैसे नए विकल्पों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया।
जनस्वास्थ्य में गुणवत्ता और जवाबदेही
दूसरे सत्र “स्वास्थ्य एवं पोषण” में मुख्यमंत्री का फोकस था- “सेवाएं केवल उपलब्ध नहीं, गुणवत्तापूर्ण भी हों।” उन्होंने कलेक्टर्स को निर्देश दिया कि अस्पतालों का नियमित निरीक्षण करें और कमियों को मौके पर दूर करें। डॉ. यादव ने बताया कि प्रदेश में 30 से अधिक मेडिकल कॉलेज कार्यरत हैं और शीघ्र ही यह संख्या 50 तक पहुँचेगी। इसका अर्थ है कि अब लगभग हर जिले में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होंगी। स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव ने टीबी, सिकल सेल, एनीमिया और गैर-संचारी रोगों से निपटने के कार्यक्रमों की समीक्षा की। राज्य का फोकस अब “इलाज” से बढ़कर “रोकथाम और जागरूकता” पर है। मुख्यमंत्री ने कहा कि “हर योजना का लाभ कागजों से निकलकर आमजन तक पहुँचना चाहिए।” जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना जैसे प्रयासों को और प्रभावी बनाने पर भी बल दिया गया। बालाघाट, झाबुआ और मंदसौर जिलों के सफल उदाहरणों को अन्य जिलों में लागू करने की दिशा तय की गई।
आत्मनिर्भर जिलों की ओर : औद्योगिक एवं रोजगार क्रांति
तीसरे सत्र “रोजगार, उद्योग एवं निवेश संवर्धन” में मुख्यमंत्री ने कहा-“अब हर जिला अपनी आर्थिक पहचान बनाए।” उन्होंने निर्देश दिए कि कलेक्टर्स अपने जिलों की औद्योगिक और आर्थिक संभावनाओं का अध्ययन कर ठोस कार्ययोजना तैयार करें। उन्होंने यह भी कहा कि “हमारे जिले तभी आत्मनिर्भर बनेंगे जब उद्योगों के साथ रोजगार भी पैदा होंगे।” इसके लिए एमएसएमई, खाद्य प्रसंस्करण और धार्मिक पर्यटन को विकास के नए इंजन के रूप में प्रस्तुत किया गया।
ग्वालियर, उज्जैन और रतलाम की बंद पड़ी मिलों को पुनर्जीवित करने की तरह, अन्य जिलों में भी निष्क्रिय इकाइयों को शुरू करने की योजना बनाई गई। वहीं स्व-सहायता समूहों को एमएसएमई सेक्टर से जोड़ने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। राज्य के औद्योगिक विजन 2047 के तहत स्थानीय ब्रांडिंग, जिला निवेश सुविधा केंद्रों की सक्रियता और “एक जिला – एक उत्पाद” नीति पर बल दिया गया। यह रणनीति उद्योग, निवेश और स्थानीय रोजगार के नए द्वार खोलने में सहायक होगी।
शासन और जनसंपर्क : विश्वास की कड़ी
जनसंपर्क आयुक्त दीपक सक्सेना ने बताया कि जनमत निर्माण और नीति संचार के लिए प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया का सटीक उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि “सकारात्मक सूचना और पारदर्शी संवाद ही सुशासन की नींव हैं।” उन्होंने सुझाव दिया कि कलेक्टर्स मीडिया से नियमित संपर्क बनाए रखें, समय-समय पर ब्रीफिंग करें और जनसंपर्क को प्रशासन की कार्यसंस्कृति का हिस्सा बनाएं। उन्होंने यह भी बताया कि विभाग द्वारा प्रकाशित समाचारों की नियमित मॉनिटरिंग कर रिपोर्ट तैयार की जा रही है, जिससे नीतियों में सुधार की प्रक्रिया निरंतर चलती रहे।
विज़न 2047 : स्मार्ट और सस्टेनेबल नगरीय विकास
चौथे सत्र में मुख्यमंत्री ने नगरीय विकास के भविष्य की दिशा तय की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन-2047 के अनुरूप राज्य के सभी नगरीय क्षेत्रों का विकास योजनाबद्ध और टिकाऊ होना चाहिए। स्वच्छता, आवास और स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में पहले से अग्रणी मध्यप्रदेश को अब “सस्टेनेबल अर्बन डेवलपमेंट” की ओर बढ़ाने की बात कही गई। उन्होंने निर्देश दिए कि प्रधानमंत्री आवास योजना के अधूरे घरों को शीघ्र पूरा किया जाए। इसके साथ ही गीता भवनों, डिजिटल लाइब्रेरियों और सामुदायिक केंद्रों के निर्माण से नगरों में सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन को नई दिशा मिलेगी।
भोपाल-इंदौर मेट्रो क्षेत्र को “नए औद्योगिक और शैक्षणिक हब” के रूप में विकसित करने की प्राथमिकता जताई गई। अपर मुख्य सचिव संजय दुबे ने विज़न 2047 का लक्ष्य बताया — “हर नागरिक को सर्वसुविधायुक्त आवास, सतत जलापूर्ति, स्वच्छ पर्यावरण और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।”
विकास की पटरी पर मध्यप्रदेश
कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मध्यप्रदेश सहित 4 राज्यों में रेलवे की मल्टी-ट्रेकिंग परियोजनाओं को मंजूरी मिली। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इसे “राज्य की अर्थव्यवस्था और रोजगार के लिए ऐतिहासिक निर्णय” बताया। 894 किलोमीटर लंबे इस नए रेल नेटवर्क से परिवहन की दक्षता बढ़ेगी और 139 करोड़ किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी बड़ा योगदान है।
नीति से नीयत तक जनता के साथ
कलेक्टर-कमिश्नर कॉन्फ्रेंस 2025 का सार यही है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शासन को “नीति से नीयत तक” जनता के हितों से जोड़ दिया है। यह सम्मेलन सुशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही का जीवंत उदाहरण बन गया है। अब हर अधिकारी केवल आदेश पालन करने वाला नहीं, बल्कि “जनसेवा का सिपाही” बनकर सामने आ रहा है। प्राकृतिक खेती से लेकर औद्योगिक आत्मनिर्भरता तक, स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर नगरीय विकास तक — यह कॉन्फ्रेंस एक समावेशी, आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी मध्यप्रदेश की दिशा में ठोस कदम है। आज मध्यप्रदेश केवल “योजनाओं का प्रदेश” नहीं, बल्कि “कार्यान्वयन का प्रदेश” बन चुका है। सुशासन के इस नए युग में नीति, निष्ठा और नतीजे — तीनों का सुंदर संगम डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में दिखाई दे रहा है। मध्यप्रदेश अब केवल आगे बढ़ने का नहीं, बल्कि पूरे देश को प्रेरणा देने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

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