दंतेवाड़ा। कैनवास की कला से प्रभावित होकर दंतेवाड़ा कलेक्टर दीपक सोनी ने पोचम की पीठ थपथपाई. पोचम को दंतेवाड़ा कलेक्ट्रेट लेकर श्रमजीवी संगठन के जिला उपाध्यक्ष पंकज भदौरिया और डीएम सोनी पहुंचे थे. जहां गमवाड़ा देवगुड़ी की पैटिंग कैनवास की फोटोफ्रेम भी पोचम ने दंतेवाड़ा कलेक्टर को भेंट की, कलेक्टर ने कहा कि आपको बस्तर की संस्कृति को दिखाने का मौका अवसर आने पर दिया जायेगा. साथ ही पोचम को पांच सौ रुपये उपहार स्वरूप भी दिए.

क्या है लक्ष्य

पोचम तेलंगाना के मंचरियाल जिले के एक छोटे से गांव चेन्नूर के रहने वाले है. 4 लोगों के परिवार में माता-पिता के अलावा पोचम का एक छोटा भाई है, जो पढ़ाई कर रहा है. एक गरीब किसान परिवार के बेटे ने पढ़ाई पूरी की. उसके बाद विश्व विख्यात खैरागढ़ विश्वविद्यालय से चित्रकला में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री भी प्राप्त की, अब उसके सामने कई अवसर थे, जिससे वो अपनी चित्रकला से पैसे कमाने, स्कूल खोलकर छात्रों से मोटी रकम वसूलने या किसी कंपनी में नौकरी भी कर सकता था, लेकिन, वो कहते है ना कि ईश्वर कुछ खास लोगों को ही सबसे कठिन कार्य देता है.

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फिर क्या था पोचम निकल पड़े अपने लक्ष्य पर जिसे उन्होंने ” कला यात्रा का दिया. ” यह यात्रा दिसम्बर 2017 से शुरू की थी, उस वक्त जेब में एक रुपए भी नहीं थे. दोस्तों ने पेंटिंग के लिए कुछ सामग्री दिलवाई कुछ पैसे दिए फिर शुरू हुई पोचम की कला यात्रा. 15 राज्यों से गुजरते हुए सालों बाद पोचम बस्तर के दंतेवाड़ा आकर उन्होंने यहां की आदिवासी संस्कृति को बहुत करीब से जाना.

स्वभाव से शर्मीले पोचम बताते है कि 10 दिन वो दंतेवाड़ा के फरसपाल में आदिवासियों के यहां रहे. खाना-पीना सब वहीं आदिवासियों की मेहमान नवाजी से पोचम काफी प्रभावित हुए. उनके मुताबिक लोग पैसे से नहीं दिल से अमीर होने चाहिए. पोचम ने आस पास की आदिवासी संस्कृति मेला मड़ाई की जीवंत तस्वीरे अपने कागज में उकेरी तस्वीरे भी ऐसी जो कि तस्वीरे देखते ही बोल पड़ती है. आपको बता दें कि पोचम अभी तक 15 राज्यों में सफर के दौरान लगभग 13000 चित्र बना चुके हैं.

लक्ष्य लेकर चलने वाले पोचम में चित्रकला की विशेष प्रतिभा छिपी है. वे लाइव चित्रकला करते हैं. चीजो को देखकर फौरन उसका स्केच हूबहू बनाकर तैयार कर देते हैं.